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मां हरियाली देवी की डोली वापस लौटी अपने ससुराल, सदियों से चली आ रही है परंपरा

मां हरियाली देवी के अपने मायके जाने के यह परंपरा सदियों से चली आ रही है. वहीं, मां हरियाली की इस यात्रा में शामिल होने के लिए भक्तों को एक सप्ताह पूर्व से ही तामसिक भोजन का त्याग करना पड़ता है.

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Published : Oct 23, 2022, 5:33 PM IST

रुद्रप्रयाग: प्रसिद्ध सिद्धपीठ मां हरियाली देवी की डोली सूरज की पहली किरण के साथ कांठा मंदिर पहुंचने पर सैकड़ों भक्तों के जयकारों से पूरा वातावरण गूंज उठा. जिसके बाद पुजारी ने मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना व हवन करके मां हरियाली को भोग लगाया. जिसे भक्तों ने भंडारे के प्रसाद के रूप में ग्रहण किया. वहीं, दोपहर एक बजे मां हरियाली की डोली वापस ससुराल जसोली मंदिर में लौट आई.

बता दें कि हर साल धनतेरस पर शुरू होने वाली सिद्धपीठ हरियाली देवी की मायके जाने की पैदल यात्रा सदियों से चली आ रही है. गत शनिवार देर शाम को जसोली स्थित हरियाली देवी मंदिर में विशेष पूजा अर्चना करने के उपरान्त मंदिर के गर्भगृह से हरियाली देवी की भोगमूर्ति को बाहर निकालकर डोली में सजाया गया. जिसके बाद शाम लगभग 7 बजे से मां हरियाली की डोली गाजे बाजों के साथ मायके कांठा मंदिर के लिए रवाना हुई.

पढ़ें- धनतेरस-दीपावली पर बाजारों में लौटी रौनक, ड्रोन से हल्द्वानी पुलिस कर रही निगरानी

वहीं, इस दौरान भक्तों के जयकारों के साथ क्षेत्र का पूरा वातावरण भक्तिमय हो उठा. लगभग 8 किमी. लंबी यात्रा के दौरान मां हरियाली देवी की डोली ने अपने पहले पड़ाव बांसों में विश्राम किया. कुछ समय यहां पर ठहरने के बाद फिर से डोली अपने मायके लिए चल पड़ी. इस दौरान मां हरियाली देवी ने पंचरंग्या स्थान पर स्नान किया. जैसे ही मां की डोली कांठा मंदिर के समीप पहुंची, वैसे ही मायके पक्ष के लोगों ने डोली की अगुवाई करने पहुंचे.

बुधवार को सूर्य की पहली किरण के साथ ही डोली कांठा मंदिर में पहुंची, जो मां हरियाली का मायका माना जाता है. इसके बाद डोली ने मंदिर की एक परिक्रमा करने के बाद मंदिर के पुजारी ने मां की भव्य पूजा-अर्चना कर गाय के दूध की खीर का भोग लगाया. पुजारी ने यहां पर जौ, तिल व घी की आहुतियों से हवन भी किया. यहां पर पूरी व हलवा बनाकर भक्तों ने इसको प्रसाद के रूप में ग्रहण किया.

पढ़ें- विदेशों तक पहुंच रही कुमाऊं की ऐपण कला, नैनीताल की बेटी हेमलता के हाथों की दिख रही कलाकारी

तामसिक भोज का करना पड़ता है त्याग: इस यात्रा में जाने के लिए भक्तों को एक सप्ताह पूर्व से ही तामसिक भोजन का त्याग करना पड़ता है. एक सप्ताह पूर्व से भोजन में प्याज, लहसुन, मीट, अंडा समेत कई तामसिक खाद्य पदार्थों को त्याग करने वाला व्यक्ति ही इस यात्रा में शामिल हो सकता है. इस यात्रा में महिलाओं के जाने को प्रतिबंध है. कुछ पल कांठा में विश्राम करने के बाद हरियाली देवी अपने ससुराल जसोली के लिए वापस लौटी आई. इस अवसर पर पुजारी हरीश प्रसाद नौटियाल, विनोद मैठाणी, सच्चिदानंद चमोली और दूर-दराज क्षेत्रों से आए सैकड़ों भक्तजन उपस्थित थे.

रुद्रप्रयाग: प्रसिद्ध सिद्धपीठ मां हरियाली देवी की डोली सूरज की पहली किरण के साथ कांठा मंदिर पहुंचने पर सैकड़ों भक्तों के जयकारों से पूरा वातावरण गूंज उठा. जिसके बाद पुजारी ने मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना व हवन करके मां हरियाली को भोग लगाया. जिसे भक्तों ने भंडारे के प्रसाद के रूप में ग्रहण किया. वहीं, दोपहर एक बजे मां हरियाली की डोली वापस ससुराल जसोली मंदिर में लौट आई.

बता दें कि हर साल धनतेरस पर शुरू होने वाली सिद्धपीठ हरियाली देवी की मायके जाने की पैदल यात्रा सदियों से चली आ रही है. गत शनिवार देर शाम को जसोली स्थित हरियाली देवी मंदिर में विशेष पूजा अर्चना करने के उपरान्त मंदिर के गर्भगृह से हरियाली देवी की भोगमूर्ति को बाहर निकालकर डोली में सजाया गया. जिसके बाद शाम लगभग 7 बजे से मां हरियाली की डोली गाजे बाजों के साथ मायके कांठा मंदिर के लिए रवाना हुई.

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वहीं, इस दौरान भक्तों के जयकारों के साथ क्षेत्र का पूरा वातावरण भक्तिमय हो उठा. लगभग 8 किमी. लंबी यात्रा के दौरान मां हरियाली देवी की डोली ने अपने पहले पड़ाव बांसों में विश्राम किया. कुछ समय यहां पर ठहरने के बाद फिर से डोली अपने मायके लिए चल पड़ी. इस दौरान मां हरियाली देवी ने पंचरंग्या स्थान पर स्नान किया. जैसे ही मां की डोली कांठा मंदिर के समीप पहुंची, वैसे ही मायके पक्ष के लोगों ने डोली की अगुवाई करने पहुंचे.

बुधवार को सूर्य की पहली किरण के साथ ही डोली कांठा मंदिर में पहुंची, जो मां हरियाली का मायका माना जाता है. इसके बाद डोली ने मंदिर की एक परिक्रमा करने के बाद मंदिर के पुजारी ने मां की भव्य पूजा-अर्चना कर गाय के दूध की खीर का भोग लगाया. पुजारी ने यहां पर जौ, तिल व घी की आहुतियों से हवन भी किया. यहां पर पूरी व हलवा बनाकर भक्तों ने इसको प्रसाद के रूप में ग्रहण किया.

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तामसिक भोज का करना पड़ता है त्याग: इस यात्रा में जाने के लिए भक्तों को एक सप्ताह पूर्व से ही तामसिक भोजन का त्याग करना पड़ता है. एक सप्ताह पूर्व से भोजन में प्याज, लहसुन, मीट, अंडा समेत कई तामसिक खाद्य पदार्थों को त्याग करने वाला व्यक्ति ही इस यात्रा में शामिल हो सकता है. इस यात्रा में महिलाओं के जाने को प्रतिबंध है. कुछ पल कांठा में विश्राम करने के बाद हरियाली देवी अपने ससुराल जसोली के लिए वापस लौटी आई. इस अवसर पर पुजारी हरीश प्रसाद नौटियाल, विनोद मैठाणी, सच्चिदानंद चमोली और दूर-दराज क्षेत्रों से आए सैकड़ों भक्तजन उपस्थित थे.

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