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नागराजा के रूप में यहां विराजमान हैं श्रीकृष्ण, काल सर्प दोष से मिलती है मुक्ति - भगवान श्रीकृष्ण

मान्यता है कि द्वापर युग में कालंदी नंदी में जब बाल स्वरूप भगवान श्रीकृष्ण गेंद निकालने उतरे तो उन्होंने इस नदी से कालिया नाग को भगाकर सेम मुखेम जाने को कहा था. तब कालिया नाग भगवान श्रीकृष्ण से सेम मुखेम में आकर दर्शन देने की इच्छा जाहिर की थी. कहते हैं कि इसी वचन को पूरा करने के लिए भगवान कृष्ण द्वारिका छोड़कर उत्तराखंड के रमोला गढ़ी में आकर मूरत रूप में स्थापित हो गए.

सेम मुखेम मंदिर में लगा रहता है श्रद्धलुओं का तांता.
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Published : May 12, 2019, 7:23 AM IST

Updated : May 12, 2019, 1:19 PM IST

टिहरी: कहते हैं अगर मुनष्य की कुंडली में काल सर्प दोष हो तो वे अकाल मृत्यु को प्राप्त होता है. लेकिन पुराणों में इस काल सर्प दोष से मुक्ति की एक युक्ति भी है. मान्यता है कि देवभूमि उत्तराखंड के टिहरी जिले में 7 हजार फीट की ऊंचाई पर बसे सेम मुखेम नागराजा मंदिर में आने में कुण्डली में इस दोष का निवारण हो जाता है. यहां भगवान श्रीकृष्ण साक्षात नागराज के मूरत रूप में विराजमान हैं.

नागराजा के रूप में यहां विराजमान हैं श्रीकृष्ण.

मान्यता है कि द्वापर युग में कालंदी नंदी में जब बाल स्वरूप भगवान श्रीकृष्ण गेंद निकालने उतरे तो उन्होंने इस नदी से कालिया नाग को भगाकर सेम मुखेम जाने को कहा था. तब कालिया नाग भगवान श्रीकृष्ण से सेम मुखेम में आकर दर्शन देने की इच्छा जाहिर की थी. कहते हैं कि इसी वचन को पूरा करने के लिए भगवान कृष्ण द्वारिका छोड़कर उत्तराखंड के रमोला गढ़ी में आकर मूरत रूप में स्थापित हो गए. यही मंदिर सेम मुखेम नागराजा मंदिर के नाम से जाना जाता है.

द्वापर युग में इस स्थान पर रमोल गढ़ के गढ़पति गंगू रमोला का राज था. जब ब्राह्मण वेश में श्रीकृष्ण ने उनसे मंदिर के लिए स्थान मांगा तो गंगू ने मना कर दिया था. मंदिर के लिए जगह न दिए जाने से नाराज होकर भगवान श्रीकृष्ण पौड़ी चले गए. भगवान के प्रकोप से गंगू के सभी दुधारू पशु बीमार होने लगे और गंगू रमोला के राज्य में अकाल पड़ने लगा. इन सब के पीछे की वजह गंगू रमोला की पत्नी समझ गई और अपने पति से भगवान को मनाने की विनती करने लगी.

पत्नी की बात पर अमल करते हुए गंगू रमोला ने भगवान श्रीकृष्ण से मांफी मांगी और उन्हें प्रसन्न किया. जिसके बाद भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें वरदान दिया कि रमोली गढ़ मे जहां उनकी नाग रूप में पूजा होगी वो तभी सफल मानी जाएगी जब गंगू रमोली की भी पूजा की जाएगी. अतीत की ये परंपरा गढ़वाल प्रांत में आज भी निभाई जाती है. मंदिर के दर्शन के लिए श्रद्धालु दूर-दूर से पहुंचते हैं.

टिहरी: कहते हैं अगर मुनष्य की कुंडली में काल सर्प दोष हो तो वे अकाल मृत्यु को प्राप्त होता है. लेकिन पुराणों में इस काल सर्प दोष से मुक्ति की एक युक्ति भी है. मान्यता है कि देवभूमि उत्तराखंड के टिहरी जिले में 7 हजार फीट की ऊंचाई पर बसे सेम मुखेम नागराजा मंदिर में आने में कुण्डली में इस दोष का निवारण हो जाता है. यहां भगवान श्रीकृष्ण साक्षात नागराज के मूरत रूप में विराजमान हैं.

नागराजा के रूप में यहां विराजमान हैं श्रीकृष्ण.

मान्यता है कि द्वापर युग में कालंदी नंदी में जब बाल स्वरूप भगवान श्रीकृष्ण गेंद निकालने उतरे तो उन्होंने इस नदी से कालिया नाग को भगाकर सेम मुखेम जाने को कहा था. तब कालिया नाग भगवान श्रीकृष्ण से सेम मुखेम में आकर दर्शन देने की इच्छा जाहिर की थी. कहते हैं कि इसी वचन को पूरा करने के लिए भगवान कृष्ण द्वारिका छोड़कर उत्तराखंड के रमोला गढ़ी में आकर मूरत रूप में स्थापित हो गए. यही मंदिर सेम मुखेम नागराजा मंदिर के नाम से जाना जाता है.

द्वापर युग में इस स्थान पर रमोल गढ़ के गढ़पति गंगू रमोला का राज था. जब ब्राह्मण वेश में श्रीकृष्ण ने उनसे मंदिर के लिए स्थान मांगा तो गंगू ने मना कर दिया था. मंदिर के लिए जगह न दिए जाने से नाराज होकर भगवान श्रीकृष्ण पौड़ी चले गए. भगवान के प्रकोप से गंगू के सभी दुधारू पशु बीमार होने लगे और गंगू रमोला के राज्य में अकाल पड़ने लगा. इन सब के पीछे की वजह गंगू रमोला की पत्नी समझ गई और अपने पति से भगवान को मनाने की विनती करने लगी.

पत्नी की बात पर अमल करते हुए गंगू रमोला ने भगवान श्रीकृष्ण से मांफी मांगी और उन्हें प्रसन्न किया. जिसके बाद भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें वरदान दिया कि रमोली गढ़ मे जहां उनकी नाग रूप में पूजा होगी वो तभी सफल मानी जाएगी जब गंगू रमोली की भी पूजा की जाएगी. अतीत की ये परंपरा गढ़वाल प्रांत में आज भी निभाई जाती है. मंदिर के दर्शन के लिए श्रद्धालु दूर-दूर से पहुंचते हैं.

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नागराजा के रूप में यहां विराजमान हैं श्रीकृष्ण, काल सर्प दोष से मिलती है मुक्ति 

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टिहरी:  कहते हैं अगर मुनष्य की कुंडली में काल सर्प दोष हो तो वे अकाल मृत्यु को प्राप्त होता है. लेकिन पुराणों में इस काल सर्प दोष से मुक्ति की एक युक्ति भी है. मान्यता है कि देवभूमि उत्तराखंड के टिहरी जिले में 7 हजार फीट की ऊंचाई पर बसे सेम मुखेम नागराजा मंदिर में आने में कुण्डली में इस दोष का निवारण हो जाता है. यहां भगवान श्रीकृष्ण साक्षात नागराज के मूरत रूप में विराजमान हैं.

मान्यता है कि द्वापर युग में कालंदी नंदी में जब बाल स्वरूप भगवान श्रीकृष्ण गेंद निकालने उतरे तो उन्होंने इस नदी से कालिया नाग को भगाकर सैम मुखेम जाने को कहा था. तब कालिया नाग भगवान श्रीकृष्ण से सैम मुखेम में आकर दर्शन देने की इच्छा जाहिर की थी. कहते हैं कि इसी वचन को पूरा करने के लिए भगवान कृष्ण द्वारिका छोड़कर उत्तराखंड के रमोला गढ़ी में आकर मूरत रूप में स्थापित हो गए. यही मंदिर सैम मुखेम नागराजा मंदिर के नाम से जाना जाता है.

द्वापर युग में इस स्थान पर रमोल गढ़ के गढ़पति गंगू रमोला का राज था. जब ब्राह्मण वेश में श्रीकृष्ण ने उनसे मंदिर के लिए स्थान मांगा तो गंगू ने मना कर दिया था. मंदिर के लिए जगह न दिए जाने से नाराज होकर भगवान श्रीकृष्ण पौड़ी चले गए. भगवान के प्रकोप से गंगू के सभी दुधारू पशु बीमार होने लगे और गंगू रमोला के राज्य में अकाल पड़ने लगा. इन सब के पीछे की वजह गंगू रमोला की पत्नी समझ गई और अपने पति से भगवान को मनाने की विनती करने लगी.

पत्नी की बात पर अमल करते हुए गंगू रमोला ने भगवान श्रीकृष्ण से मांफी मांगी और उन्हें प्रसन्न किया. जिसके बाद भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें वरदान दिया कि रमोली गढ़ मे जहां उनकी नाग रूप में पूजा होगी वो तभी सफल मानी जाएगी जब गंगू रमोली की भी पूजा की जाएगी. अतीत की ये परंपरा गढ़वाल प्रांत में आज भी निभाई जाती है. मंदिर के दर्शन के लिए श्रद्धालु दूर-दूर से पहुंचते हैं.

 


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Last Updated : May 12, 2019, 1:19 PM IST
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