रुद्रप्रयाग: मौसम की बेरुखी के कारण विदेशी प्रवासी पक्षी कप्फू लगभग एक सप्ताह की देरी से तुंगनाथ घाटी पहुंचे हैं. सितंबर माह तक कप्फू तुंगनाथ घाटी की वादियों में प्रजनन के बाद वापस कजाकिस्तान चले जाएंगे.
पूरे विश्व में कफ्फू की 9 प्रजातियां पाईं जाती हैं और उत्तराखंड में सिर्फ 7 प्रजाति ही विचरण के लिए आते हैं. कप्फू पक्षी को धान की बुवाई या फिर गढ़वाली भाषा में ग्रीष्म ऋतु का घोतक माना जाता है. उत्तराखंड के गौरव नरेन्द्र सिंह नेगी सहित सभी लोक गायकों ने कप्फू पक्षी का गुणगान अपने गीतों में किया है.
गढ़वाली गीतों में कफ्फू का जिक्र
ऊँचि डांड्यू तुम नीसी जावा
घणी कुलायो तुम छाँटि होवा
मैकू लगी छ खुद मैतुड़ा की
बाबाजी को देखण देस देवा
मैत की मेरी तु त पौण प्यारी
सुणौ तु रैवार त मा को मेरी
गडू गदन्य व हिलाँस कप्फू
मैत को मेर तुम गीत गावा
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कफ्फू पक्षी की विशेषता
कप्फू पक्षी की पूरे विश्व में हिमालयन कुकू, लार्ज हॉक कुकू, कॉमन हॉक कुकू, इंडियन कुकू, यूरेशियन कुकू, जैकोबिन कुकू सहित 9 प्रजातियां पाईं जातीं हैं. कप्फू पक्षी हिमालय में कजाकिस्तान से प्रवास के लिए आते हैं और सितंबर माह में वापस चले जाते हैं. कप्फू पक्षी की दो प्रजातियां अरुणाचल प्रदेश में प्रवास करती हैं और बाकी की सात प्रजातियां बांज और बुरांश के जंगलों में प्रवास करने के लिए आतीं हैं. कप्फू पक्षी कोयल की तरह दूसरे पक्षियों के घोसलों में अंडे देते हैं.
रुद्रप्रयाग के पक्षी प्रेमी यशपाल सिंह नेगी के मुताबिक लाॅकडाउन के कारण कप्फू पक्षी को विचरण करने में आजादी मिली है. इंसानों की आवाजाही से तुंगनाथ घाटी में इन पक्षियों के विचरण करने में बाधा उत्पन्न होती थी.