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दीपावली के बाद धूमधाम से मनाया गया बर्तातोड़, सदियों से चली आ रही है परंपरा

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Published : Nov 6, 2021, 10:25 AM IST

Updated : Nov 6, 2021, 10:44 AM IST

बर्तातोड़ के लिए पूरे गांव से रस्सी बनाने के लिए प्रत्येक घर से सेलू, रस्सी बनाने के प्रयोग में लाई जाने वाली घास को एकत्रित किया जाता है. जिसके बाद गांव के बड़े बुजुर्ग एक लंबी व मोटी रस्सी तैयार करते हैं. शाम के समय गांव के सभी लोग सामूहिक स्थान यानि मण्डाण पर जमा होकर इस रस्सी को नहलाकर पूजा-अर्चना कर तिलक करते हैं. जिसके बाद रस्साकशी (Tug of war) का खेल जोकि ढोल-नगाड़ों की थाप पर शुरू होता है.

Bartatodu is celebrated
Bartatodu is celebrated

धनौल्टी: उत्तराखंड में कुछ पर्व ऐसे भी है जो धीरे-धीरे केवल नाम तक ही सिमट कर रह गये हैं. इसका मुख्य कारण गांवों से हो रहा पलायन भी है. जिस कारण लोग गांवों में मनाने वाले त्योहारों को भूलते जा रहे हैं लेकिन कुछ गांवों में आज भी ऐसे पर्व बड़े धूमधाम से मनाए जाते हैं, जोकि अपनी-अपनी परंपराओं के द्योतक हैं. इनमें बर्तातोड़ भी एक ऐसा ही पर्व है. इस पर्व को दीपावली के एक दिन बाद अन्नकूट के दिन मनाया जाता है. लोग इसे पौराणिक काल से जोड़कर देखते हैं. हालांकि, जानकारों के अपने-अपने अलग तर्क हैं.

यूं तो उत्तराखंड में समय-समय पर मनाये जाने वाले त्योहार अपने-अपने क्षेत्र की परंपरा के अनुसार मनाये जाते हैं, जिसमें रांसू, तादि, मण्डाण आदि शामिल हैं लेकिन कुछ त्योहार ऐसे भी हैं जो अलग-अलग क्षेत्रों में अपनी-अपनी परंपराओं के अनुसार मनाये जाते हैं.

दीपावली के बाद धूमधाम से मनाया गया बर्तातोड़.

ऐसे बनाया बर्तातोड़: बर्तातोड़ के लिए पूरे गांव से रस्सी बनाने के लिए प्रत्येक घर से सेलू, रस्सी बनाने के प्रयोग में लाई जाने वाली घास को एकत्रित किया जाता है. जिसके बाद गांव के बड़े बुजुर्ग एक लंबी व मोटी रस्सी तैयार करते हैं. शाम के समय गांव के सभी लोग सामूहिक स्थान यानि मण्डाण पर जमा होकर इस रस्सी को नहलाकर पूजा-अर्चना कर तिलक करते हैं. जिसके बाद रस्साकशी का खेल जोकि ढोल-नगाड़ों की थाप पर शुरू होता है. जोकि काफी देर तक चलता है इस आयोजन मे पूरे गांव के लोग शामिल होते हैं.

स्थानीय लोग इस पर्व को रावण के अहंकार रूपी बल (जिसका प्रतीक एक रस्सी को माना जाता है) को तोड़कर जश्न मानने से जोड़ते हैं. लोगों का मानना है कि जब भगवान राम ने रावण को मारकर विजय हासिल की तो उसी के प्रतीक रूप में बलरूपी अहंकारी रस्सी को तोड़कर उसके घमंड को खत्म किया जाता है. उसके बाद रस्से के एक टुकड़े के दोनों सिरों को बांधकर बल्दियाताण करवाई जाती है. बल्दियाताण में दो बराबर के लोगों के कंधों पर रस्सी डालकर हाथ के सहारे जमीन पर लेटकर एक दूसरे को विपरीत दिशा में खींचा जाता है. इन चीजों को देखने व खेलने के लिए दूर-दराज के इलाकों से लोग यहां पहुंचते हैं.

पढ़ें: केदारनाथ और यमुनोत्री धाम के कपाट आज होंगे बंद, शीतकाल में यहां होती है पूजा

वहीं, कुछ लोग इसे प्रभु राम के दीपावली के दिन घर आने पर दो दिन तक मनाये जाने वाले त्योहार के दिन खाएं जाने वाले पकवानों के बाद रस्साकशी कर पाचन करने से जोड़ते हैं. जानकारों का तर्क है कि दो दिन तरह-तरह के पकवान खाने पीने के बाद उसके पाचन के लिए सदियों से इस प्रकार के गतिविधियां या आयोजन किये जाते हैं.

धनौल्टी: उत्तराखंड में कुछ पर्व ऐसे भी है जो धीरे-धीरे केवल नाम तक ही सिमट कर रह गये हैं. इसका मुख्य कारण गांवों से हो रहा पलायन भी है. जिस कारण लोग गांवों में मनाने वाले त्योहारों को भूलते जा रहे हैं लेकिन कुछ गांवों में आज भी ऐसे पर्व बड़े धूमधाम से मनाए जाते हैं, जोकि अपनी-अपनी परंपराओं के द्योतक हैं. इनमें बर्तातोड़ भी एक ऐसा ही पर्व है. इस पर्व को दीपावली के एक दिन बाद अन्नकूट के दिन मनाया जाता है. लोग इसे पौराणिक काल से जोड़कर देखते हैं. हालांकि, जानकारों के अपने-अपने अलग तर्क हैं.

यूं तो उत्तराखंड में समय-समय पर मनाये जाने वाले त्योहार अपने-अपने क्षेत्र की परंपरा के अनुसार मनाये जाते हैं, जिसमें रांसू, तादि, मण्डाण आदि शामिल हैं लेकिन कुछ त्योहार ऐसे भी हैं जो अलग-अलग क्षेत्रों में अपनी-अपनी परंपराओं के अनुसार मनाये जाते हैं.

दीपावली के बाद धूमधाम से मनाया गया बर्तातोड़.

ऐसे बनाया बर्तातोड़: बर्तातोड़ के लिए पूरे गांव से रस्सी बनाने के लिए प्रत्येक घर से सेलू, रस्सी बनाने के प्रयोग में लाई जाने वाली घास को एकत्रित किया जाता है. जिसके बाद गांव के बड़े बुजुर्ग एक लंबी व मोटी रस्सी तैयार करते हैं. शाम के समय गांव के सभी लोग सामूहिक स्थान यानि मण्डाण पर जमा होकर इस रस्सी को नहलाकर पूजा-अर्चना कर तिलक करते हैं. जिसके बाद रस्साकशी का खेल जोकि ढोल-नगाड़ों की थाप पर शुरू होता है. जोकि काफी देर तक चलता है इस आयोजन मे पूरे गांव के लोग शामिल होते हैं.

स्थानीय लोग इस पर्व को रावण के अहंकार रूपी बल (जिसका प्रतीक एक रस्सी को माना जाता है) को तोड़कर जश्न मानने से जोड़ते हैं. लोगों का मानना है कि जब भगवान राम ने रावण को मारकर विजय हासिल की तो उसी के प्रतीक रूप में बलरूपी अहंकारी रस्सी को तोड़कर उसके घमंड को खत्म किया जाता है. उसके बाद रस्से के एक टुकड़े के दोनों सिरों को बांधकर बल्दियाताण करवाई जाती है. बल्दियाताण में दो बराबर के लोगों के कंधों पर रस्सी डालकर हाथ के सहारे जमीन पर लेटकर एक दूसरे को विपरीत दिशा में खींचा जाता है. इन चीजों को देखने व खेलने के लिए दूर-दराज के इलाकों से लोग यहां पहुंचते हैं.

पढ़ें: केदारनाथ और यमुनोत्री धाम के कपाट आज होंगे बंद, शीतकाल में यहां होती है पूजा

वहीं, कुछ लोग इसे प्रभु राम के दीपावली के दिन घर आने पर दो दिन तक मनाये जाने वाले त्योहार के दिन खाएं जाने वाले पकवानों के बाद रस्साकशी कर पाचन करने से जोड़ते हैं. जानकारों का तर्क है कि दो दिन तरह-तरह के पकवान खाने पीने के बाद उसके पाचन के लिए सदियों से इस प्रकार के गतिविधियां या आयोजन किये जाते हैं.

Last Updated : Nov 6, 2021, 10:44 AM IST
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