टिहरी: प्रतापनगर में सेम मुखेम के जंगल के बीचों-बीच बने भगवान श्रीकृष्ण के मंदिर में मेले का आयोजन आगामी 26 दिसंबर से होगा. दूर-दूर से श्रद्धालु यहां पहुंचकर भगवान के दर्शन कर उनका आशीर्वाद लेंगे. ऐसा माना जाता है इस मन्दिर में पहुंचने वाला सच्चा भक्त कभी खाली हाथ नहीं लौटता. यहां हर मन्नत पूरी होती है. मन्दिर के पास पानी का कुंड है. स्थानीय लोगों का मानना है कि इस कुंड का पानी पीने से कुष्ठ रोग दूर हो जाता है. ऐसा माना जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण के श्राप के कारण इस क्षेत्र के लोग साल में एक बार भिक्षा जरूर मांगते हैं.
क्या कहती हैं कहानियां
किवदन्तियों के अनुसार, बहुत पहले भगवान श्रीकृष्ण ने साधू का वेष रखकर इस क्षेत्र के राजा गंगू रमोला से 2 गज जमीन मांगी थी, लेकिन राजा ने अपनी हठ धर्मिता के चलते उन्हें जमीन देने के इनकार कर दिया. तब साधू रूप में भगवान श्रीकृष्ण ने राजा को श्राप दिया था कि उसके कुटुंब का हर व्यक्ति भिक्षा मांगेगा. तब से लेकर आज भी सेम मुखेम के लोग साल में एक बार भीख जरूर मांगते हैं, चाहे वह कितना धनी क्यों न हो. तब राजा गंगू रमोली ने अपनी पत्नी के कहने पर साधू वेषधारी श्रीकृष्ण से माफी मांगी. भगवान श्रीकृष्ण ने राजा की पत्नी से खुश होकर वरदान मांगने को कहा. राजा की कोई संतान नहीं थी तो राजा की पत्नी ने वरदान के रूप में भगवान से पुत्र का वर मांगा. जिसके बाद राजा के दो पुत्र हुए, जिनका नाम बिन्दुआ और सिद्धुआ रखा गया.
एक कहानी ये भी कहती है कि जब बाल्यकाल में कालंदी नदी पर भगवान श्रीकृष्ण की गेंद गिरी थी तो भगवान ने कालिया नाग को नदी से भगाकर सेम मुखेम जाने को कहा था.
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देवभूमि का पांचवां धाम है सेम मुखेम
टिहरी जिले में स्थित सेम मुखेम देश के 11वें और उतराखंड के 5वें धाम के रूप में भी पूजा जाता है. स्थानीय लोग सेम मुखेम को भगवान श्रीकृष्ण की तपस्थली के रुप में भी जानते हैं. मंदिर के पुजारी लक्ष्मी प्रसाद सेमवाल मंदिर की महिमा का जिक्र करते हुए कहते हैं कि जो भी भक्त यहां आता है, चाहे वह कुष्ठ रोग से ग्रसित हो या गृहकलेश से. सच्चे मन से मांगी गई मुराद पूरी होती है.
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पुजारी लक्ष्मी प्रसाद कहते हैं कि बाल्यकाल में भगवान श्रीकृष्ण ने हिडिम्बा राक्षस का वध इसी स्थान पर किया था. उस वक्त हिडिम्बा के शरीर के हिस्से जिन स्थानों पर गिरे, उन गांवों का नाम भी हिडिम्बा के नाम से ही पड़ा.
आज भी सेम मुखेम मन्दिर के मैदान में पशुओं की पत्थरशिला बनी है. जिन लोगों की जन्म कुंडली में काल सर्पकर्प योग होता है, वे लोग चांदी के बने दो सर्प इस मंदिर में चढ़ाते हैं, इससे उन्हें अकाल मृत्यु से निजात मिलती है.