रुद्रपुरः सदियों से चले आ रहे अटरिया माता मंदिर में पौराणिक मेले का शनिवार को पूरे विधि-विधान के साथ शुभारम्भ हो गया है. तीन मई तक चलने वाले इस मेले में दूर-दूर से श्रद्धालु माता रानी के दर्शन करने आते हैं. ऐसा माना जाता है कि 1600 ई. पूर्व राजा रुद्र के समय से यहां पर मेला लगता आ रहा है.
प्राचीन समय से चले आ रहे अटरिया माता मेला की शुरुआत हो गई. सुबह माता का डोला रम्पुरा क्षेत्र से अटरिया मंदिर में स्थापित किया गया. जिसके बाद श्रद्धालुओं को उनके दर्शन करने के लिए मंदिर के कपाट खोल दिये गए.
कहा जाता है कि 1600 ईसा पूर्व जब राजा रुद्र यहां से गुजर रहे थे तब उनके रथ का पहिया मंदिर के पास फंस गया. जब सारे जतन करने के बाद भी रथ का पहिया नहीं निकला तो वो थक हारकर वहीं पर आराम करने लगे. इसी बीच उन्हें स्वप्न हुआ और जहां पर रथ का पहिया फंसा हुआ है उसके नीचे कुएं में मूर्ति दबी हुई है.
उसे निकालकर इसी स्थान पर स्थापित करने को कहा. जब राजा की आंख खुली और अपने सैनिकों से खुदाई कराई तो वहां से एक मूर्ति निकली जिसके बाद राजा रुद्र द्वारा मंदिर की स्थापना करते हुए मेले का आयोजन किया गया. तब से लेकर अब तक यहां पर माता रानी के दर्शन करते हुए श्रद्धालु मेले का लुफ्त उठाते हैं.
ऐसी मान्यता है कि जो भी श्रद्धालु सच्चे दिल से माता रानी से जो भी मांगता है, उसकी सभी मनोकामना पूरी होती है. मेले में देश के कोने-कोने से श्रद्धालु माता रानी के दर्शनों के लिए पहुंचते हैं. आस्था के मंदिर में सभी हिन्दूओं के साथ-साथ मुस्लिम समुदाय के लोग भी बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते हैं.
वही मंदिर की महन्त पुष्पा देवी ने बताया कि यह मेला चैत्र मास की अष्टमी से शुरू होता है. 21 दिनों तक माता रानी अपने दर्शन श्रद्धालुओं को देती है. जिसके बाद माता अपने डोले में सवार होकर रम्पुरा क्षेत्र के अटरिया मंदिर में विराजमान हो जाती हैं.
माता रानी के दर्शनों के लिए दूर-दूर से लोग यहां पहुचते हैं. ऐसा माना जाता है कि जिसकी भी संतान या जोड़ी बनने में परेशानी होती है, उनकी माता रानी सभी कष्टों को हर लेती है.
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वहीं दूसरे समुदाय के जावेद अख्तर ने बताया कि माता रानी से जुड़े अनेक चमत्कार हैं. वो बचपन से माता रानी से जुड़े हुए हैं. हर साल मेले में सेवाएं देते हैं.