टिहरीः आगामी 25 जुलाई को श्रीदेव सुमन के बलिदान दिवस पर विजिटरों को टिहरी जेल में रखी बेड़ियों से रूबरू करवाया जाएगा. ये वही बेड़ियां हैं, जिन्हें श्रीदेव सुमन ने राजशाही के खिलाफ जेल में डाल दिए जाने के दौरान पहना था. वहीं, जेल में इस दिन कैदियों की ओर से निर्मित उत्पादों की प्रदर्शनी भी लगाई जाएगी.
टिहरी जेल अधीक्षक अनुराग मलिक ने बताया कि जेल में कैदियों की ओर से रिंगाल के उत्पाद, अचार, अगरबती और स्वेटरों को बनाया जा रहा है. कैदियों के बनाए इन उत्पादों को बाजार मिले, इसके लिए उत्पादों की प्रदर्शनी 25 जुलाई को लगाई जाएगी. जिसमें जिले के उच्चाधिकारियों से इसके लिए बाजार उपलब्ध करवाने की बात की जाएगी.
बंदी सुधार कार्यक्रमों को जेल में निरंतर तरजीह दी जा रही है. जिसके तहत कैदियों से आने वाले समय में भोजन बनवाने के लिए सेटअप लगाने पर विचार किया जा रहा है, ताकि कैदियों की मदद से लोगों को क्वालिटी खाद्य सामग्री भी उपलब्ध करवाई जा सके. उन्होंने कहा कि बंदी सुधार कार्यक्रम के तहत जेल में पांच बच्चों में से दो बच्चों को स्कूल भेजने पर विचार किया जा रहा है.
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वहीं, बच्चों को रोज पार्क में खेलने-कूदने की व्यवस्था भी की जा रही है, ताकि बच्चे आम लोगों के बच्चों के साथ घुल मिलकर खेल सकें और उन्हें अन्य बच्चों को समझने में मदद मिले. उन्होंने कहा कि कैदियों के बनाए गए उत्पादों के लिए जेल से बाहर स्थायी आउटलेट भी बनाने पर विचार किया जा रहा है. साथ ही स्थानीय बाजार की दुकानों में उत्पादों को रखकर प्रचारित-प्रसारित करवाने का काम किया जाएगा.
बता दें कि श्रीदेव सुमन का जन्म 25 मई 1916 को टिहरी के जौल गांव में हुआ था. ब्रिटिश हुकूमत और टिहरी की अलोकतांत्रिक राजशाही के खिलाफ लगातार आंदोलन कर रहे श्रीदेव सुमन को दिसंबर 1943 को टिहरी की जेल में डाल दिया गया था. जिसके बाद उन्होंने भूख हड़ताल करने का फैसला किया. 209 दिनों तक जेल में रहने और 84 दिनों के भूख हड़ताल के बाद श्रीदेव सुमन का 25 जुलाई 1944 को निधन हो गया.
श्रीदेव सुमन का मूल नाम श्रीदत्त बडोनी था. उनके पिता का नाम हरिराम बडोनी और माता का नाम तारा देवी था. उन्होंने मार्च 1936 गढदेश सेवा संघ की स्थापना की थी. जबकि, जून 1937 में 'सुमन सौरभ' कविता संग्रह प्रकाशित किया. वहीं, जनवरी 1939 में देहरादून में प्रजामंडल के संस्थापक सचिव चुने गए. मई 1940 में टिहरी रियासत ने उनके भाषण पर प्रतिबंध लगा दिया.
वहीं, श्रीदेव सुमन को मई 1941 में रियासत से निष्कासित कर दिया गया. उन्हें जुलाई 1941 में टिहरी में पहली बार गिरफ्तार किया गया. जबकि, उनकी अगस्त 1942 में टिहरी में ही दूसरी बार गिरफ्तारी हुई. नवंबर 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान आगरा सेंट्रल जेल में बंद रहे. उन्हें नवंबर 1943 में आगरा सेंट्रल जेल से रिहा किया गया.
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वहीं, दिसंबर 1943 में श्रीदेव सुमन को टिहरी में तीसरी बार गिरफ्तार किया गया. फरवरी 1944 में टिहरी जेल में सजा सुनाई गई. 3 मई 1944 से टिहरी जेल में अनशन शुरू किया. जहां 84 दिन के ऐतिहासिक अनशन के बाद 25 जुलाई 1944 में 29 वर्ष की आयु में उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए. इस दौरान उनकी रोटियों में कांच कूटकर डाला गया और उन्हें वो कांच की रोटियां खाने को मजबूर किया गया.
श्रीदेव सुमन पर कई प्रकार से अत्याचार होते रहे. झूठे गवाहों के आधार पर उन पर मुकदमा दायर किया गया. हालांकि, टिहरी रियासत को अंग्रेज कभी भी अपना गुलाम नहीं बना पाए थे. जेल में रहकर श्रीदेव सुमन कमजोर नहीं पड़े. जनक्रांति के नायक अमर शहीद श्रीदेव सुमन को हर साल श्रद्धासुमन अर्पित कर याद किया जाता है.
श्रीदेव सुमन से जुड़ी यादें: महान क्रांतिकारी श्रीदेव सुमन के परिजनों ने आज भी उनकी जुड़ी वस्तुओं को संजोकर रखा है. राजशाही की पुलिस का डंडा श्रीदेव सुमन के परिजनों ने अभी तक संजोकर रखा है. बता दें कि श्रीदेव सुमन सबसे बड़े आंदोलनकारियों में से एक रहे हैं. टिहरी राजशाही के खिलाफ आवाज बुलंद करने वाले श्रीदेव सुमन के घर पर उनका सामान आज भी सुरक्षित है.
श्रीदेव सुमन को देखते ही पुलिस के एक जवान ने उनके ऊपर जोर से डंडा फेंका था. श्रीदेव सुमन तो भाग गए, लेकिन डंडा एक झाड़ी में उलझ गया. जो डंडा झाड़ी में अटक गया था, उसे श्रीदेव सुमन की मां ने अपने पास छुपा दिया था. राजशाही की पुलिस ने सुमन की मां से डंडा वापस मांगा और धमकी भी दी, लेकिन श्रीदेव सुमन की मां ने डंडा वापस नहीं दिया.
इसके बाद राजशाही की पुलिस टिहरी वापस चली गई. वहीं, श्रीदेव सुमन के भाई के बेटे मस्तराम बडोनी की मानें तो श्रीदेव सुमन से जुड़ी यादें पलंग, डेस्क और पुलिस का डंडा आज भी उनके पास सुरक्षित है. जिन्हें वे अपने पितरों की निशानी समझते हैं.