काशीपुरः अटल आयुष्मान उत्तराखंड योजना में घोटाले को लेकर दर्ज एफआईआर निरस्त नहीं की जा रही है. मामले में लगातार हो रही छीछालेदर से राज्य के अटल आयुष्मान योजना के अधिकारी बैकफुट पर आ गए हैं. राज्य स्वास्थ्य अभिकरण के अध्यक्ष दिलीप कोटिया ने पुलिस महानिदेशक को एक पत्र लिखकर कथित आरोपी अस्पतालों पर लगाए गए जुर्माना राशि जमा होने के बाद उनके खिलाफ दर्ज एफआईआर वापस लेने की मांग की है. वहीं, पुलिस अब न्यायालय के आदेश के बाद ही आगे की कार्रवाई करने की बात कह रही है.
बता दें कि आयुष्मान घोटाले में अधिकारियों की बड़ी लापरवाही के चलते यह घोटाला हुआ. जिन अस्पतालों को आयुष्मान योजना के अधिकारियों ने ही प्रशस्ति पत्र दिए और उनके बिल पास किए. उन्हीं अस्पतालों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराके खुद इस योजना के अधिकारी फंसते नजर आ रहे थे. इसके अलावा मामला और चर्चाओं के केंद्र में आया जब इस मामले में सबसे लंबी एफआईआर दर्ज होने का शोर मचा.
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अटल आयुष्मान योजना के राज्य स्वास्थ्य अभिकरण कार्यालय के मुताबिक, उधम सिंह नगर में इस योजना में सूचीबद्ध अस्पतालों में आस्था हॉस्पिटल काशीपुर पर 168200 रुपये, कृष्णा अस्पताल रुद्रपुर पर 167400 रुपये, अली नर्सिंग होम काशीपुर पर 478800 रुपये, देवकीनंदन अस्पताल काशीपुर पर 324550 रुपये और एमपी मेमोरियल अस्पताल काशीपुर पर 1852700 रुपये का जुर्माना लगाया गया था.
जिसके बाद उधम सिंह नगर के सभी सूचीबद्ध निजी अस्पतालों के खिलाफ अटल आयुष्मान योजना के राज्य स्वास्थ्य अभिकरण के अध्यक्ष दिलीप कोटिया ने पुलिस महानिदेशक देहरादून को एक पत्र लिखा था. जिसमें उन्होंने कहा है कि कथित आरोपी अस्पतालों पर लगाए गए जुर्माना राशि जमा होने के बाद उनके खिलाफ दर्ज एफआईआर की आवश्यकता नहीं रह गई है.
वहीं, अपर पुलिस अधीक्षक का कहना है कि इस मामले में विवेचना अभी भी जारी है. अभियोग पंजीकृत होने के बाद न्यायालय से ही एफआईआर वापस लेने की प्रक्रिया हो सकती है. साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि पुलिस मुख्यालय से अभी तक FIR वापस लेने का उन्हें कोई आदेश नहीं मिला है.
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ऐसे में अब सवाल उठना भी लाजिमी है कि इन सभी अस्पतालों पर जब जुर्माना जमा करने से मामला निपट रहा था तो एफआईआर दर्ज कराने में जल्दबाजी क्यों की गई? साथ ही राज्य में चर्चित इस घोटाले में अधिकारियों की भूमिका पर भी कई सवाल खड़े हो गए हैं. क्योंकि सभी अस्पतालों के बिल इस योजना के अधिकारियों ने ही पास किए थे तो फिर खाली अस्पतालों पर ही कार्रवाई क्यों की गई? और फिर रफादफा क्यों किया जा रहा है, दोषी अस्पताल है या अधिकारी?