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अलकनंदा व मंदाकिनी का संगम स्थान है रुद्रप्रयाग, रुद्रनाथ मंदिर में उमड़ते हैं भक्त

आस्था के सबसे बड़े केंद्र देवभूमि उत्तराखंड में अनेक देवस्थान हैं जहां हर समय भक्तों का तांता लगा रहता है. रुद्रप्रयाग भी इनमें से एक है. रुद्रप्रयाग जिले का संगम स्थल पंच प्रयागों में विशेष महत्व रखता है.भगवान रुद्रनाथ का मंदिर होने के कारण इस स्थान का रुद्रप्रयाग पड़ा है.

रुद्रनाथ मंदिर
रुद्रनाथ मंदिर
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Published : Feb 11, 2020, 8:19 AM IST

Updated : Feb 11, 2020, 10:41 AM IST

रुद्रप्रयागः उत्तराखंड को देवभूमि के नाम से जाना जाता है. देवभूमि उत्तराखंड में प्रसिद्ध चार धामों में केदारनाथ, बदरीनाथ, गंगोत्री एवं यमुनोत्री हैं, जहां ग्रीष्मकाल में देश-विदेश से श्रद्धालुओं का आना जाना लगा रहता है. देवभूमि उत्तराखंड में रुद्रप्रयाग जिला मुख्यालय ऐसा मुख्य द्वार है, जहां से भगवान बदरीनाथ और केदारनाथ के दर्शनों के लिए भक्त निकलते हैं.

आस्था का केंद्र रुद्रनाथ मंदिर

रुद्रप्रयाग में अलकनंदा व मंदाकिनी का संगम हैं और भगवान रुद्रनाथ का मंदिर होने के कारण इस स्थान का रुद्रप्रयाग पड़ा है. भगवान केदारनाथ और बदरीनाथ की यात्रा पर जाने वाले तीर्थयात्री संगम के दर्शन करने को जरूर पहुंचते हैं.

माना जाता है कि जो इस स्थान के दर्शन करता है, उसकी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं. केदारनाथ से मंदाकिनी निकलती है तो बदरीनाथ से अलकनंदा नदी आती है, जहां मंदाकिनी नदी का प्रवाह तेज रहता है तो अलकनंदा शांत और निर्मल रहती है.दोनों नदियों के संगम के दीदार को श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं. रुद्रप्रयाग जिले का संगम स्थल पंच प्रयागों में विशेष महत्व रखता है.

यह भी पढ़ेंःमहाकुंभ 2021 की तैयारियों को लेकर अधिकारियों की जिम्मेदारी तय

यह संगम पंच प्रयागों में दिव्य संगम है. इस स्थान पर नारदशिला है, जहां पर नारदमुनि जी ने सौ वर्षो तक तपस्या की थी, जिसके बाद भगवान शिव ने उन्हें दर्शन देकर संगीत का ज्ञान दिया. साथ ही प्रसाद स्वरूप में महति नाम की वीणा दी. इसके बाद नारदमुनि ने भगवान शंकर से प्रार्थना की कि वे इस स्थान पर अपने सपरिवार के साथ निवास करें. उनकी विनती पर भगवान शंकर सपरिवार इस स्थान पर निवास कर रहे हैं.

भगवान शंकर का दिव्य मंदिर होने और दो नदियों के मिलन होने से इस स्थान का नाम रुद्रप्रयाग पड़ा है. मान्यता यह भी कि सच्चे मन से भगवान शंकर को जल चढ़ाने से मनुष्य के सभी कष्टों का निवारण हो जाता इै. इस स्थान पर मां चंडिका का मंदिर भी है. शाम को यहां गंगा आरती की जाती है.

रुद्रप्रयागः उत्तराखंड को देवभूमि के नाम से जाना जाता है. देवभूमि उत्तराखंड में प्रसिद्ध चार धामों में केदारनाथ, बदरीनाथ, गंगोत्री एवं यमुनोत्री हैं, जहां ग्रीष्मकाल में देश-विदेश से श्रद्धालुओं का आना जाना लगा रहता है. देवभूमि उत्तराखंड में रुद्रप्रयाग जिला मुख्यालय ऐसा मुख्य द्वार है, जहां से भगवान बदरीनाथ और केदारनाथ के दर्शनों के लिए भक्त निकलते हैं.

आस्था का केंद्र रुद्रनाथ मंदिर

रुद्रप्रयाग में अलकनंदा व मंदाकिनी का संगम हैं और भगवान रुद्रनाथ का मंदिर होने के कारण इस स्थान का रुद्रप्रयाग पड़ा है. भगवान केदारनाथ और बदरीनाथ की यात्रा पर जाने वाले तीर्थयात्री संगम के दर्शन करने को जरूर पहुंचते हैं.

माना जाता है कि जो इस स्थान के दर्शन करता है, उसकी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं. केदारनाथ से मंदाकिनी निकलती है तो बदरीनाथ से अलकनंदा नदी आती है, जहां मंदाकिनी नदी का प्रवाह तेज रहता है तो अलकनंदा शांत और निर्मल रहती है.दोनों नदियों के संगम के दीदार को श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं. रुद्रप्रयाग जिले का संगम स्थल पंच प्रयागों में विशेष महत्व रखता है.

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यह संगम पंच प्रयागों में दिव्य संगम है. इस स्थान पर नारदशिला है, जहां पर नारदमुनि जी ने सौ वर्षो तक तपस्या की थी, जिसके बाद भगवान शिव ने उन्हें दर्शन देकर संगीत का ज्ञान दिया. साथ ही प्रसाद स्वरूप में महति नाम की वीणा दी. इसके बाद नारदमुनि ने भगवान शंकर से प्रार्थना की कि वे इस स्थान पर अपने सपरिवार के साथ निवास करें. उनकी विनती पर भगवान शंकर सपरिवार इस स्थान पर निवास कर रहे हैं.

भगवान शंकर का दिव्य मंदिर होने और दो नदियों के मिलन होने से इस स्थान का नाम रुद्रप्रयाग पड़ा है. मान्यता यह भी कि सच्चे मन से भगवान शंकर को जल चढ़ाने से मनुष्य के सभी कष्टों का निवारण हो जाता इै. इस स्थान पर मां चंडिका का मंदिर भी है. शाम को यहां गंगा आरती की जाती है.

Intro:रुद्रप्रयाग प्रसिद्ध स्थल
अलकनंदा व मंदाकिनी का संगम स्थान है रुद्रप्रयाग
भगवान शंकर ने नारदमुनि को दिए थे दर्शन
नारदमुनि ने इस स्थान पर सौ वर्षो तक की थी तपस्या
रुद्रनाथ मंदिर का है विशेष महत्व,
रुद्रप्रयाग। उत्तराखण्ड को देवभूमि के नाम से जाना जाता है। देवभूमि उत्तराखण्ड में प्रसिद्ध चार धामों में केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री एवं यमुनोत्री हैं। जहां ग्रीष्मकाल में देश-विदेश से श्रद्धालुओं का आना जाना लगा रहता है, देवभूमि उत्तराखण्ड में रुद्रप्रयाग जिला मुख्यालय ऐसा मुख्य द्वार है, जहां से भगवान बद्रीनाथ और केदारनाथ के दर्शनों के लिए भक्त निकलते हैं। रुद्रप्रयाग में अलकनंदा व मंदाकिनी का संगम हैं और भगवान रुद्रनाथ का मंदिर होने के कारण इस स्थान का रुद्रप्रयाग पड़ा है। भगवान केदारनाथ और बद्रीनाथ की यात्रा पर जाने वाले तीर्थयात्री संगम के दर्शन करने को जरूर पहुंचते हैं। माना जाता है कि जो इस स्थान के दर्शन करता है, उसकी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। केदारनाथ से मंदाकिनी निलकती है तो बद्रीनाथ से अलकनंदा नदी आती है। जहां मंदाकिनी नदी का प्रवाह तेज रहता है तो अककनंदा शांत और निर्मल रहती है। दोनों नदियों के संगम के दीदार को श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं।Body:रुद्रप्रयाग जिले का संगम स्थल पंच प्रयागों में विशेष महत्व रखता है। यह संगम पंच प्रयागों में दिव्य संगम है। इस स्थान पर नारदशिला है, जहां पर नारदमुनि जी ने सौ वर्षो तक तपस्या की थी, जिसके बाद भगवान शिव ने उन्हें दर्शन देकर संगीत का ज्ञान दिया। साथ ही प्रसाद स्वरूप में महति नाम की वीणा दी। इसके बाद नारदमुनि ने भगवान शंकर से प्रार्थना की वे इस स्थान पर अपने सपरिवार के साथ निवास करें। उनकी विन्नति पर भगवान शंकर सपरिवार इस स्थान पर निवास कर रहे हैं। भगवान शंकर का दिव्य मंदिर होने और दो नदियों के मिलन होने से इस स्थान का नाम रुद्र्रप्रयाग पड़ा है। मान्यता यह भी कि सच्चे मन से भगवान शंकर को जल चढ़ाने से मनुष्य के सभी कष्टों का निवारण हो जाता इै। इस स्थान पर मां चंडिका का मंदिर भी है, जबकि हर शाम को यहां पर स्थानीय लोगों की ओर गंगा आरती की जाती है।
बाइट - स्वामी धर्मानंद जी महाराज, महंत रुद्रनाथ मंदिरConclusion:
Last Updated : Feb 11, 2020, 10:41 AM IST
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