रुद्रप्रयागः केदारनाथ तीर्थ पुरोहित समाज ने केदारनाथ धाम के कपाट बंद होने के बाद भी इन दिनों धाम में चल रहे द्वितीय चरण के पुनर्निर्माण कार्यों को बंद करने की मांग की है. तीर्थ पुरोहितों का कहना है कि शीतकाल में केदारनाथ धाम में बर्फबारी होती है. केदारनाथ धाम भौगोलिक दृष्टि से अति सवेंदशील है. ऐसे में जो भी कार्य यहां चल रहे हैं, वह बंद होने चाहिए.
केदारनाथ धाम के कपाट विगत 15 नवंबर को बंद हुए थे. हालांकि कपाट बंद होने के बाद भी धाम में लगभग 500 मजदूर मौजूद हैं, जो केदारनाथ धाम पुनर्निर्माण के द्वितीय चरण के कार्य कर रहे हैं. इस बीच धाम में बर्फबारी भी जारी है. चारों तरफ बर्फ की सफेद चादर बिछी हुई है. धाम में लगभग एक फीट बर्फ जमी हुई है. अब केदारनाथ के तीर्थ पुरोहितों ने धाम में शीतकाल में चल रहे कार्यों पर आपत्ति जताई है.
तीर्थ पुरोहितों ने ये भी कहा कि धाम में कोई भी मौजूद नहीं है. बावजूद इसके कुछ तीर्थ पुरोहितों को न्यायालय का हवाला दिया जा रहा है और उनके घरों पर नोटिस चिपकाए जा रहे हैं, जो कि सरासर गलत है. तीर्थ पुरोहितों ने उनके भवनों को तोड़ने से पहले उन्हें नए भवन देने की मांग की है. उन्होंने कहा कि शीतकाल में तीर्थ पुरोहितों को कोई नोटिस नहीं मिलना चाहिए. यदि इस प्रकार के कार्य जारी रहे तो तीर्थ पुरोहित शीतकाल में केदारनाथ जाकर धरना देंगे.
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एसडीएम को सौंपा ज्ञापन: तीर्थ पुरोहितों ने इस बाबत एसडीएम ऊखीमठ को ज्ञापन भी सौंपा है. ज्ञापन में केदारसभा के अध्यक्ष राजकुमार तिवारी एवं महामंत्री राजेंद्र प्रसाद तिवारी ने कहा कि केदारनाथ धाम पर्यावरण की दृष्टि से अत्यन्त संवेदनशील स्थान है. यात्राकाल के बाद शीतकाल में धाम में निर्माण कार्य चलते रहना अनुचित ही नहीं, बल्कि यहां की परम्पराओं के खिलाफ है. इसलिए शीतकाल में यहां पुनर्निर्माण कार्यों पर विराम लगा दिया जाए. उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि यदि सरकार एवं प्रशासन की इसी तरह कार्यशैली रही तो केदारसभा न्यायालय की शरण लेने के साथ ही अपने अधिकारों की रक्षा के लिए शीतकाल में भी केदारनाथ धाम में आंदोलन के लिए बाध्य होगी.
पर्यावरण विशेषज्ञों ने भी जताई चिंता: केदारनाथ धाम समेत उच्च हिमालयी क्षेत्रों में शीतकाल के दौरान निर्माण कार्य किए जाने पर पर्यावरण विशेषज्ञों ने भी चिंता जताई है. पर्यावरण विशेषज्ञ देव राघवेंद्र बदरी का कहना है कि केदारनाथ धाम में शीतकाल के समय निर्माण कार्य होने से इसका सीधा असर हिमालय पर पड़ रहा है. ऊंचाई वाले इलाकों में बर्फबारी नहीं हो रही है.