टिहरी: हिमाचल प्रदेश की तर्ज पर उत्तराखंड में भी भू-कानून लाने के लिए युवाओं ने अनोखी मुहिम शुरू की है. टिहरी जनपद के युवाओं ने देवी-देवताओं और चारधाम में जाकर अर्जी लगानी शुरू कर दी है. भू-कानून अभियान समिति गंगोत्री और यमुनोत्री में अर्जी लगाने के लिए निकल चुकी है. इसके बाद कुमाऊं मंडल के गोल्ज्यू और जागेश्वर मंदिर में अर्जी लगाएंगे और सरकार और अधिकारियों की बुद्धि-शुद्धि के लिए प्रार्थना करेंगे.
इसके साथ ही भू-कानून अभियान समिति के संयोजक शंकर सिंह ने त्रिवेंद्र सिंह रावत के बयान की घोर निंदा की है. उन्होंने कहा कि त्रिवेंद्र ने उत्तराखंड की जमीन को बेचने के लिए बाहरी लोगों को थाली सजा कर दी है, जोकि बहुत निंदनीय और शर्मनाक बात है. इस दौरान उन्होंने सरकार से हिमाचल प्रदेश की तर्ज पर उत्तराखंड में भी भू-कानून लागू किए जाने की मांग की है.
बता दें, हिमाचल प्रदेश की तर्ज पर उत्तराखंड में भी भू-कानून लाने के लिए पहाड़ से लेकर मैदान तक के युवा अब सरकार के गले की फांस बनने जा रहे हैं. अगर बीजेपी सरकार जल्द ही प्रदेश में भू-कानून लागू नहीं करती है तो सरकार को इसका खामियाजा अगले साल विधानसभा चुनाव में उठाना पड़ सकता है.
क्या होता है भू-कानून- भू-कानून का सीधा-सीधा मतलब भूमि के अधिकार से है. यानी आपकी भूमि पर केवल आपका अधिकार है न कि किसी और का. जब उत्तराखंड बना था तो उसके बाद साल 2002 तक बाहरी राज्यों के लोग उत्तराखंड में केवल 500 वर्ग मीटर तक जमीन खरीद सकते थे. वर्ष 2007 में बतौर मुख्यमंत्री बीसी खंडूरी ने यह सीमा 250 वर्ग मीटर कर दी. इसके बाद 6 अक्टूबर 2018 को भाजपा के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत एक नया अध्यादेश लाये. जिसका नाम 'उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि सुधार अधिनियम, 1950 में संसोधन का विधेयक' था. इसे विधानसभा में पारित किया गया.
इसमें धारा 143 (क) धारा 154(2) जोड़ी गई. यानी पहाड़ों में भूमि खरीद की अधिकतम सीमा को समाप्त कर दिया गया. अब कोई भी राज्य में कहीं भी भूमि खरीद सकता था. साथ ही इसमें उत्तराखंड के मैदानी जिलों देहरादून, हरिद्वार, यूएसनगर में भूमि की हदबंदी (सीलिंग) खत्म कर दी गई. इन जिलों में तय सीमा से अधिक भूमि खरीदी या बेची जा सकेगी.