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रुद्रप्रयाग में जाख मेले का समापन, अभिनेता हेमंत पांडे भी हुए शामिल

रुद्रप्रयाग में आयोजित जाख मेला का समापन हुआ. मेले में हजारों श्रद्धालुओं ने जाख देवता के दर्शन किए. जाख मेले को देखने के लिए बॉलीवुड अभिनेता हेमंत पांडे भी पहुंचे थे.

Rudraprayag
रुद्रप्रयाग
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Published : Apr 15, 2021, 9:15 PM IST

रुद्रप्रयाग: केदारघाटी के देवाधिदेव जाख देवता के दहकते अंगारों पर नृत्य के साथ ही प्रसिद्ध जाख मेला संपन्न हुआ. इस दौरान हजारों भक्तों ने भगवान यक्ष का आशीर्वाद ग्रहणकर सुख-समृद्धि की कामना की. जाख देवता के दहकते अंगारों पर नृत्य करने की परंपरा सदियों से चली आ रही है. मेला सांस्कृतिक एवं धार्मिक परंपराओं से जुड़े होने के कारण यहां हर साल सैकड़ों की संख्या में भक्त जाख राजा के दर्शन के लिए आते हैं. जाख मेले को देखने के लिए बॉलीवुड अभिनेता हेमंत पांडे भी पहुंचे.

दहकते अंगारों पर नृत्य करते जाख देवता

बैसाखी के दूसरे दिन गुप्तकाशी से पांच किलोमीटर दूर जाखधार में जाख मेले का आयोजन होता है. जाख मेले में देवशाल, कोठेड़ा, नारायनकोटी के ग्रामीण शामिल होते हैं. इसके अलावा रुद्रपुर, बणसू, देवर, सांकरी, ह्यूण, नाला, गुप्तकाशी, गढ़तरा, सेमी, भैंसारी समेत कई गांवों के ग्रामीण मेले को सफल बनाने में सहयोग करते हैं. मेला शुरू होने से दो दिन पूर्व कोठेड़ा एवं नारायणकोटी के भक्तजन पौराणिक परंपरानुसार नंगे पांव जंगल में जाकर लकड़ियां एकत्रित कर जाख मंदिर में लाते हैं.

जाख मंदिर में कई टन लकड़ियों से अग्निकुंड तैयार किया जाता है. एक दिन पहले रात में अग्निकुंड व मंदिर की पूजा करने के बाद अग्निकुंड में रखी लकड़ियों पर अग्नि प्रज्वलित की जाती है. यहां पर नारायणकोटी एवं कोठेड़ा के ग्रामीण रातभर जागरण करते हैं. दूसरे दिन जाखराजा के पश्वात इन्हीं धधकते अंगारों पर नृत्य करते हैं. इस दृश्य को देखते के लिए दूर-दूर से भक्तजन बड़ी संख्या में पहुंचते हैं. गुरुवार को जिला मुख्यालय रुद्रप्रयाग से लगभग 35 किमी दूरी पर स्थित जाखधार में जाख मेला हर्षोउल्लास के साथ संपन्न हुआ.

मद्महेश्वर घाटी में बैसाखी मेले का समापन

11वीं सदी से चली आ रही है परंपरा

11वीं सदी से चली आ रही यह परंपरा आज भी उतने उत्साह से मनाई जाती है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जाख शिव के यक्षस्वरूप जाख भक्त गांव निवासी मदन सिंह राणा पर अवतरित होते हैं. गुरुवार को यह देव यात्रा भ्यत्त गांव से क्वठ्याड़ा गांव होते हुए देवशाल गांव पहुंची. जहां देवशाल के देवशाली ब्राह्मणों ने मंत्रोच्चारण के भगवान शिव की स्तुति की. जिसके बाद देवशाल में सूक्ष्म विराम के बाद भगवान जाख ग्रामीण श्रद्धालुओं के साथ अपने देवस्थल जाख में पहुंचे. जाख देव ने प्रसन्न होकर दहकते हुए अंगारों के अग्निकुंड में प्रवेश कर भक्तों को साक्षात यक्ष रूप में दर्शन दिए.

ये भी पढ़ेंः भगवान शिव की जांघ से उत्पन्न हुए थे जंगम, जानिए क्यों साधु-संतों से ही मांगते हैं भिक्षा

मद्महेश्वर घाटी के रांसी गांव में आयोजित चार दिवसीय बैसाखी मेला शिव पार्वती नृत्य व राम रावण युद्ध के साथ मेले का समापन हुआ. मेले के समापन के दौरान मदमहेश्वर घाटी के दर्जनों गांवों के सैकड़ों ग्रामीणों ने बैसाखी मेले में भाग लिया. इससे पूर्व मधु गंगा से राकेश्वरी मंदिर तक 51 जल कलशों से भव्य जल कलश यात्रा निकाली गई, जिसमें काफी संख्या में ग्रामीणों ने हिस्सा लिया.

रुद्रप्रयाग: केदारघाटी के देवाधिदेव जाख देवता के दहकते अंगारों पर नृत्य के साथ ही प्रसिद्ध जाख मेला संपन्न हुआ. इस दौरान हजारों भक्तों ने भगवान यक्ष का आशीर्वाद ग्रहणकर सुख-समृद्धि की कामना की. जाख देवता के दहकते अंगारों पर नृत्य करने की परंपरा सदियों से चली आ रही है. मेला सांस्कृतिक एवं धार्मिक परंपराओं से जुड़े होने के कारण यहां हर साल सैकड़ों की संख्या में भक्त जाख राजा के दर्शन के लिए आते हैं. जाख मेले को देखने के लिए बॉलीवुड अभिनेता हेमंत पांडे भी पहुंचे.

दहकते अंगारों पर नृत्य करते जाख देवता

बैसाखी के दूसरे दिन गुप्तकाशी से पांच किलोमीटर दूर जाखधार में जाख मेले का आयोजन होता है. जाख मेले में देवशाल, कोठेड़ा, नारायनकोटी के ग्रामीण शामिल होते हैं. इसके अलावा रुद्रपुर, बणसू, देवर, सांकरी, ह्यूण, नाला, गुप्तकाशी, गढ़तरा, सेमी, भैंसारी समेत कई गांवों के ग्रामीण मेले को सफल बनाने में सहयोग करते हैं. मेला शुरू होने से दो दिन पूर्व कोठेड़ा एवं नारायणकोटी के भक्तजन पौराणिक परंपरानुसार नंगे पांव जंगल में जाकर लकड़ियां एकत्रित कर जाख मंदिर में लाते हैं.

जाख मंदिर में कई टन लकड़ियों से अग्निकुंड तैयार किया जाता है. एक दिन पहले रात में अग्निकुंड व मंदिर की पूजा करने के बाद अग्निकुंड में रखी लकड़ियों पर अग्नि प्रज्वलित की जाती है. यहां पर नारायणकोटी एवं कोठेड़ा के ग्रामीण रातभर जागरण करते हैं. दूसरे दिन जाखराजा के पश्वात इन्हीं धधकते अंगारों पर नृत्य करते हैं. इस दृश्य को देखते के लिए दूर-दूर से भक्तजन बड़ी संख्या में पहुंचते हैं. गुरुवार को जिला मुख्यालय रुद्रप्रयाग से लगभग 35 किमी दूरी पर स्थित जाखधार में जाख मेला हर्षोउल्लास के साथ संपन्न हुआ.

मद्महेश्वर घाटी में बैसाखी मेले का समापन

11वीं सदी से चली आ रही है परंपरा

11वीं सदी से चली आ रही यह परंपरा आज भी उतने उत्साह से मनाई जाती है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जाख शिव के यक्षस्वरूप जाख भक्त गांव निवासी मदन सिंह राणा पर अवतरित होते हैं. गुरुवार को यह देव यात्रा भ्यत्त गांव से क्वठ्याड़ा गांव होते हुए देवशाल गांव पहुंची. जहां देवशाल के देवशाली ब्राह्मणों ने मंत्रोच्चारण के भगवान शिव की स्तुति की. जिसके बाद देवशाल में सूक्ष्म विराम के बाद भगवान जाख ग्रामीण श्रद्धालुओं के साथ अपने देवस्थल जाख में पहुंचे. जाख देव ने प्रसन्न होकर दहकते हुए अंगारों के अग्निकुंड में प्रवेश कर भक्तों को साक्षात यक्ष रूप में दर्शन दिए.

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मद्महेश्वर घाटी के रांसी गांव में आयोजित चार दिवसीय बैसाखी मेला शिव पार्वती नृत्य व राम रावण युद्ध के साथ मेले का समापन हुआ. मेले के समापन के दौरान मदमहेश्वर घाटी के दर्जनों गांवों के सैकड़ों ग्रामीणों ने बैसाखी मेले में भाग लिया. इससे पूर्व मधु गंगा से राकेश्वरी मंदिर तक 51 जल कलशों से भव्य जल कलश यात्रा निकाली गई, जिसमें काफी संख्या में ग्रामीणों ने हिस्सा लिया.

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