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2013 की आपदा के बाद पटरी पर लौटी थी आर्थिकी, कोरोना ने किया सब 'चौपट'

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Published : May 8, 2020, 3:58 PM IST

केदारनाथ यात्रा पर अकेले रुद्रप्रयाग ही नहीं बल्कि टिहरी, चमोली, उत्तरकाशी और पौड़ी आदि जिलों की जनता भी निर्भर है. इन जिलों के लोग यहां रोजगार करने आते हैं. लेकिन इस बार कोरोना वायरस और लॉकडाउन ने सबका रोजगार छीन लिया है.

रुद्रप्रयाग
रुद्रप्रयाग

रुद्रप्रयाग: जिले की 50 प्रतिशत से अधिक आबादी तीर्थाटन और पर्यटन पर निर्भर रहती है. ग्रीष्मकाल में छह माह तक बाबा केदार के दर्शन करने वाले तीर्थयात्री और शीतकाल में बर्फबारी का लुत्फ उठाने वाले पर्यटकों की वजह से जिले के लोगों को रोजगार मिलता है. अकेले रुद्रप्रयाग ही नहीं बल्कि टिहरी, चमोली, उत्तरकाशी और पौड़ी जिले के व्यापारी भी चारधाम यात्रा पर निर्भर रहते हैं. लेकिन इस बार कोरोना वायरस से बचाव के लिए लगाए गए लॉकडाउन में श्रद्धालुओं को किसी भी धाम में जाने की अनुमति नहीं है. इस वजह से व्यापारियों को करोड़ों रुपए का नुकसान उठाना पड़ रहा है.

पटरी पर लौटी अर्थव्यवस्था को चौपट कर गया कोरोना.

उत्तराखंड का रुद्रप्रयाग जिला धार्मिक और पर्यटन क्षेत्र में महत्वपूर्ण है. इसी जिले की 50 प्रतिशत आर्थिकी पर्यटन पर निर्भर करती है. रुद्रप्रयाग में बाबा केदार के अलावा द्वितीय केदार मदमहेश्वर और तृतीय केदार तुंगनाथ भी विराजमान हैं. इसके अलावा मिनी स्विटजरलैंड के नाम से विख्यात पर्यटक स्थल चोपता, दुगलबिट्टा, देवरियाताल आदि पर्यटक स्थल भी मौजूद हैं.

हर साल अप्रैल-मई में केदारनाथ धाम के कपाट खुलते हैं, जिसके बाद तीर्थ यात्रियों का हुजूम उमड़ना शुरू होता है. साल 2013 की आपदा के बाद पिछले साल 2019 में श्रद्धालुओं ने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए थे. पिछले सीजन में यहां करीब 10 लाख से ज्यादा तीर्थयात्री पहुंचे थे. इससे होटल, ढाबा, लॉज, घोड़ा-खच्चर और डंडी-कंडी का व्यवसाय करने वाले को लाखों की आय अर्जित हुई थी.

पढ़ें- लॉकडाउन ने दुश्मनों की करा दी यारी, एक ही घर में रहे हैं तेंदुआ-टाइगर बारी-बारी

केदारनाथ यात्रा पर अकेले रुद्रप्रयाग ही नहीं, बल्कि टिहरी, चमोली, उत्तरकाशी, पौड़ी आदि जिलों की जनता भी निर्भर है. इन जिलों के लोग यहां रोजगार करने आते हैं. कोई घोड़ा-खच्चर तो कोई होटल, लॉज व अन्य व्यापारिक प्रतिष्ठानों का संचालन करके अपनी आजीविका का निर्वहन करते हैं.

पिछले साल केदारनाथ पैदल मार्ग पर संचालित होने वाले घोड़े-खच्चरों से 45 करोड़ की आय अर्जित हुई थी. इसके अलावा देश-विदेश से पहुंचे भक्तों ने बाबा केदार के चरणों 19 करोड़ रुपए से अधिक का दान दिया था. जबकि होटल, लॉज, ढाबा, व्यापारिक प्रतिष्ठान आदि के संचालन से यहां के व्यवसायियों को 500 करोड़ रुपए से अधिक की आय अर्जित हुई थी.

वहीं केदारनाथ धाम के लिये संचालित होने वाली हेली कंपनियां भी केदारघाटी से लगभग पचास करोड़ रुपए ले गई थीं. हेली सेवा की कमाई का एक बड़ा हिस्सा प्रदेश सरकार व बदरी-केदार मंदिर समिति को भी जाता है. इस बार सीधा-सीधा 20 हजार परिवार रोजगार से प्रभावित हुए हैं.

पढ़ें- केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कैलाश मानसरोवर के लिए लिंक रोड का किया उद्घाटन

यात्रा कब तक शुरू हो सकती है इसको लेकर जब जिलाधिकारी मंगेश घिल्डियाल से बात कि गई तो उन्होंने कहा कि केदारनाथ धाम में यात्रियों की आवाजाही को लेकर कुछ कहा नहीं जा सकता है. तीर्थाटन और पर्यटन जिले की रीढ़ की हड्डी हैं. लेकिन इस बार कोरोना वायरस के कारण पर्यटन व्यवसाय पूरी तरह से प्रभावित हुआ है. इसका असर लोगों की आर्थिक स्थिति पर पड़ा है. कई लोग इस बार बेरोजगार हो गए हैं.

तीर्थाटन और पर्यटन गतिविधियों के संचालन पर निर्भर रहने वाली रुद्रप्रयाग की जनता केदारनाथ के कपाट खुलने के बावजूद भी घरों में बैठी है. किसी को भी अंदाजा न था कि कोई ऐसी बीमारी आएगी और उनके सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो जाएगा. बाबा केदार के धाम और यहां के बाजारों में इन दिनों खूब चहल-कदमी होनी थी, लेकिन इस बार कोरोना से लगे लॉकडाउन के कारण रुद्रप्रयाग का बाजार और बाबा का धाम सूना पड़ा है. केदारनाथ यात्रा पर निर्भर रहने वाली यहां की जनता साल 2013 की आपदा के जख्मों से बमुश्किल उबर ही रही थी कि अब कोरोना वायरस ने एक बार फिर यहां की आर्थिकी को पटरी से उतार दिया है.

रुद्रप्रयाग: जिले की 50 प्रतिशत से अधिक आबादी तीर्थाटन और पर्यटन पर निर्भर रहती है. ग्रीष्मकाल में छह माह तक बाबा केदार के दर्शन करने वाले तीर्थयात्री और शीतकाल में बर्फबारी का लुत्फ उठाने वाले पर्यटकों की वजह से जिले के लोगों को रोजगार मिलता है. अकेले रुद्रप्रयाग ही नहीं बल्कि टिहरी, चमोली, उत्तरकाशी और पौड़ी जिले के व्यापारी भी चारधाम यात्रा पर निर्भर रहते हैं. लेकिन इस बार कोरोना वायरस से बचाव के लिए लगाए गए लॉकडाउन में श्रद्धालुओं को किसी भी धाम में जाने की अनुमति नहीं है. इस वजह से व्यापारियों को करोड़ों रुपए का नुकसान उठाना पड़ रहा है.

पटरी पर लौटी अर्थव्यवस्था को चौपट कर गया कोरोना.

उत्तराखंड का रुद्रप्रयाग जिला धार्मिक और पर्यटन क्षेत्र में महत्वपूर्ण है. इसी जिले की 50 प्रतिशत आर्थिकी पर्यटन पर निर्भर करती है. रुद्रप्रयाग में बाबा केदार के अलावा द्वितीय केदार मदमहेश्वर और तृतीय केदार तुंगनाथ भी विराजमान हैं. इसके अलावा मिनी स्विटजरलैंड के नाम से विख्यात पर्यटक स्थल चोपता, दुगलबिट्टा, देवरियाताल आदि पर्यटक स्थल भी मौजूद हैं.

हर साल अप्रैल-मई में केदारनाथ धाम के कपाट खुलते हैं, जिसके बाद तीर्थ यात्रियों का हुजूम उमड़ना शुरू होता है. साल 2013 की आपदा के बाद पिछले साल 2019 में श्रद्धालुओं ने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए थे. पिछले सीजन में यहां करीब 10 लाख से ज्यादा तीर्थयात्री पहुंचे थे. इससे होटल, ढाबा, लॉज, घोड़ा-खच्चर और डंडी-कंडी का व्यवसाय करने वाले को लाखों की आय अर्जित हुई थी.

पढ़ें- लॉकडाउन ने दुश्मनों की करा दी यारी, एक ही घर में रहे हैं तेंदुआ-टाइगर बारी-बारी

केदारनाथ यात्रा पर अकेले रुद्रप्रयाग ही नहीं, बल्कि टिहरी, चमोली, उत्तरकाशी, पौड़ी आदि जिलों की जनता भी निर्भर है. इन जिलों के लोग यहां रोजगार करने आते हैं. कोई घोड़ा-खच्चर तो कोई होटल, लॉज व अन्य व्यापारिक प्रतिष्ठानों का संचालन करके अपनी आजीविका का निर्वहन करते हैं.

पिछले साल केदारनाथ पैदल मार्ग पर संचालित होने वाले घोड़े-खच्चरों से 45 करोड़ की आय अर्जित हुई थी. इसके अलावा देश-विदेश से पहुंचे भक्तों ने बाबा केदार के चरणों 19 करोड़ रुपए से अधिक का दान दिया था. जबकि होटल, लॉज, ढाबा, व्यापारिक प्रतिष्ठान आदि के संचालन से यहां के व्यवसायियों को 500 करोड़ रुपए से अधिक की आय अर्जित हुई थी.

वहीं केदारनाथ धाम के लिये संचालित होने वाली हेली कंपनियां भी केदारघाटी से लगभग पचास करोड़ रुपए ले गई थीं. हेली सेवा की कमाई का एक बड़ा हिस्सा प्रदेश सरकार व बदरी-केदार मंदिर समिति को भी जाता है. इस बार सीधा-सीधा 20 हजार परिवार रोजगार से प्रभावित हुए हैं.

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यात्रा कब तक शुरू हो सकती है इसको लेकर जब जिलाधिकारी मंगेश घिल्डियाल से बात कि गई तो उन्होंने कहा कि केदारनाथ धाम में यात्रियों की आवाजाही को लेकर कुछ कहा नहीं जा सकता है. तीर्थाटन और पर्यटन जिले की रीढ़ की हड्डी हैं. लेकिन इस बार कोरोना वायरस के कारण पर्यटन व्यवसाय पूरी तरह से प्रभावित हुआ है. इसका असर लोगों की आर्थिक स्थिति पर पड़ा है. कई लोग इस बार बेरोजगार हो गए हैं.

तीर्थाटन और पर्यटन गतिविधियों के संचालन पर निर्भर रहने वाली रुद्रप्रयाग की जनता केदारनाथ के कपाट खुलने के बावजूद भी घरों में बैठी है. किसी को भी अंदाजा न था कि कोई ऐसी बीमारी आएगी और उनके सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो जाएगा. बाबा केदार के धाम और यहां के बाजारों में इन दिनों खूब चहल-कदमी होनी थी, लेकिन इस बार कोरोना से लगे लॉकडाउन के कारण रुद्रप्रयाग का बाजार और बाबा का धाम सूना पड़ा है. केदारनाथ यात्रा पर निर्भर रहने वाली यहां की जनता साल 2013 की आपदा के जख्मों से बमुश्किल उबर ही रही थी कि अब कोरोना वायरस ने एक बार फिर यहां की आर्थिकी को पटरी से उतार दिया है.

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