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बूढ़े हो चले हैं उधमसिंह नगर के जलाशय, सिल्ट ने घटाई क्षमता, बढ़ा खतरा - बौर जलाशय से सिल्ट हटाने का प्रोजेक्ट

उत्तराखंड सिंचाई विभाग के अधीन रुद्रपुर के तीन जलाशयों को पचास साल से भी ज्यादा का समय हो गया है. ऐसे में अब जलाशयों की क्षमता लगातार घटती जा रही है. जलाशयों में अत्यधिक सिल्ट आने से भविष्य में किसानों को सिंचाई के लिए पानी और बाढ़ जैसे हालात का सामना करना पड़ सकता है.

water capacity Reduced
हरिपुरा जलाशय में शिल्ट
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Published : Jul 18, 2022, 2:23 PM IST

रुद्रपुरः उधम सिंह नगर जिले में स्थित डैम से मिलने वाले पानी को लेकर किसानों को समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है. पिछले पचास सालों में आई सिल्ट ने डैम को भर दिया है. जिससे भविष्य में उत्तर प्रदेश में बाढ़ के हालात पैदा हो सकते हैं. डैम की पानी की क्षमता 40 से 45 फीसदी कम हो चुकी है. ऐसे में डैम की पानी की क्षमता लगातार घट रही है. अगर सिल्ट को हटाया नहीं गया तो उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के किसानों को सिंचाई के लिए पानी भी नहीं मिल पाएगा.

दरअसल, उत्तर प्रदेश सरकार ने सिंचाई और बाढ़ आपदा से निपटने के लिए उधम सिंह नगर जिले में 50 साल पहले 7 जलाशयों का निर्माण किया था. जिससे पहाड़ों में होने वाली बारिश के पानी को स्टोर कर तराई में बाढ़ और आपदा से निपटा जा सके. साथ ही किसानों को सिंचाई के लिए पानी मुहैया कराया जा सके. उत्तर प्रदेश से अलग होने के बाद तीन डैमों का संचालन उत्तराखंड को सौंपा गया था. जिसमें बौर जलाशय, हरिपुरा जलाशय, तुमरिया और तुमारिया प्रसार जलाशय सिंचाई विभाग संचालित कर रहा है.

सिल्ट से घटी जलाशयों की क्षमता

सभी जलाशयों में पहाड़ों के छोटे-छोटे नदी नाले जुड़े हैं. ऐसे में बरसातों के दौरान इन छोटे-छोटे नदी नालों का पानी जलाशय में रोका जाता है, ताकि तराई क्षेत्र में बाढ़ जैसे हालात पैदा ना हो सकें. इतना ही नहीं रुके हुए पानी से उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के किसानों को सिंचाई के तौर पर समय-समय पर पानी भी दिया जाता है, लेकिन अब डैम की स्थिति सिंचाई विभाग को चिंता में डाले हुई है.

ये भी पढ़ेंः गदरपुर बौर जलाशय को लेकर मत्स्य और पर्यटन विभाग में ठनी, जानें पूरा मामला

दरअसल, तीनों डैम 50 साल की उम्र पार कर चुके हैं. 50 सालों में डैम में भरपूर मात्रा में सिल्ट जमा हो चुकी है. जिससे डैम की पानी की क्षमता 40 से 45 फीसदी घट चुकी है. सिंचाई विभाग को अब डर सताने लगा है कि ऐसा ही चलता रहा तो भविष्य में उत्तर प्रदेश में बाढ़ जैसे हालात पैदा हो जाएंगे. साथ ही किसानों को सिंचाई का पानी भी मुहैया नहीं हो पाएगा.

जलाशय की कितनी है क्षमता

1. बौर जलाशय- 103.37 मिलियन क्यूसेक घन मीटर
2. हरिपुरा जलाशय- 28.32 मिलियन क्यूसेक घन मीटर
3. तुमारिया- 81.17 मिलियन क्यूसेक घन मीटर
4. तुमारिया प्रसार- 69.88 मिलियन क्यूसेक घन मीटर

देश की 10 योजनाओं में शामिल हुआ था बौर जलाशय से सिल्ट हटाने का प्रोजेक्टः जिले के 3 जलाशयों की घटती क्षमता को लेकर सिंचाई विभाग ने बौर जलाशय से सिल्ट हटाने को लेकर एक प्रोजेक्ट भारत सरकार को भेजा था. जिसे भारत सरकार ने एशियन डेवलपमेंट बैंक की सीमा योजना के तहत देश की 10 योजनाओं के साथ शामिल किया था. लेकिन प्रेजेंटेशन के दौरान विभाग को जलाशय से सिल्ट हटाने और उसके सौंदर्यीकरण करने का प्रोजेक्ट बना कर दोबारा भेजने को कहा गया. जिसके बाद अब विभाग सिल्ट के साथ-साथ जलाशय के सौंदर्यीकरण का खाका तैयार करने में जुटा हुआ है.

ऐसे भी हटायी जा सकती है जलाशय से सिल्टः उत्तराखंड और उसके पड़ोसी राज्यों में भारत सरकार की ओर से हाईवे के निर्माण बड़ी तेजी से किए जा रहे हैं. हाईवे को बनाने के लिए भारी मात्रा में मिट्टी की आवश्यकता होती है. ऐसे में कार्यदायी संस्था किसानों के खेतों से मिट्टी लाकर हाईवे बनाने का काम करती हैं. जिससे खेत की उपजाऊ मिट्टी सड़कों पर पहुंच जाती है. ऐसे में अगर राज्य सरकार कार्यदायी संस्था से संपर्क कर उन्हें जलाशय से रॉयल्टी में मिट्टी ले जाने की परमिशन देती है तो सरकार की आय भी बढ़ेगी. साथ ही जलाशय से सिल्ट भी हटाने का खर्च नहीं आएगा.

ये भी पढ़ेंः 'डेस्टिनेशन' तक नहीं पहुंची पूर्व CM त्रिवेंद्र की योजना, देखिए 14 करोड़ की 'बर्बादी'

रुद्रपुरः उधम सिंह नगर जिले में स्थित डैम से मिलने वाले पानी को लेकर किसानों को समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है. पिछले पचास सालों में आई सिल्ट ने डैम को भर दिया है. जिससे भविष्य में उत्तर प्रदेश में बाढ़ के हालात पैदा हो सकते हैं. डैम की पानी की क्षमता 40 से 45 फीसदी कम हो चुकी है. ऐसे में डैम की पानी की क्षमता लगातार घट रही है. अगर सिल्ट को हटाया नहीं गया तो उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के किसानों को सिंचाई के लिए पानी भी नहीं मिल पाएगा.

दरअसल, उत्तर प्रदेश सरकार ने सिंचाई और बाढ़ आपदा से निपटने के लिए उधम सिंह नगर जिले में 50 साल पहले 7 जलाशयों का निर्माण किया था. जिससे पहाड़ों में होने वाली बारिश के पानी को स्टोर कर तराई में बाढ़ और आपदा से निपटा जा सके. साथ ही किसानों को सिंचाई के लिए पानी मुहैया कराया जा सके. उत्तर प्रदेश से अलग होने के बाद तीन डैमों का संचालन उत्तराखंड को सौंपा गया था. जिसमें बौर जलाशय, हरिपुरा जलाशय, तुमरिया और तुमारिया प्रसार जलाशय सिंचाई विभाग संचालित कर रहा है.

सिल्ट से घटी जलाशयों की क्षमता

सभी जलाशयों में पहाड़ों के छोटे-छोटे नदी नाले जुड़े हैं. ऐसे में बरसातों के दौरान इन छोटे-छोटे नदी नालों का पानी जलाशय में रोका जाता है, ताकि तराई क्षेत्र में बाढ़ जैसे हालात पैदा ना हो सकें. इतना ही नहीं रुके हुए पानी से उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के किसानों को सिंचाई के तौर पर समय-समय पर पानी भी दिया जाता है, लेकिन अब डैम की स्थिति सिंचाई विभाग को चिंता में डाले हुई है.

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दरअसल, तीनों डैम 50 साल की उम्र पार कर चुके हैं. 50 सालों में डैम में भरपूर मात्रा में सिल्ट जमा हो चुकी है. जिससे डैम की पानी की क्षमता 40 से 45 फीसदी घट चुकी है. सिंचाई विभाग को अब डर सताने लगा है कि ऐसा ही चलता रहा तो भविष्य में उत्तर प्रदेश में बाढ़ जैसे हालात पैदा हो जाएंगे. साथ ही किसानों को सिंचाई का पानी भी मुहैया नहीं हो पाएगा.

जलाशय की कितनी है क्षमता

1. बौर जलाशय- 103.37 मिलियन क्यूसेक घन मीटर
2. हरिपुरा जलाशय- 28.32 मिलियन क्यूसेक घन मीटर
3. तुमारिया- 81.17 मिलियन क्यूसेक घन मीटर
4. तुमारिया प्रसार- 69.88 मिलियन क्यूसेक घन मीटर

देश की 10 योजनाओं में शामिल हुआ था बौर जलाशय से सिल्ट हटाने का प्रोजेक्टः जिले के 3 जलाशयों की घटती क्षमता को लेकर सिंचाई विभाग ने बौर जलाशय से सिल्ट हटाने को लेकर एक प्रोजेक्ट भारत सरकार को भेजा था. जिसे भारत सरकार ने एशियन डेवलपमेंट बैंक की सीमा योजना के तहत देश की 10 योजनाओं के साथ शामिल किया था. लेकिन प्रेजेंटेशन के दौरान विभाग को जलाशय से सिल्ट हटाने और उसके सौंदर्यीकरण करने का प्रोजेक्ट बना कर दोबारा भेजने को कहा गया. जिसके बाद अब विभाग सिल्ट के साथ-साथ जलाशय के सौंदर्यीकरण का खाका तैयार करने में जुटा हुआ है.

ऐसे भी हटायी जा सकती है जलाशय से सिल्टः उत्तराखंड और उसके पड़ोसी राज्यों में भारत सरकार की ओर से हाईवे के निर्माण बड़ी तेजी से किए जा रहे हैं. हाईवे को बनाने के लिए भारी मात्रा में मिट्टी की आवश्यकता होती है. ऐसे में कार्यदायी संस्था किसानों के खेतों से मिट्टी लाकर हाईवे बनाने का काम करती हैं. जिससे खेत की उपजाऊ मिट्टी सड़कों पर पहुंच जाती है. ऐसे में अगर राज्य सरकार कार्यदायी संस्था से संपर्क कर उन्हें जलाशय से रॉयल्टी में मिट्टी ले जाने की परमिशन देती है तो सरकार की आय भी बढ़ेगी. साथ ही जलाशय से सिल्ट भी हटाने का खर्च नहीं आएगा.

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