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बच्चों का आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए चलाई गई मस्ती की पाठशाला, DM ने किया शुभारंभ - curriculam class

रुद्रप्रयाग में आनन्दम पाठयचर्चा कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ, जहां पर बच्चों को कई चीजों के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई.

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डीएम मंगेश घिल्डियाल ने दो दिवसीय आनन्दम पाठयचर्चा कार्यक्रम का किया शुभारंभ
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Published : Nov 28, 2019, 3:19 PM IST

रुद्रप्रयाग: जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान में दो दिवसीय आनन्दम पाठयचर्चा कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया. इस दौरान बतौर मुख्य अतिथि पहुंचे जिलाधिकारी मंगेश घिल्डियाल ने कहा कि आनन्दम करिकुलम में ध्यान की एक्टिविटी में फोकस किया जा रहा है, क्योंकि बच्चों का ध्यान काफी भटकता है.

पढ़ें- स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट: दून में सड़क चौड़ीकरण का काम शुरू, जाम लगाने वालों पर होगी कार्रवाई

कार्यक्रम के दौरान डीएम मंगेश घिल्डियाल ने बताया कि आनन्दम करिकुलम की क्लास नर्सरी से लेकर कक्षा 8 तक के बच्चों के लिए है. इससे बच्चों को आत्मविश्वास बढ़ाने और खुश रहने के साथ भावनात्मक रूप से मजबूत बनने की कला सिखाई जाती है. उन्होंने कहा कि समय के साथ साक्षरता दर में वृद्धि हुई है, लेकिन मानवीय मूल्यों में हृास हुआ है और वर्तमान समय में देश के विकास के लिए सशक्त मानवीय मूल्यों से युक्त मानवीय संसाधन की आवश्यकता है, इसलिए इसे करिकुलम में जोड़ा जा रहा है.

वहीं मास्टर ट्रेनर डॉ. इन्दुकान्ता भण्डारी ने बताया कि वर्तमान में बच्चों में तनाव, हिंसा, उत्कंठा, अवसाद, भयभीत करना एवं खिल्ली उड़ाना जैसे नकारात्मक स्वभाव बढ़ते जा रहे हैं. उन्होंने बताया कि यूनेस्को ने भी अपनी 1996 की रिपोर्ट में सिखाने के चार स्तम्भ जानने के लिए सीखना, करने के लिए सीखना, साथ रहने के लिए सीखना व स्वबोध के लिए सीखने पर जोर दिया है. जिसको देखते हुए ये कार्यक्रम आयोजित हुआ.

रुद्रप्रयाग: जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान में दो दिवसीय आनन्दम पाठयचर्चा कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया. इस दौरान बतौर मुख्य अतिथि पहुंचे जिलाधिकारी मंगेश घिल्डियाल ने कहा कि आनन्दम करिकुलम में ध्यान की एक्टिविटी में फोकस किया जा रहा है, क्योंकि बच्चों का ध्यान काफी भटकता है.

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कार्यक्रम के दौरान डीएम मंगेश घिल्डियाल ने बताया कि आनन्दम करिकुलम की क्लास नर्सरी से लेकर कक्षा 8 तक के बच्चों के लिए है. इससे बच्चों को आत्मविश्वास बढ़ाने और खुश रहने के साथ भावनात्मक रूप से मजबूत बनने की कला सिखाई जाती है. उन्होंने कहा कि समय के साथ साक्षरता दर में वृद्धि हुई है, लेकिन मानवीय मूल्यों में हृास हुआ है और वर्तमान समय में देश के विकास के लिए सशक्त मानवीय मूल्यों से युक्त मानवीय संसाधन की आवश्यकता है, इसलिए इसे करिकुलम में जोड़ा जा रहा है.

वहीं मास्टर ट्रेनर डॉ. इन्दुकान्ता भण्डारी ने बताया कि वर्तमान में बच्चों में तनाव, हिंसा, उत्कंठा, अवसाद, भयभीत करना एवं खिल्ली उड़ाना जैसे नकारात्मक स्वभाव बढ़ते जा रहे हैं. उन्होंने बताया कि यूनेस्को ने भी अपनी 1996 की रिपोर्ट में सिखाने के चार स्तम्भ जानने के लिए सीखना, करने के लिए सीखना, साथ रहने के लिए सीखना व स्वबोध के लिए सीखने पर जोर दिया है. जिसको देखते हुए ये कार्यक्रम आयोजित हुआ.

Intro:दो दिवसीय आनंदम करिकुलम पाठयचर्चा कार्यशाला शुरू
बच्चों को मूल्यों के बारे में खेल विधि से सिखाया
रुद्रप्रयाग। जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान में दो दिवसीय आनन्दम पाठयचर्चा कार्यक्रम शुरू हो गया है। कार्यक्रम का शुभारंभ करते हुए जिलाधिकारी मंगेश घिल्डियाल ने कहा कि आनन्दम करिकुलम में ध्यान की एक्टिविटी में फोकस किया जा रहा है। चलने, खाने, देखने, सुनने व हर चीज में फोकस किया जाना चाहिये। क्योकि बच्चों का ध्यान काफी भटकता है। साथ ही मूल्यों के बारे में खेल विधि से सिखाया जाना चाहिये, जैसे सम्मान करने, भरोसा करने, अपने लक्ष्य के प्रति फोकस आदि।Body:बताया कि आनन्दम करिकुलम की क्लास नर्सरी से लेकर कक्षा 8 तक के बच्चों के लिए है। इससे बच्चो में आत्मविश्वास को बढाने और खश रहने के साथ भावनात्मक रूप से मजबूत बनने की कला सिखाई जाती है। अच्छी शिक्षा, अच्छी विल्डिंग के साथ ही अच्छा इन्सान बनाने से पूर्ण होती है। यह सबकुछ शिक्षक पर निर्भर करता है। इस पाठ्यक्रम की आवश्यकता इसलिए पड़ी क्योकि समय के साथ साक्षरता दर में वृद्धि हुई, लेकिन मानवीय मूल्यों में हृास हुआ है। वर्तमान समय मंे देश के विकास के लिए सशक्त मानवीय मूल्यों से युक्त मानवीय संसाधन की आवश्यकता है, इसलिए इसे करिकुलम में जोड़ा जा रहा है।
मास्टर टेªनर डाॅ इन्दुकान्ता भण्डारी ने प्रशिक्षण देते हुए बताया कि कोठारी कमीशन, नई शिक्षा नीति ने भी शांति एवं सौहार्द जैसे मूल्यों के विकास पर बल दिया। वर्तमान में बच्चों में तनाव, हिंसा, उत्कंठा, अवसाद, भयभीत करना एवं खिल्ली उडाना जैसे नकारात्मक स्वभाव बढते जा रहे हंै, इसलिए यूनेस्को ने भी अपनी 1996 की रिपोर्ट में सिखाने के चार स्तम्भ जानने के लिए सीखना, करने के लिए सीखना, साथ रहने के लिए सीखना व स्वबोध के लिए सीखने पर जोर दिया है। इससे मनुष्य को सतत खुषी व अपने लक्ष्य की छवि अच्छे ढ़ग से पता चलेगी व उसी के अनुरूप कार्य करेंगे। Conclusion:
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