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यहां के कृषि वैज्ञानिकों ने कर दिखाया कमाल, बिना मिट्टी के उगा दी स्ट्रॉबेरी की फसल

क्या कभी आप बिना मिट्टी के खेती की कल्पना कर सकते हैं. अगर आपका जवाब ना है तो ये गलत है. पंतनगर के हल्दी क्षेत्र में कृषि वैज्ञानिकों ने ये कारनामा कर दिखाया है. देखिए ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट...

स्ट्रॉबेरी
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Published : Mar 3, 2019, 7:06 AM IST

रुद्रपुरः उत्तराखंड बायोटेक के वैज्ञानिकों ने बिना मिट्टी के स्टॉबेरी की फसल उगाने में सफलता हासिल की है. स्ट्रॉबेरी को पहाड़ी क्षेत्र में पाई जाने वाली चीड़ के पत्तों और नारियल की छाल की मदद से उगाया जा रहा है.वैज्ञानिकों का मानना है कि इस तकनीक से स्ट्राबेरी की खेती करने से तराई के साथ-साथ पहाड़ों के किसानों की आर्थिकी को बढ़ाया जा सकता है. अभी तक स्ट्रॉबेरी की खेती महाराष्ट्र और हिमाचल के किसान करते आये हैं. लेकिन पहली बार उत्तराखंड बायोटेक के वैज्ञानिकों ने पन्तनगर के हल्दी क्षेत्र में हाड्रोपोनिक विधि से इस फसल को उगाने में सफलता हासिल की है.

कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि पहाड़ी जिलों में किसान सितम्बर से मार्च तक स्ट्रॉबेरी की खेती कर सकते हैं. साथ ही हाइड्रोपोनिक विधि से तैयार की गई स्ट्रॉबेरी की फसल के बाजार में भी अच्छे दाम मिलते हैं.
वहीं, चीड़ के पत्तों और कोकोनट की छाल में फसल उगने के पीछे वैज्ञानिकों का तर्क है कि कम पानी वाले क्षेत्रों में इस तकनीक को अपनाकर कॉमर्शियल खेती को बढ़ाया जा सकता है. ऐसे में पहाड़ी जिलों जहां पानी की कमी से किसान खेती छोड़ रहे हैं. वहां हाड्रोपोनिक तकनीक रामबाण साबित हो सकती है. इस विधि में पौध को सिर्फ नमी देने के लिए ही पानी के साथ पोषक तत्व मिलाकर दिए जाते हैं, ताकि अधिक से अधिक उत्पादन हो सके.

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बहरहाल, उत्तराखंड बायोटेक के वैज्ञानिकों ने हाड्रोपोनिक तकनीक से पहली बार स्ट्राबेरी की खेती कर दिखाई है. हालांकि, अभी इस तकनीक से कॉमर्शियल खेती नहीं की जा रही है. लेकिन भविष्य में हाड्रोपोनिक तकनीक अपनाकर किसान अपनी आय दोगुनी कर सकते हैं.

रुद्रपुरः उत्तराखंड बायोटेक के वैज्ञानिकों ने बिना मिट्टी के स्टॉबेरी की फसल उगाने में सफलता हासिल की है. स्ट्रॉबेरी को पहाड़ी क्षेत्र में पाई जाने वाली चीड़ के पत्तों और नारियल की छाल की मदद से उगाया जा रहा है.वैज्ञानिकों का मानना है कि इस तकनीक से स्ट्राबेरी की खेती करने से तराई के साथ-साथ पहाड़ों के किसानों की आर्थिकी को बढ़ाया जा सकता है. अभी तक स्ट्रॉबेरी की खेती महाराष्ट्र और हिमाचल के किसान करते आये हैं. लेकिन पहली बार उत्तराखंड बायोटेक के वैज्ञानिकों ने पन्तनगर के हल्दी क्षेत्र में हाड्रोपोनिक विधि से इस फसल को उगाने में सफलता हासिल की है.

कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि पहाड़ी जिलों में किसान सितम्बर से मार्च तक स्ट्रॉबेरी की खेती कर सकते हैं. साथ ही हाइड्रोपोनिक विधि से तैयार की गई स्ट्रॉबेरी की फसल के बाजार में भी अच्छे दाम मिलते हैं.
वहीं, चीड़ के पत्तों और कोकोनट की छाल में फसल उगने के पीछे वैज्ञानिकों का तर्क है कि कम पानी वाले क्षेत्रों में इस तकनीक को अपनाकर कॉमर्शियल खेती को बढ़ाया जा सकता है. ऐसे में पहाड़ी जिलों जहां पानी की कमी से किसान खेती छोड़ रहे हैं. वहां हाड्रोपोनिक तकनीक रामबाण साबित हो सकती है. इस विधि में पौध को सिर्फ नमी देने के लिए ही पानी के साथ पोषक तत्व मिलाकर दिए जाते हैं, ताकि अधिक से अधिक उत्पादन हो सके.

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बहरहाल, उत्तराखंड बायोटेक के वैज्ञानिकों ने हाड्रोपोनिक तकनीक से पहली बार स्ट्राबेरी की खेती कर दिखाई है. हालांकि, अभी इस तकनीक से कॉमर्शियल खेती नहीं की जा रही है. लेकिन भविष्य में हाड्रोपोनिक तकनीक अपनाकर किसान अपनी आय दोगुनी कर सकते हैं.

Intro:एंकर -चीड़ के पत्तो से अब वैज्ञानिकों की टीम स्ट्रॉबेरी की खेती करने में जुट गई है इसके लिए पन्तनगर बायोटेक में शोध कार्य चल रहा है जिसमे कृषि वैज्ञानिकों की टीम ने सफलता भी हासिल कर ली है किस तरह से खेती कर किसान अपनी आमदनी को दुगना कर सकते है देखिए हमारी खास रिपोर्ट।




Body:वीओ - क्या आप ने कभी सोचा है कि बिना मिट्टी के भी खेती हो सकती है अगर आपका जवाब नही है, तो आप का सोचना गलत है हल्दी बायोटेक के वैज्ञानिकों की टीम ने बिना मिट्टी की फसल उगाने में सफलता हासिल की है जिसके लिए टीम द्वारा कोकोनेट के बुरादे में स्ट्रॉबेरी की फसल उगाई जा रही है। यही नही पहाड़ो में पाई जाने वाली चीड़ के पत्तो का प्रयोग स्ट्रॉबेरी की फसल उगाने में किया जा रहा है जिसमे वैज्ञानिकों को सफलता हासिल हो गयी है। जिसमे चीड़ के पत्तो को छोटे छोटे टुकड़ों में तब्दील कर न्यूट्रेंड डाला जाता है जिसके बाद आप स्ट्रॉबेरी की फसल को आसानी से ले सकते है वैज्ञानिक तरीके से खेती करने से तराई के साथ साथ पहाड़ो के किसानों को इसका फायदा मिल सकता है ओर अपनी आय को बढ़ा सकते है।

बाइट - सुमित पुरोहित, कृषि वैज्ञानिक।

वीओ - अब तक स्ट्रॉबेरी की खेती महाराष्ट्र और हिमांचल के राज्यो के किसान करते आये है पहली बार उत्तराखण्ड बायोटेक के वैज्ञानिकों ने पन्तनगर हल्दी में इसे हाड्रोपोनिक विधि से उगाने में फसल भी प्राप्त की है वैज्ञानिकों की माने तो पहाड़ी जिलों के किसान सितम्बर माह से मार्च तक इसकी खेती कर आसानी से अपनी आमदनी बड़ा सकते है हाइड्रोपोनिक विधि से तैयार की गई फसल के बाजारों में दाम भी अच्छे मिल सकते है दो सौ ग्राम के डिबब्बे की कीमत 60 रुपये से 70 रुपये का बाज़ारो आसानी से मिल जाती है। वैज्ञानिकों जल्द ही इस विधि को पहाड़ो के किसानों के साथ साथ तराई के किसानों को देने जा रहे है।


बाइट - सुमित पुरोहित, कृषि वैज्ञानिक।

वीओ - चीड़ ओर कोकोनेट के बुरादे में फसल उगने के पीछे वेज्ञानिको का कम पानी वाले क्षेत्रों में कामर्शियल खेती को बढ़ावा देना है ताकि किसानों की आय में चार चाद लगाया जा सके । पहाडी जिलों में पानी की कमी से खेती से मुह मोड़ते किसानों के लिए हाड्रोपोनिक विधि रामबाण साबित हो सकती है। इस विधि में पौध को सिर्फ नमी देने के लिए ही पानी का प्रयोग किया जाता है। बाकी पोषक तत्व पानी के साथ मिला कर दिए जाते है ताकि अधिक से अधिक फसल का उत्पादन किया जा सके। अगर किसान इस विधि से स्ट्रॉबेरी की खेती करता है तो आसानी से अपनी आय को दुगना कर सकता है।

बाइट - सुमित पुरोहित।




Conclusion:फाइनल वीओ - उत्तराखण्ड में पहली बार स्ट्रॉबेरी की खेती करने का फार्मूला बायोटेक के वैज्ञानिकों ने निकाल लिया है हालांकि अभी खेती को कामर्शियल रूप में नही किया जा रहा है लेकिन भविष्य में हाड्रोपोनिक विधि से उगाई जाने वाली फसल किसानों के लिए वरदान साबित हो सकती है।

राकेश रावत ईटीवी भारत रूद्रपुर।
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