श्रीनगर: उत्तराखंड में पर्वतीय क्षेत्रों से लगातार हो रहा पलायन प्रदेश के लिए वाकई चिंता की बात है. ऐसे में हर बार पलायन को रोकने के लिए रिवर्स पलायन पर बात तो की जाती है लेकिन ये धरातल पर कम ही देखने को मिलता है. आज ईटीवी भारत आपको एक ऐसी ही शख्सियत के बारे में बताने जा रहा है जोकि तमाम सुख सुविधाओं को छोड़कर अपनी मिट्टी की ओर वापस लौटा. रिवर्स पलायन कर लोगों के लिए नजीर बन रहे हरीश काला कोई आम व्यक्ति नहीं हैं. हरीश काला एक एक्टर हैं जोकि कई फिल्मों और हिंदी धारावाहिकों में अपने अभिनय का लोहा मनवा चुके हैं.
श्रीनगर गढ़वाल से 10 किमी दूर हरे-भरे पेड़ों के बीच क्यूंसू गांव में रह रहे ये बुर्जग हरीश काला ने करीब 30 साल हिन्दी फिल्म इंडस्ट्री में काम किया. हरीश काला 25 साल की उम्र में गांव छोड़कर मुम्बई चले गये थे. जहां उन्होंने कई सालों तक संघर्ष किया. साल 1989 में बाल दिवस से शुरू हुए अन्तरराष्ट्रीय बाल फिल्म फेस्टिवल में लेखक शेखर जोशी की कहानी दाज्यू पर बनी 'दाज्यू' फिल्म को फिल्म फेस्टिवल की ओपनिंग फिल्म के तौर पर चयनित किया गया. जिस फिल्म को खुद बाॅलीवुड के महानायक अभिताभ बच्चन समेत कई जानी मानी हस्तियों ने भी खूब सराहा.
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हरीश काला ने मुम्बई में 80-90 के दशक में कई जाने माने बैनरों में काम किया. उन्होनें दाज्यू फिल्म समेत डीआर इसारा की औरत का इन्तकाम, एलवी प्रसाद की उधार का सिन्दूर, लखनऊ दूरदर्शन की पहली फीचर फिल्म मृत्युदंड समेत 35 से ज्यादा फिल्मों व कई दूरदर्शन धारावाहिकों और एड फिल्मों में अभिनय किया. उतराखंड से ही तालुकात रखने वाले शेखर जोशी की दाज्यू कहानी पर बनी फिल्म ने उन्हें पहचान दी. जिसमें उन्होनें लाखों लोगों के बीच उतराखंड के पहाड़ी लड़के की भूमिका निभाकर उतराखंड को भी विश्वमंच पर दिखाया.
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आज के दौर में जहां लोग सुविधाओं के लिए पहाड़ी इलाकों से लगातार पलायन कर रहे हैं वहीं हरीश काला ने तमाम सुख सुविधाएं होने के बाद भी गांव की ओर रुख किया. आज हरीश काला उन सब लोगों के लिए एक नजीर बन रहे हैं जोकि नौकरी की तलाश में बाहर जाकर वहीं बस जाते हैं.