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अडानी ग्रुप को मिला कोल्ड स्टोर का संचालन, काश्तकार बोले- देर कर दी साहेब! अब तो बेच चुके सेब - झाला कोल्ड स्टोर

उत्तरकाशी के झाला में बंद पड़े कोल्ड स्टोर के संचालन का जिम्मा अडानी ग्रुप को मिला है. सेब काश्तकार इस कोल्ड स्टोर के संचालन को लेकर कई बार प्रदर्शन और अंतराष्ट्रीय सेब महोत्सव का भी विरोध कर चुके हैं. अब जाकर कोल्ड स्टोर खुला है, लेकिन ज्यादातर सेब काश्तकार फसल मंडी भेज चुके हैं.

jhala cold store
झाला कोल्ड स्टोर
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Published : Oct 1, 2021, 7:26 PM IST

Updated : Oct 1, 2021, 8:30 PM IST

उत्तरकाशीः हर्षिल घाटी के सेब काश्तकारों के आंदोलन के बाद प्रदेश सरकार ने आनन-फानन में अडानी ग्रुप को झाला के कोल्ड स्टोर के संचालन की अनुमति दे दी है. जिसे लेकर अडानी ग्रुप के प्रतिनिधियों और एप्पल फेडरेशन के पदाधिकारियों ने किसानों के साथ बैठक की. इस दौरान किसानों ने कहा कि कोल्ड स्टोर अब जाकर खुला है, जब काश्तकार करीब 50 फीसदी से ज्यादा सेब बाजारों में बेच चुके हैं. वहीं, अभी तक कोल्ड स्टोर संचालकों के साथ मूल्य निर्धारण पर सहमति नहीं बन पाई है.

बता दें कि हर्षिल घाटी के झाला में 1200 मीट्रिक टन क्षमता का कोल्ड स्टोर है. जो अभी तक बंद था. लिहाजा, घाटी के सेब काश्तकारों ने कई बार प्रदर्शन भी किया. इतना ही नहीं काश्तकारों ने बीते 24 सितंबर को ढोल-दमाऊं के साथ उत्तरकाशी में प्रदर्शन कर अंतराष्ट्रीय सेब महोत्सव का विरोध किया. हर्षिल घाटी के काश्तकार कोल्ड स्टोर के न खुलने से इस कदर नाराज थे कि उन्होंने महोत्सव में एक भी सेब नहीं भेजा. अब जाकर सरकार ने उनकी मांगों का संज्ञान लिया है. जिला उद्यान विभाग ने कोल्ड स्टोर का संचालन अडानी ग्रुप को हैंडओवर कर दिया है.

ये भी पढ़ेंः अंतरराष्ट्रीय सेब महोत्सव से उत्तराखंड के काश्तकारों को कितना लाभ?

सहायक उद्यान अधिकारी एनके सिंह ने कहा कि शासन के निर्देश पर हर्षिल घाटी का झाला कोल्ड स्टोर अडानी ग्रुप को हैंडओवर कर दिया गया है. इसके साथ ही बिजली और पानी की व्यवस्थाएं भी सुचारू की जा रही हैं. वहीं, इसके बाद अडानी ग्रुप और एप्पल फेडरेशन के लोगों ने सेब काश्तकारों के साथ बैठक की और चेंबर समेत मूल्य निर्धारण पर चर्चा की गई. जिसमें एप्पल क्वालिटी के हिसाब से सेबों के मूल्यों पर अडानी ग्रुप और काश्तकारों ने अपने-अपने विचार रखे. वहीं, काश्तकारों ने कोल्ड स्टोर में किसानों के लिए चेंबर की क्षमता को भी बढ़ाने को कहा.

अडानी ग्रुप करेगा कोल्ड स्टोर का संचालन.

ये भी पढ़ेंः उत्तरकाशी में ढोल दमाऊं के साथ गरजे हर्षिल के काश्तकार, अंतरराष्ट्रीय सेब महोत्सव का किया विरोध

सेब बेच चुके काश्तकारः हर्षिल के प्रधान दिनेश रावत ने कहा कि हालांकि सरकार ने कोल्ड स्टोर का संचालन शुरु कर दिया है, लेकिन बहुत देर हो गई है. क्योंकि अगर कोल्ड स्टोर शुरू होना था तो यह सितंबर महीने के पहले हफ्ते में शुरू हो जाना चाहिए था, लेकिन अब आधे से अधिक काश्तकारों ने सेब बेच दिए हैं. रावत ने बताया कि किसानों की जो अब मांगे हैं, उनको लेकर जिला उद्यान अधिकारी को ज्ञापन भेजा है. क्योंकि, अभी कोल्ड स्टोर संचालकों के साथ मूल्य निर्धारण पर सहमति नहीं बन पाई है.

उत्तरकाशी जिला सेब का सिरमौरः उत्तराखंड में सेब का सर्वाधिक उत्पादन उत्तरकाशी जिले में होता है. यहां 20 हजार मीट्रिक टन सेब का उत्पादन हर साल होता है. खासतौर पर गंगा और यमुना घाटी तो सेब उत्पादन के लिए खास पहचान रखती हैं. देश और प्रदेश में सेब की बढ़ती मांग के चलते यहां काश्तकारों का रुझान सेब उत्पादन में लगातार बढ़ रहा है. यहां के काश्तकारों ने पड़ोसी राज्य हिमाचल प्रदेश से सीख लेते हुए व्यावसायिक दृष्टिकोण अपनाया है. नतीजन हर साल सेब का क्षेत्रफल बढ़ रहा है और काश्तकारों की संख्या भी. सेब की मांग बढ़ने से काश्तकारों को भी अच्छा मुनाफा हो रहा है.

ये भी पढ़ेंः स्वरोजगार की नजीर पेश कर रहे पिथौरागढ़ के 'Apple Man'

इन वैरायटी के सेबों का होता है उत्पादनः उत्तरकाशी के आराकोट और हर्षिल क्षेत्रों में रॉयल डिलिशियस, रेड डिलिशियस और गोल्डन डिलिशियस प्रजाति के सेब होते हैं. इस प्रजाति के सेब के पेड़ काफी बड़े होते हैं और शीतकाल के दौरान इनके लिए अच्छी बर्फबारी भी जरूरी होती है. काश्तकार अब स्पर प्रजाति के रेड चीफ, सुपर चीफ और गोल गाला के पौधे लगा रहे हैं. वहीं, कम बर्फबारी होने पर भी स्पर प्रजाति के पेड़ों में उत्पादन पर कोई असर नहीं पड़ता है. इन पेड़ों की ऊंचाई बहुत अधिक नहीं होती और फलों की क्वालिटी और मात्रा भी अच्छी होती है. अब रूट स्टॉक विधि से सेब के पौधे लगाए जा रहे हैं, जो कम समय में फल दे देते हैं.

ये भी पढ़ेंः काश्तकारों की आय बढ़ाएगी कीवी, बागवानी को लेकर कवायद तेज

सेब मंडी की घोषणा सफेद हाथीः उत्तरकाशी में सेब मंडी तक नहीं है. उत्तरकाशी के आराकोट में सेब मंडी खुलने की घोषणा तो हुई, लेकिन यह कवायद भी धरातल पर नहीं उतरी है. नतीजा, हिमाचल प्रदेश के आढ़ती ही उत्तराखंड का सेब खरीदकर उसे हिमाचल की पैकिंग में दूसरे राज्यों की मंडियों को भेजते हैं. कई बार सड़कें बंद होने पर सेब समय पर मंडी नहीं पहुंच पाता है. ऐसे में कई बार सेब वाहनों में पड़े-पड़े ही खराब होने लगते हैं. इससे काश्तकारों को काफी नुकसान उठाना पड़ता है. उधर, हर्षिल के झाला में कोल्ड स्टोरेज भी बंद ही रहता है. हालांकि, अब अडानी ग्रुप ने संचालन का जिम्मा लिया है.

ये भी पढ़ेंः सेब-राजमा के बाद हर्षिल घाटी में केसर दिखाएगा कमाल, किसान होंगे 'मालामाल'

हर्षिल के सेब होते हैं काफी रसीलेः उत्तरकाशी जिले की हर्षिल घाटी में सेब की काफी पैदावार होती है. यहां के सेब काफी रसीले होते हैं. इनकी मिठास लोगों को अपनी ओर खींच लाती है. हर्षिल ऊंचाई पर स्थित होने और तापमान में कमी के कारण यहां के सेबों का तुड़ान देरी से शुरू होता है. जबकि, आराकोट बंगाण क्षेत्र के सेबों का तुड़ान जुलाई अंतिम सप्ताह से शुरू हो जाती है. अधिक ऊंचाई पर होने के कारण यहां के सेब मिठास में अलग ही पहचान रखते हैं. लेकिन सरकारों के ढीले रवैये और उचित बाजार उपलब्ध न होने के कारण आज भी उत्तराखंड का सेब पहचान के लिए मोहताज है.

उत्तरकाशीः हर्षिल घाटी के सेब काश्तकारों के आंदोलन के बाद प्रदेश सरकार ने आनन-फानन में अडानी ग्रुप को झाला के कोल्ड स्टोर के संचालन की अनुमति दे दी है. जिसे लेकर अडानी ग्रुप के प्रतिनिधियों और एप्पल फेडरेशन के पदाधिकारियों ने किसानों के साथ बैठक की. इस दौरान किसानों ने कहा कि कोल्ड स्टोर अब जाकर खुला है, जब काश्तकार करीब 50 फीसदी से ज्यादा सेब बाजारों में बेच चुके हैं. वहीं, अभी तक कोल्ड स्टोर संचालकों के साथ मूल्य निर्धारण पर सहमति नहीं बन पाई है.

बता दें कि हर्षिल घाटी के झाला में 1200 मीट्रिक टन क्षमता का कोल्ड स्टोर है. जो अभी तक बंद था. लिहाजा, घाटी के सेब काश्तकारों ने कई बार प्रदर्शन भी किया. इतना ही नहीं काश्तकारों ने बीते 24 सितंबर को ढोल-दमाऊं के साथ उत्तरकाशी में प्रदर्शन कर अंतराष्ट्रीय सेब महोत्सव का विरोध किया. हर्षिल घाटी के काश्तकार कोल्ड स्टोर के न खुलने से इस कदर नाराज थे कि उन्होंने महोत्सव में एक भी सेब नहीं भेजा. अब जाकर सरकार ने उनकी मांगों का संज्ञान लिया है. जिला उद्यान विभाग ने कोल्ड स्टोर का संचालन अडानी ग्रुप को हैंडओवर कर दिया है.

ये भी पढ़ेंः अंतरराष्ट्रीय सेब महोत्सव से उत्तराखंड के काश्तकारों को कितना लाभ?

सहायक उद्यान अधिकारी एनके सिंह ने कहा कि शासन के निर्देश पर हर्षिल घाटी का झाला कोल्ड स्टोर अडानी ग्रुप को हैंडओवर कर दिया गया है. इसके साथ ही बिजली और पानी की व्यवस्थाएं भी सुचारू की जा रही हैं. वहीं, इसके बाद अडानी ग्रुप और एप्पल फेडरेशन के लोगों ने सेब काश्तकारों के साथ बैठक की और चेंबर समेत मूल्य निर्धारण पर चर्चा की गई. जिसमें एप्पल क्वालिटी के हिसाब से सेबों के मूल्यों पर अडानी ग्रुप और काश्तकारों ने अपने-अपने विचार रखे. वहीं, काश्तकारों ने कोल्ड स्टोर में किसानों के लिए चेंबर की क्षमता को भी बढ़ाने को कहा.

अडानी ग्रुप करेगा कोल्ड स्टोर का संचालन.

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सेब बेच चुके काश्तकारः हर्षिल के प्रधान दिनेश रावत ने कहा कि हालांकि सरकार ने कोल्ड स्टोर का संचालन शुरु कर दिया है, लेकिन बहुत देर हो गई है. क्योंकि अगर कोल्ड स्टोर शुरू होना था तो यह सितंबर महीने के पहले हफ्ते में शुरू हो जाना चाहिए था, लेकिन अब आधे से अधिक काश्तकारों ने सेब बेच दिए हैं. रावत ने बताया कि किसानों की जो अब मांगे हैं, उनको लेकर जिला उद्यान अधिकारी को ज्ञापन भेजा है. क्योंकि, अभी कोल्ड स्टोर संचालकों के साथ मूल्य निर्धारण पर सहमति नहीं बन पाई है.

उत्तरकाशी जिला सेब का सिरमौरः उत्तराखंड में सेब का सर्वाधिक उत्पादन उत्तरकाशी जिले में होता है. यहां 20 हजार मीट्रिक टन सेब का उत्पादन हर साल होता है. खासतौर पर गंगा और यमुना घाटी तो सेब उत्पादन के लिए खास पहचान रखती हैं. देश और प्रदेश में सेब की बढ़ती मांग के चलते यहां काश्तकारों का रुझान सेब उत्पादन में लगातार बढ़ रहा है. यहां के काश्तकारों ने पड़ोसी राज्य हिमाचल प्रदेश से सीख लेते हुए व्यावसायिक दृष्टिकोण अपनाया है. नतीजन हर साल सेब का क्षेत्रफल बढ़ रहा है और काश्तकारों की संख्या भी. सेब की मांग बढ़ने से काश्तकारों को भी अच्छा मुनाफा हो रहा है.

ये भी पढ़ेंः स्वरोजगार की नजीर पेश कर रहे पिथौरागढ़ के 'Apple Man'

इन वैरायटी के सेबों का होता है उत्पादनः उत्तरकाशी के आराकोट और हर्षिल क्षेत्रों में रॉयल डिलिशियस, रेड डिलिशियस और गोल्डन डिलिशियस प्रजाति के सेब होते हैं. इस प्रजाति के सेब के पेड़ काफी बड़े होते हैं और शीतकाल के दौरान इनके लिए अच्छी बर्फबारी भी जरूरी होती है. काश्तकार अब स्पर प्रजाति के रेड चीफ, सुपर चीफ और गोल गाला के पौधे लगा रहे हैं. वहीं, कम बर्फबारी होने पर भी स्पर प्रजाति के पेड़ों में उत्पादन पर कोई असर नहीं पड़ता है. इन पेड़ों की ऊंचाई बहुत अधिक नहीं होती और फलों की क्वालिटी और मात्रा भी अच्छी होती है. अब रूट स्टॉक विधि से सेब के पौधे लगाए जा रहे हैं, जो कम समय में फल दे देते हैं.

ये भी पढ़ेंः काश्तकारों की आय बढ़ाएगी कीवी, बागवानी को लेकर कवायद तेज

सेब मंडी की घोषणा सफेद हाथीः उत्तरकाशी में सेब मंडी तक नहीं है. उत्तरकाशी के आराकोट में सेब मंडी खुलने की घोषणा तो हुई, लेकिन यह कवायद भी धरातल पर नहीं उतरी है. नतीजा, हिमाचल प्रदेश के आढ़ती ही उत्तराखंड का सेब खरीदकर उसे हिमाचल की पैकिंग में दूसरे राज्यों की मंडियों को भेजते हैं. कई बार सड़कें बंद होने पर सेब समय पर मंडी नहीं पहुंच पाता है. ऐसे में कई बार सेब वाहनों में पड़े-पड़े ही खराब होने लगते हैं. इससे काश्तकारों को काफी नुकसान उठाना पड़ता है. उधर, हर्षिल के झाला में कोल्ड स्टोरेज भी बंद ही रहता है. हालांकि, अब अडानी ग्रुप ने संचालन का जिम्मा लिया है.

ये भी पढ़ेंः सेब-राजमा के बाद हर्षिल घाटी में केसर दिखाएगा कमाल, किसान होंगे 'मालामाल'

हर्षिल के सेब होते हैं काफी रसीलेः उत्तरकाशी जिले की हर्षिल घाटी में सेब की काफी पैदावार होती है. यहां के सेब काफी रसीले होते हैं. इनकी मिठास लोगों को अपनी ओर खींच लाती है. हर्षिल ऊंचाई पर स्थित होने और तापमान में कमी के कारण यहां के सेबों का तुड़ान देरी से शुरू होता है. जबकि, आराकोट बंगाण क्षेत्र के सेबों का तुड़ान जुलाई अंतिम सप्ताह से शुरू हो जाती है. अधिक ऊंचाई पर होने के कारण यहां के सेब मिठास में अलग ही पहचान रखते हैं. लेकिन सरकारों के ढीले रवैये और उचित बाजार उपलब्ध न होने के कारण आज भी उत्तराखंड का सेब पहचान के लिए मोहताज है.

Last Updated : Oct 1, 2021, 8:30 PM IST
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