टिहरी: महाशिवरात्रि पर टिहरी के देवलसारी मंदिर में भक्तों की भीड़ उमड़ी रही. इस मंदिर में कुदरत का ऐसा अनोखा चमत्कार देखने को मिलता है. इस मंदिर में जलेरी नहीं होने से इस मंदिर की आधी नहीं, बल्कि पूरी परिक्रमा की जाती है. इतना ही नहीं इस शिवालय की अनूठी परंपराएं और कई रहस्य श्रद्धालुओं को हैरत में डाल देती है.
मान्यता है कि यहां स्वंयभू शिवलिंग स्थापित है. मंदिर के शिवलिंग पर चढ़ाए जाने वाले हजारों लीटर जल की निकासी कहां होती है? इस रहस्य से आज तक पर्दा नहीं उठा पाया है.
दुनियाभर में तमाम शिव मंदिरों में शिव मंदिरों में शिवलिंग के साथ जलेरी होती ही है. पूजा-अर्चना और जलाभिषेक के बाद शिवलिंग की आधी परिक्रमा करने का विधान है. यानी जलेरी को लांघा नहीं जाता है. जलेरी तक पहुंचकर परिक्रमा को पूर्ण मान लिया जाता है. लेकिन प्राचीन देवलसारी मंदिर में शिवलिंग के साथ जलेरी न होना लोगों को आश्चर्य में डालता है. जलेरी नहीं होने के कारण मंदिर की पूरी परिक्रमा की जाती है.
देवलसारी मंदिर में जलाभिषेक की परंपरा भी कुछ अलग ही है. प्राचीन समय से चली आ रही परंपराओं के अनुसार आज भी मंदिर का पुजारी ही भक्तों के लाए हुए जल को खुद शिवलिंग पर अर्पित करता है. मंदिर के तीसरी पीढ़ी के पुजारी रामलाल भट्ट और गगन भट्ट पूजा-पाठ और व्यवस्थाओं का जिम्मा संभाले हुए हैं. वे कहते हैं कि शिवलिंग पर चढ़ने वाले जल के अदृश्य होने का राज उनके लिए भी रहस्य बना हुआ है.
देवलसारी महादेव में शिवालय के आसपास लोग नाग-नागिन के जोड़े को घूमते देखते हैं. ये नाग-नागिन किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचाते हैं. बुजुर्गों का कहना है कि यह शिव का क्षेत्र है और नाग-नागिन इस क्षेत्र की चौबीसों घंटे पहरेदारी करते हैं. ऐसे में हर एक व्यक्ति को नहीं बल्कि किसी-किसी को ही इनके दर्शन होते.