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टिहरी सुमन पुस्तकालय में देखरेख के अभाव में सड़ रहे 100 साल पुराने दुर्लभ दस्तावेज

टिहरी के सुमन पुस्तकालय (Tehri Suman Library) में 100 साल पुराने दुर्लभ दस्तावेज (100 year old rare documents in Tehri) पांडुलिपियां रखी गई हैं, जहां इनका सही से संरक्षण नहीं किया जा रहा है. नई टिहरी पुस्तकालय में देखरेख के अभाव में राजशाही के जमाने के ये दस्तावेज सड़ने (Documents rotting in the new Tehri library) लगे हैं.

Rare documents of 100 years old rotting due to lack of maintenance
देखरेख के अभाव में सड़ रहे 100 साल पुराने दुर्लभ दस्तावेज
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Published : Oct 22, 2022, 3:26 PM IST

Updated : Oct 22, 2022, 5:59 PM IST

टिहरी: राजशाही के जमाने में हस्तलिखित दुर्लभ दस्तावेज पांडुलिपि सड़ने (handwritten rare document manuscript verge decay) की कगार पर हैं. यहां एक कर्मचारी के भरोसे पूरा पुस्तकालय (Entire library with one employee) चल रहा है. टिहरी सुमन पुस्तकालय में 100 साल पुरानी पुस्तकें और दुर्लभ दस्तावेज हैं. नई टिहरी शहर के बुद्धिजीवी वर्गों ने शासन प्रशासन से सुमन पुस्तकालय में रखे गए 100 साल से अधिक दस्तावेजों की सुरक्षा के लिए कर्मचारियों को रखने की मांग की है. साथ ही इन दस्तावेजों को संरक्षित करने के लिए लिए मांग उठाई है.

बता दें कि तीन नदियों के बीच राजा सुदर्शन शाह ने 18 अक्टूबर 1815 में पुरानी टिहरी शहर को बसाया था. पुरानी टिहरी में लाइब्रेरी की स्थापना 1923 में नरेन्द्र शाह ने की थी. जिसकी देखरेख राज परिवार के लोग करते थे. लेकिन, राजशाही शासन समाप्त होने पर ये लाइब्रेरी सरकार के शिक्षा विभाग को सौंप दी गई. उसी दौरान इसका नाम सुमन लाइब्रेरी रखा गया. पुरानी टिहरी में ये श्रीदेव सुमन लाइब्रेरी, राजमाता स्कूल और कॉन्वेंट स्कूल घंटाघर के पास बना हुआ था, जहां पर हर समय पढ़ने वालों की भीड़ लगी रहती थी.

देखरेख के अभाव में सड़ रहे 100 साल पुराने दुर्लभ दस्तावेज

पढ़ें- दूसरों को 'रौशनी' देने के बाद आज खुद 'अंधेरे' में टिहरी के रहवासी, सरकार से बंधी उम्मीद

टिहरी डैम बनने के बाद श्रीदेव सुमन लाइब्रेरी को साल 2000 में नई टिहरी के बौराड़ी में शिफ्ट कर दिया गया. लाइब्रेरी की देखरेख करने वाले एक मात्र कर्मचारी विशन सिंह रांगड़ ने बताया कि यह सुमन लाइब्रेरी राजाओं के जमाने की है. इसमें 35 से 40 हजार पुस्तकें हैं. इनमें राजाओं के हस्तलिखित पाण्डुलिपियां भी हैं. जिन्हें राजा महाराजाओं ने खुद लिखा है. यहां पर कर्मचारियों के अभाव के कारण इन दुर्लभ पुस्तकों का संरक्षण नहीं हो पा रहा है. इनमें ऐसे ऐसे दुर्लभ हस्तलिखित पुस्तकें हैं, जो आज दुनिया के किसी भी पुस्तकालय में देखने को नहीं मिलती है.

पढ़ें- उत्तराखंड में आधुनिकता और विकास की बाट जोह रहा है टिहरी शहर

वहीं, 20 से अधिक देशों में हिन्दुराष्ट्र के सम्बंध में अपना व्यख्यान देने वाले नई टिहरी में स्थित राजकीय इंटर कॉलेज के प्रवक्ता शिक्षाविद् सुशील कोटनाला, जिन्हें एक दर्जन से अधिक बोली भाषाओं का ज्ञान है. इन्होंने राजशाही के जमाने की आश्चर्यजनक दुर्लभ पांडुलिपि व राजाओं के द्वारा हस्तलिखित पुस्तकों को देखा है, जो लगभग 100 साल से अधिक पुरानी हैं. उन्होंने कहा कि दुर्लभ चीजों को बचाने के लिए समाज के सभी लोगों को आगे आने की जरूरत है. जिससे हमारी आने वाली पीढ़ी हमारे पूर्वजों के बारे में जान सकेगी, साथ ही इस पुस्तकालय में राजवैद्य द्वारा लिखी 100 साल पुराने दुर्लभ भेषज हस्तलिखित पांडुलिपियां है. जिसके अध्ययन से कई असाध्य बीमारियों का फार्मूला निकालकर बीमारियों का इलाज किया जा सकता है. ऐसे दुर्लभ रिकॉर्ड को संभालने के लिये सरकार की तरफ से कोई पहल नहीं की गई. जिस कारण आज यह दुर्लभ रिकॉर्ड सड़ने लग गए हैं. कई रिकॉर्ड रखरखाव के अभाव में चूहों ने कुतर दिए हैं.

पढ़ें- यादों का एक शहर 'टिहरी', कम होते पानी में दिखता है 'संसार' और आंखों में आंसू

पुस्तकालय की हालत को देखकर शिक्षाविद सुशील कोटनाला का मन व्यथित है. पुरानी टिहरी के इतिहास के बारे में उन्होंने बताया कि पुरानी टिहरी 18 दिसंबर 1815 को राजा महाराजा सुदर्शन शाह ने बसाया था. शुरू में यह पर धुनारों की पांच छह लोगों की बस्ती थी, जो भागीरथी नदी को पार करवाते थे. भागीरथी, भिलंगना, घृतगंगा के संगम पर पुरानी टिहरी बसाया गया. राजा सुदर्शन शाह की 6 पीढ़ियों ने 1950 तक यहां पर राज किया. महाराजा सुदर्शन शाह के पुत्र भवानी शाह हुए और भवानी शाह के पुत्र प्रताप शाह हुए जिनके द्वारा प्रतापनगर बसाया. प्रताप शाह के पुत्र कीर्ति शाह हुए. जिन्होंने कीर्तिनगर बसाया. कीर्ति शाह के पुत्र नरेंद्र शाह हुए. जिन्होंने नरेंद्रनगर बसाया. सातवीं पीढ़ी में परमार वंश के राजा मानवेंद्र शाह हुए ओर मानवेंद्र शाह का 1946 में राज्यभिषेक किया. 1949 में प्रजामंडल के आंदोलन के फल स्वरूप टिहरी राजशाही से स्वतंत्र हुआ और टिहरी राजशाही का भारत में विलय हो गया. उस समय यह उत्तर प्रदेश का हिस्सा था, सन 1960 में उत्तरकाशी जिला टिहरी का ही हिस्सा था, जो बाद में अलग जिला बना.

टिहरी: राजशाही के जमाने में हस्तलिखित दुर्लभ दस्तावेज पांडुलिपि सड़ने (handwritten rare document manuscript verge decay) की कगार पर हैं. यहां एक कर्मचारी के भरोसे पूरा पुस्तकालय (Entire library with one employee) चल रहा है. टिहरी सुमन पुस्तकालय में 100 साल पुरानी पुस्तकें और दुर्लभ दस्तावेज हैं. नई टिहरी शहर के बुद्धिजीवी वर्गों ने शासन प्रशासन से सुमन पुस्तकालय में रखे गए 100 साल से अधिक दस्तावेजों की सुरक्षा के लिए कर्मचारियों को रखने की मांग की है. साथ ही इन दस्तावेजों को संरक्षित करने के लिए लिए मांग उठाई है.

बता दें कि तीन नदियों के बीच राजा सुदर्शन शाह ने 18 अक्टूबर 1815 में पुरानी टिहरी शहर को बसाया था. पुरानी टिहरी में लाइब्रेरी की स्थापना 1923 में नरेन्द्र शाह ने की थी. जिसकी देखरेख राज परिवार के लोग करते थे. लेकिन, राजशाही शासन समाप्त होने पर ये लाइब्रेरी सरकार के शिक्षा विभाग को सौंप दी गई. उसी दौरान इसका नाम सुमन लाइब्रेरी रखा गया. पुरानी टिहरी में ये श्रीदेव सुमन लाइब्रेरी, राजमाता स्कूल और कॉन्वेंट स्कूल घंटाघर के पास बना हुआ था, जहां पर हर समय पढ़ने वालों की भीड़ लगी रहती थी.

देखरेख के अभाव में सड़ रहे 100 साल पुराने दुर्लभ दस्तावेज

पढ़ें- दूसरों को 'रौशनी' देने के बाद आज खुद 'अंधेरे' में टिहरी के रहवासी, सरकार से बंधी उम्मीद

टिहरी डैम बनने के बाद श्रीदेव सुमन लाइब्रेरी को साल 2000 में नई टिहरी के बौराड़ी में शिफ्ट कर दिया गया. लाइब्रेरी की देखरेख करने वाले एक मात्र कर्मचारी विशन सिंह रांगड़ ने बताया कि यह सुमन लाइब्रेरी राजाओं के जमाने की है. इसमें 35 से 40 हजार पुस्तकें हैं. इनमें राजाओं के हस्तलिखित पाण्डुलिपियां भी हैं. जिन्हें राजा महाराजाओं ने खुद लिखा है. यहां पर कर्मचारियों के अभाव के कारण इन दुर्लभ पुस्तकों का संरक्षण नहीं हो पा रहा है. इनमें ऐसे ऐसे दुर्लभ हस्तलिखित पुस्तकें हैं, जो आज दुनिया के किसी भी पुस्तकालय में देखने को नहीं मिलती है.

पढ़ें- उत्तराखंड में आधुनिकता और विकास की बाट जोह रहा है टिहरी शहर

वहीं, 20 से अधिक देशों में हिन्दुराष्ट्र के सम्बंध में अपना व्यख्यान देने वाले नई टिहरी में स्थित राजकीय इंटर कॉलेज के प्रवक्ता शिक्षाविद् सुशील कोटनाला, जिन्हें एक दर्जन से अधिक बोली भाषाओं का ज्ञान है. इन्होंने राजशाही के जमाने की आश्चर्यजनक दुर्लभ पांडुलिपि व राजाओं के द्वारा हस्तलिखित पुस्तकों को देखा है, जो लगभग 100 साल से अधिक पुरानी हैं. उन्होंने कहा कि दुर्लभ चीजों को बचाने के लिए समाज के सभी लोगों को आगे आने की जरूरत है. जिससे हमारी आने वाली पीढ़ी हमारे पूर्वजों के बारे में जान सकेगी, साथ ही इस पुस्तकालय में राजवैद्य द्वारा लिखी 100 साल पुराने दुर्लभ भेषज हस्तलिखित पांडुलिपियां है. जिसके अध्ययन से कई असाध्य बीमारियों का फार्मूला निकालकर बीमारियों का इलाज किया जा सकता है. ऐसे दुर्लभ रिकॉर्ड को संभालने के लिये सरकार की तरफ से कोई पहल नहीं की गई. जिस कारण आज यह दुर्लभ रिकॉर्ड सड़ने लग गए हैं. कई रिकॉर्ड रखरखाव के अभाव में चूहों ने कुतर दिए हैं.

पढ़ें- यादों का एक शहर 'टिहरी', कम होते पानी में दिखता है 'संसार' और आंखों में आंसू

पुस्तकालय की हालत को देखकर शिक्षाविद सुशील कोटनाला का मन व्यथित है. पुरानी टिहरी के इतिहास के बारे में उन्होंने बताया कि पुरानी टिहरी 18 दिसंबर 1815 को राजा महाराजा सुदर्शन शाह ने बसाया था. शुरू में यह पर धुनारों की पांच छह लोगों की बस्ती थी, जो भागीरथी नदी को पार करवाते थे. भागीरथी, भिलंगना, घृतगंगा के संगम पर पुरानी टिहरी बसाया गया. राजा सुदर्शन शाह की 6 पीढ़ियों ने 1950 तक यहां पर राज किया. महाराजा सुदर्शन शाह के पुत्र भवानी शाह हुए और भवानी शाह के पुत्र प्रताप शाह हुए जिनके द्वारा प्रतापनगर बसाया. प्रताप शाह के पुत्र कीर्ति शाह हुए. जिन्होंने कीर्तिनगर बसाया. कीर्ति शाह के पुत्र नरेंद्र शाह हुए. जिन्होंने नरेंद्रनगर बसाया. सातवीं पीढ़ी में परमार वंश के राजा मानवेंद्र शाह हुए ओर मानवेंद्र शाह का 1946 में राज्यभिषेक किया. 1949 में प्रजामंडल के आंदोलन के फल स्वरूप टिहरी राजशाही से स्वतंत्र हुआ और टिहरी राजशाही का भारत में विलय हो गया. उस समय यह उत्तर प्रदेश का हिस्सा था, सन 1960 में उत्तरकाशी जिला टिहरी का ही हिस्सा था, जो बाद में अलग जिला बना.

Last Updated : Oct 22, 2022, 5:59 PM IST
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