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बुसान इंटरनेशनल शॉर्ट फिल्म फेस्टिवल में 'पाताल टी' का चयन, उत्तराखंडी युवाओं ने अपने हुनर का मनवाया लोहा - स्टूडियो यूके 13

रुद्रप्रयाग के तीन युवाओं की शॉर्ट फिल्म 'पाताल टी' बुसान इंटरनेशनल शॉर्ट फिल्म फेस्टिवल में शामिल हो गई है. शार्ट फिल्म 'Pataal Tee' दुनिया के 111 देशों से आई 2,548 फिल्मों में से वर्ल्ड प्रीमियर के लिए चुने जाने वाली 40 फिल्मों में से 14 वें स्थान पर चुनी गई है.

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Published : Feb 27, 2022, 5:08 PM IST

रुद्रप्रयाग: अगर आपमें जोश, जुनून और जज्बा हो तो मंजिल तक पहुंचने में देर नहीं लगती. ऐसा ही साबित किया है रुद्रप्रयाग जिले के युवाओं की एक टीम ने, जिन्होंने पहाड़ से लंबा सफर तय किया और आज उनकी शॉर्ट फिल्म पाताल टी को बुसान इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में जगह मिली है. जिसके बाद अपने हुनर से ये युवा देश दुनिया में छा गए हैं. हर कोई इन युवाओं की इस सफलता की सराहना कर रहा है.

रुद्रप्रयाग जिले के 3 युवाओं की शॉर्ट फिल्म 'पाताल टी' (होली वाटर) 39वें बुसान इंटरनेशनल शॉर्ट फिल्म फेस्टिवल (कोरिया) में दुनिया के 111 देशों से आई 2,548 फिल्मों में से वर्ल्ड प्रीमियर के लिए चुने जाने वाली 40 फिल्मों में से 14 वें स्थान पर चुनी गई है. फिल्म के निर्माता-निर्देशक संतोष रावत क्यूड़ी दशज्यूला, सिनेमेटोग्राफर बिट्टू रावत चोपता जाखणी, एग्जीक्यूटिव प्रोड्यूसर गजेंद्र रौतेला और उनके बेटे कैमरा मैन दिव्यांशु रौतेला कोयलपुर (डांगी गुनाऊं) के निवासी हैं.

इन दिनों देश दुनिया की सुर्खियों में छाए रुद्रप्रयाग जिले के ये युवा अपनी प्रतिभा की चमक को अंतरराष्ट्रीय सिनेमा के फलक पर बिखेर रहे हैं. इनमें कैमरा मैन दिव्यांशु रौतेला सबसे युवा हैं और छोटी उम्र में ही उन्होंने कैमरे के पीछे रहकर अपनी प्रतिभा को अंतरराष्ट्रीय फलक तक पहुंचा दिया है. बुसान इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल ऑस्कर के लिए गेटवे माना जाता है.
ये भी पढ़ेंः अभ्यास मिलन 2022: अजय भट्ट ने किया फुल-ड्रेस रिहर्सल का उद्घाटन, विशाखापत्तनम में जुटे कई देशों के नौसैनिक

स्टूडियो यूके 13 की टीम द्वारा 'भोटिया भाषा की लोक कथा' में बनाई गई शॉर्ट फिल्म 'पाताल टी' (होली वाटर) का फिल्म फेस्टिवल में शामिल होना समस्त उत्तराखंड वासियों के लिए गर्व का क्षण है. यह फिल्म उत्तराखंड और खासकर भोटिया जनजाति को एक नए नजरिए से देश दुनिया के सामने लाई है. फिल्म के एग्जीक्यूटिव प्रोड्यूसर बताते हैं कि फिल्म की कथा पहाड़ के 'जीवन दर्शन' को दर्शाती है. अपने अंतिम समय पर दादा द्वारा पोते से कुछ ख्वाहिश रखना और पोते द्वारा उसे पूरा करने की कोशिश और प्रकृति के साथ सहजीवन और संघर्ष इसे और भी मानवीय और संवेदनशील बना देता है.

यही वह खास बात है कि जो भाषा और देश की सीमाओं को तोड़कर हमारी संवेदनाओं को झंकझोरती है. पूरी फिल्म में कैमरे का कमाल, प्राकृतिक रोशनी, लैंडस्केप और कलाकारों की बिना संवाद के अदाकारी इसे अद्भुत बना देती है. फिल्म के निर्देशक संतोष रावत कहते हैं कि यह एक साधारण पहाड़ की असाधारण कहानी है. ये सामूहिक जरूरतों, विपदाओं, अनदेखी बातों और कमजोरियों की कहानी भी है.

रुद्रप्रयाग: अगर आपमें जोश, जुनून और जज्बा हो तो मंजिल तक पहुंचने में देर नहीं लगती. ऐसा ही साबित किया है रुद्रप्रयाग जिले के युवाओं की एक टीम ने, जिन्होंने पहाड़ से लंबा सफर तय किया और आज उनकी शॉर्ट फिल्म पाताल टी को बुसान इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में जगह मिली है. जिसके बाद अपने हुनर से ये युवा देश दुनिया में छा गए हैं. हर कोई इन युवाओं की इस सफलता की सराहना कर रहा है.

रुद्रप्रयाग जिले के 3 युवाओं की शॉर्ट फिल्म 'पाताल टी' (होली वाटर) 39वें बुसान इंटरनेशनल शॉर्ट फिल्म फेस्टिवल (कोरिया) में दुनिया के 111 देशों से आई 2,548 फिल्मों में से वर्ल्ड प्रीमियर के लिए चुने जाने वाली 40 फिल्मों में से 14 वें स्थान पर चुनी गई है. फिल्म के निर्माता-निर्देशक संतोष रावत क्यूड़ी दशज्यूला, सिनेमेटोग्राफर बिट्टू रावत चोपता जाखणी, एग्जीक्यूटिव प्रोड्यूसर गजेंद्र रौतेला और उनके बेटे कैमरा मैन दिव्यांशु रौतेला कोयलपुर (डांगी गुनाऊं) के निवासी हैं.

इन दिनों देश दुनिया की सुर्खियों में छाए रुद्रप्रयाग जिले के ये युवा अपनी प्रतिभा की चमक को अंतरराष्ट्रीय सिनेमा के फलक पर बिखेर रहे हैं. इनमें कैमरा मैन दिव्यांशु रौतेला सबसे युवा हैं और छोटी उम्र में ही उन्होंने कैमरे के पीछे रहकर अपनी प्रतिभा को अंतरराष्ट्रीय फलक तक पहुंचा दिया है. बुसान इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल ऑस्कर के लिए गेटवे माना जाता है.
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स्टूडियो यूके 13 की टीम द्वारा 'भोटिया भाषा की लोक कथा' में बनाई गई शॉर्ट फिल्म 'पाताल टी' (होली वाटर) का फिल्म फेस्टिवल में शामिल होना समस्त उत्तराखंड वासियों के लिए गर्व का क्षण है. यह फिल्म उत्तराखंड और खासकर भोटिया जनजाति को एक नए नजरिए से देश दुनिया के सामने लाई है. फिल्म के एग्जीक्यूटिव प्रोड्यूसर बताते हैं कि फिल्म की कथा पहाड़ के 'जीवन दर्शन' को दर्शाती है. अपने अंतिम समय पर दादा द्वारा पोते से कुछ ख्वाहिश रखना और पोते द्वारा उसे पूरा करने की कोशिश और प्रकृति के साथ सहजीवन और संघर्ष इसे और भी मानवीय और संवेदनशील बना देता है.

यही वह खास बात है कि जो भाषा और देश की सीमाओं को तोड़कर हमारी संवेदनाओं को झंकझोरती है. पूरी फिल्म में कैमरे का कमाल, प्राकृतिक रोशनी, लैंडस्केप और कलाकारों की बिना संवाद के अदाकारी इसे अद्भुत बना देती है. फिल्म के निर्देशक संतोष रावत कहते हैं कि यह एक साधारण पहाड़ की असाधारण कहानी है. ये सामूहिक जरूरतों, विपदाओं, अनदेखी बातों और कमजोरियों की कहानी भी है.

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