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चमत्कारों का दरबार है सिद्ध पीठ चंद्रबदनी मंदिर, नवरात्रि पर हुए विविध आयोजन

टिहरी जिले के सिद्ध पीठ चंद्रबदनी मंदिर में नवरात्रि पर आस्था का सैलाब उमड़ा. नौ दिनों तक विविध कार्यक्रम हुए. दूर-दूर से यहां भक्त पहुंचे. अत्यंत नैसर्गिक वातावरण में इस मंदिर की आस्था से जुड़ी अनेक कहानियां हैं.

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Published : Apr 13, 2019, 6:42 PM IST

चंद्रबदनी मंदिर


टिहरीः नवरात्रि पर चारों ओर माता के जयघोष गूंजते रहे. जिले के सभी भागों में भक्तों ने विधि-विधान से मां के विविध रूपों की आराधना की. इसी क्रम में टिहरी जिले के सिद्ध पीठ चंद्रबदनी मंदिर में भी आस्था का सैलाब उमड़ा. नौ दिनों तक विविध कार्यक्रम हुए. दूर-दूर से यहां भक्त पहुंचे. अत्यंत नैसर्गिक वातावरण में इस मंदिर की आस्था से जुड़ी अनेक कहानियां हैं, जोकि भक्त खुद बताते हैं. माता का दरबार चमत्कारों से भरा पड़ा है.

चंद्रबदनी मंदिर में नवरात्रि पर आस्था का सैलाब उमड़ा.

हिंडोला खाल विकासखंड में समुद्र तल से 8000 फीट की ऊंचाई पर चंद्रकूट पर्वत पर स्थित है. स्कंद पुराण केदारखंड में इसे भुनेश्वरी पीठ नाम से भी जाना जाता है. यहां पर श्रद्धालुओं के लिए नेखरी में गढ़वाल मंडल विकास निगम का पर्यटक आवास गृह है.

यहां जाने के लिए ऋषिकेश से 106 किलोमीटर देवप्रयाग होते हुए पहुंचते हैं और नई टिहरी से 7 किलोमीटर दूरी पर अंजनिसेन होते हुए नेखरी से जाते हुए यहां तक पहुंचते हैं.
बताया जाता है कि यहां पर जो भी लोग भक्ति भाव से अपनी मन्नत मांगने आते हैं वह पूर्ण होती है. माता के मंदिर में पूजा अर्चना के लिए कंदमूल, फल, अगरबत्ती, धूपबत्ती, चांदी के छत्र चढ़ावे के रूप में समर्पित करते हैं. लोगों का कहना है कि वास्तव में चंद्रबदनी मंदिर में एक आलोकित आत्म शक्ति मिलती है. इसी आत्म शक्ति को तलाशने के लिए देश-विदेश के श्रद्धालु मां के दर्शन करने आते हैं. चंद्र पर्वत से चारों तरफ सुंदर सा हिमालय और पहाड़ियां दिखती हैं.
बताया जाता है कि जगतगुरु शंकराचार्य की यह तपस्थली भी रही है. श्री यंत्र से प्रभावित होकर अलकनंदा नदी के दाहिने ओर उत्तर में रमणीक चंद्रकूट पर्वत पर चंद्रबदनी शक्तिपीठ की स्थापना की थी. मंदिर में चंद्रबदनी की मूर्ति नहीं है. देवी का यंत्र श्री यंत्र की पूजा की जाती हैं.

मंदिर के गर्भ गृह में एक इलाका उत्कीर्ण यंत्र के ऊपर चांदी का एक बड़ा क्षेत्र स्थित है. पुराण के अनुसार केदारखंड में चंद्रबदनी का विस्तृत वर्णन मिलता है. बागेश्वर जिले में शनिवार को अष्टमी के साथ ही रामनवमी धूमधाम से मनाई गई. चार साल बाद बन रहे शुभ संयोग पर आज पुष्य नक्षत्र, सर्वार्थसिद्धि, धृति, मित्र और बुधादित्य योग के शुभ संयोगों में अष्टमी संग रामनवमी मनाई गई.

ज्योतिषाचार्यों के मुताबिक रामनवमी की तिथि मध्याह्न काल में पड़ने वाले पुष्य नक्षत्र प्रधान होनी चाहिए, जो कि अष्टमी के दिन पड़ रहा है. इसलिए अबकी बार मध्याह्नकाल व्यापनी नवमी तिथि में रामनवमी मनाई गई.

श्रद्वालुओं ने नवरात्रि के अष्टमी तिथि में मां महागौरी के दर्शन कर उनकी पूजा अर्चना कर सुख, सम्रद्धि, यश, आरोग्य की कामना की. घरों में बालिकाओं की पूजा कर उन्हें भोजन कराया गया.

अष्ठमी की सुबह से ही नगर के चण्डिका मंदिर, उल्का मंदिर में श्रद्धालु पूजा अर्चना करने को पहुंचने लगे. अष्टमी पर चण्डिका मन्दिर में भंडारे का भी आयोजन हुआ. भंडारे में प्रसाद पाने को श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ी रही.

यह भी पढ़ेंः बीजेपी विधायकों की नोकझोंक में विपक्ष ने अड़ाई टांग, प्रीतम सिंह बोले- फर्जी प्रमाण-पत्रों की जांच कराये सरकार

साथ ही आज के दिन घरों में कन्या पूजन भी किया जाता है. कन्याओं को भोजन कराकर महिलाएं व्रत का उद्यापन करती हैं. सुबह से ही राम मंदिर में श्रद्धालु मनोकामना लेकर पूजा अर्चना को पहुंच रहे हैं.


टिहरीः नवरात्रि पर चारों ओर माता के जयघोष गूंजते रहे. जिले के सभी भागों में भक्तों ने विधि-विधान से मां के विविध रूपों की आराधना की. इसी क्रम में टिहरी जिले के सिद्ध पीठ चंद्रबदनी मंदिर में भी आस्था का सैलाब उमड़ा. नौ दिनों तक विविध कार्यक्रम हुए. दूर-दूर से यहां भक्त पहुंचे. अत्यंत नैसर्गिक वातावरण में इस मंदिर की आस्था से जुड़ी अनेक कहानियां हैं, जोकि भक्त खुद बताते हैं. माता का दरबार चमत्कारों से भरा पड़ा है.

चंद्रबदनी मंदिर में नवरात्रि पर आस्था का सैलाब उमड़ा.

हिंडोला खाल विकासखंड में समुद्र तल से 8000 फीट की ऊंचाई पर चंद्रकूट पर्वत पर स्थित है. स्कंद पुराण केदारखंड में इसे भुनेश्वरी पीठ नाम से भी जाना जाता है. यहां पर श्रद्धालुओं के लिए नेखरी में गढ़वाल मंडल विकास निगम का पर्यटक आवास गृह है.

यहां जाने के लिए ऋषिकेश से 106 किलोमीटर देवप्रयाग होते हुए पहुंचते हैं और नई टिहरी से 7 किलोमीटर दूरी पर अंजनिसेन होते हुए नेखरी से जाते हुए यहां तक पहुंचते हैं.
बताया जाता है कि यहां पर जो भी लोग भक्ति भाव से अपनी मन्नत मांगने आते हैं वह पूर्ण होती है. माता के मंदिर में पूजा अर्चना के लिए कंदमूल, फल, अगरबत्ती, धूपबत्ती, चांदी के छत्र चढ़ावे के रूप में समर्पित करते हैं. लोगों का कहना है कि वास्तव में चंद्रबदनी मंदिर में एक आलोकित आत्म शक्ति मिलती है. इसी आत्म शक्ति को तलाशने के लिए देश-विदेश के श्रद्धालु मां के दर्शन करने आते हैं. चंद्र पर्वत से चारों तरफ सुंदर सा हिमालय और पहाड़ियां दिखती हैं.
बताया जाता है कि जगतगुरु शंकराचार्य की यह तपस्थली भी रही है. श्री यंत्र से प्रभावित होकर अलकनंदा नदी के दाहिने ओर उत्तर में रमणीक चंद्रकूट पर्वत पर चंद्रबदनी शक्तिपीठ की स्थापना की थी. मंदिर में चंद्रबदनी की मूर्ति नहीं है. देवी का यंत्र श्री यंत्र की पूजा की जाती हैं.

मंदिर के गर्भ गृह में एक इलाका उत्कीर्ण यंत्र के ऊपर चांदी का एक बड़ा क्षेत्र स्थित है. पुराण के अनुसार केदारखंड में चंद्रबदनी का विस्तृत वर्णन मिलता है. बागेश्वर जिले में शनिवार को अष्टमी के साथ ही रामनवमी धूमधाम से मनाई गई. चार साल बाद बन रहे शुभ संयोग पर आज पुष्य नक्षत्र, सर्वार्थसिद्धि, धृति, मित्र और बुधादित्य योग के शुभ संयोगों में अष्टमी संग रामनवमी मनाई गई.

ज्योतिषाचार्यों के मुताबिक रामनवमी की तिथि मध्याह्न काल में पड़ने वाले पुष्य नक्षत्र प्रधान होनी चाहिए, जो कि अष्टमी के दिन पड़ रहा है. इसलिए अबकी बार मध्याह्नकाल व्यापनी नवमी तिथि में रामनवमी मनाई गई.

श्रद्वालुओं ने नवरात्रि के अष्टमी तिथि में मां महागौरी के दर्शन कर उनकी पूजा अर्चना कर सुख, सम्रद्धि, यश, आरोग्य की कामना की. घरों में बालिकाओं की पूजा कर उन्हें भोजन कराया गया.

अष्ठमी की सुबह से ही नगर के चण्डिका मंदिर, उल्का मंदिर में श्रद्धालु पूजा अर्चना करने को पहुंचने लगे. अष्टमी पर चण्डिका मन्दिर में भंडारे का भी आयोजन हुआ. भंडारे में प्रसाद पाने को श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ी रही.

यह भी पढ़ेंः बीजेपी विधायकों की नोकझोंक में विपक्ष ने अड़ाई टांग, प्रीतम सिंह बोले- फर्जी प्रमाण-पत्रों की जांच कराये सरकार

साथ ही आज के दिन घरों में कन्या पूजन भी किया जाता है. कन्याओं को भोजन कराकर महिलाएं व्रत का उद्यापन करती हैं. सुबह से ही राम मंदिर में श्रद्धालु मनोकामना लेकर पूजा अर्चना को पहुंच रहे हैं.

Intro:चंद्रवदनी मंदिर में जुटी श्रद्धालुओं की चंद्रबदनी मंदिर काफी प्राचीन है बताया जाता है कि जगतगुरु शंकराचार्य ने श्रीनगर में सृंग ऋषि की तपस्थली भी रही है श्री यंत्र से प्रभावित होकर अलकनंदा नदी के दाहिने और उत्तंर में रमणीक चंद्रकूट पर्वत पर चंद्रबदनी शक्तिपीठ की स्थापना की थी मंदिर में चंद्रबदनी की मूर्ति नहीं है देवी का यंत्र श्री यंत्र श्री पुजारी जन पूजा करते हैं मंदिर के गर्भ गृह में एक इलाका उत्कीर्ण यंत्र के ऊपर चांदी का एक बड़ा क्षेत्र स्थित है पुराण के अनुसार केदारखंड में चंद्रबदनी का विस्तृत वर्णन मिलता है मंदिर पुरातत्व विभाग अवशेष से पता चलता है कि यह मंदिर कांच के पुल बैराग के कटोरी वर्ष शिवपुर के पवार राजवंशी शासन काल से पूर्व स्थापित का है इस मंदिर में किसी भी राजा का हस्तक्षेप होना नहीं पाया जाता है 16 सदी में गढ़वाल के कपूरी साम्राज्य के पतन के पश्चात जुगाड़ में जवानों का साम्राज्य था उन्हीं के पूर्वज नाग वंश राजा चंद्र ने चंद्रबदनी मंदिर की स्थापना की थी चांदपुर गढ़ी के पवार नरेश अजय पाल ने उत्तर गढ़ के अंतिम राजा को चौहान को परास्त कर गंगा के पक्ष में पहाड़ पर अधिकार कर लिया था तभी से चंद्र कूट पावर पर्वत पर पवाग राजा का अधिपत्य हो गया था 18 से 5 ईसवी में गढ़वाल पर गोरखा का शासन हो गया तब चंद्रबदनी मंदिर में पूजा एवं व्यवस्था नृत्य शैली चेहरा साधना विद्या गोटिया खत्री गुजरात खेड़ा


Body:मान्यता है कि मां सती ने अपने पिता दक्ष के यज्ञ में दुखी होकर हवन कुंड में आत्मदाह कर दिया था दुखित शिव हवन कुंड से मां सती का कंकाल अपने कंधे पर रखकर कई स्थानों में घूमने लगे जब शिव कंधे पर मां सती का कंकाल कई दिनों तक लिए गए तो भगवान विष्णु ने अपने प्रदर्शन से शिव के कंधे से मां सती के कंकाल के टुकड़े टुकड़े कर दिए इस तरह हिमालय प्रदेश में मां सती के अंग कई स्थानों पर बिखर गए जहां जहां सती के अंग गिरे को पवित्र शक्तिपीठ हो गए शक्तिपीठ मानव जाति के लिए पूज्य है चंद्रमुखी देवी सती का बदन ही चंद्रबदनी के रूप में विख्यात है चंद्रबदनी मां सती का ही रूप है सती का सब धोते-धोते शिवजी स्वयं निर्जीव हो गए तथा चंद्रकूट पर्वत पर आने पर अपने यथार्थ रूप में आ गए वास्तव में शक्ति रूप पार्वती के अभाव में शिवजी हो गए थे पार्वती ही उन्हें शक्ति व मंगलकारी रूप में प्रतिष्ठित कर जगदीश्वर बनाने में सक्षम है


Conclusion:सिद्ध पीठ चंद्रबदनी मंदिर टिहरी जनपद के हिंडोला खाल विकासखंड में समुद्र तल से 8000 फीट की ऊंचाई पर चंद्कूट पर्वत पर स्थित है स्कंद पुराण केदारखंड में इसे भुनेश्वरी पीठ नाम से भी जाना जाता है यहां पर श्रद्धालुओं के लिए नेखरी में गढ़वाल मंडल विकास निगम का पर्यटक आवास गृह है यहां जाने के लिए ऋषिकेश से 106 किलोमीटर देवप्रयाग होते हुए पहुंचते हैं और नई टिहरी से 7 किलोमीटर दूरी पर अंजनिसेन होते हुए नेखरी से जाते हुए यहां तक पहुंचते हैं बताया जाता है कि यहां पर जो भी लोग भक्ति भाव से अपने मन्नत मांगने आता है वह पूर्ण होती है माता के मंदिर में पूजा अर्चना के लिए कंदमूल फल अगरबत्ती धूप बत्ती चुनने चांदी के छत्र चढ़ावे के रूप में समर्पित करते हैं वास्तव में चंद्रबदनी मंदिर में एक आलोकित आत्म शक्ति मिलती है इसे आत्म शक्ति को तलाशने के लिए देश से विदेशों के श्रद्धालु मां के दर्शन करने आते हैं चंद्र पर्वत से चारों तरफ सुंदर सा हिमालय और पहाड़िया दिखते हैं

इसके विजुअल एफटीपी में स्लग के नाम से भेजे हैं
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