रुद्रप्रयागः जिला कार्यालय सभागार कक्ष में ई-वेस्ट (Electronic waste) निस्तारण संबंधी बैठक का आयोजन किया गया. इस दौरान 'जनपद में ई-कचरा प्रबंधन ई-कचरे से संसाधन क्षमता को साकार करने' संबंधी विषय में जिला स्तरीय अधिकारियों ने प्रतिभाग किया. वहीं, बैठक में ई-वेस्ट के निस्तारण और समाधान समेत पर्यावरण पर इसके प्रभाव को लेकर जानकारी दी गई.
दरअसल, गुरुवार को एक दिवसीय अभिषरण कार्यालय और बैठक आयोजित की गई. जिसमें उत्तराखंड राज्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद यानी यूकाॅस्ट (Uttarakhand State Council for Science And Technology) के संयुक्त निदेशक डाॅ. डीपी उनियाल ने शिरकत की. इस दौरान उन्होंने बताया कि ई-कचरा प्रबंधन परियोजना (E-waste management project) का कार्यान्वयन राज्य के दो जनपद देहरादून और रुद्रप्रयाग में किया जा रहा है. उन्होंने इसके उद्देश्य, जलवायु परिवर्तन एवं वैज्ञानिक तरीके से किए जाने वाले कचरा निस्तारण के बारे में विस्तार से बताया.
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वहीं, गैर सरकारी संगठन स्पेक्स के सचिव डाॅ बृजमोहन शर्मा ने ई-वेस्ट का पुनः उपयोग, मरम्मत, रिसाइकिल आदि के बारे में जानकारी दी. साथ ही उन्होंने ई-कचरे का पृथक्करण और उससे होने वाली आय की संभावनाओं को भी बताया. उन्होंने विभागीय अधिकारियों से कार्यक्रम के सफल और बेहतर संचालन के लिए सहयोग करने की अपील की. इस दौरान जिला स्तरीय अधिकारियों ने भी अपने सुझाव रखे.
आखिर क्या होता है ई-वेस्ट? जैसे-जैसे डिजिटलाइजेशन बढ़ रहा है, वैसे-वैसे ही लोग इलेक्ट्रॉनिक सामान का ज्यादा इस्तेमाल करने लगे हैं. इसमें कंप्यूटर, लैपटॉप, मोबाइल फोन, फ्रिज, टीवी समेत कई तरह के इलेक्ट्रॉनिक सामान शामिल हैं, लेकिन समस्या यह है कि जब ये इलेक्ट्रॉनिक उपकरण खराब हो जाते हैं. तब इन्हें इधर-उधर कहीं भी कूड़े में फेंक दिया जाता है. जिसे ई-वेस्ट यानी इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट कहा जाता है. जो आसानी से नष्ट नहीं होती है.
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ई-वेस्ट का पर्यावरण और स्वास्थ्य पर प्रभाव?
एक इलेक्ट्रॉनिक वस्तु को बनाने में काम आने वाली सामग्रियों में ज्यादातर विषैले पदार्थ जैसे कैडमियम, निकेल, क्रोमियम, बेरिलियम, आर्सेनिक और पारे का इस्तेमाल किया जाता है. ऐसे में यदि इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट का सही तरह से निस्तारण न किया जाए तो यह पर्यावरण को दूषित करने लगता है. इससे मिट्टी और भू-जल दूषित होता है, जिसका सीधा असर हमारे स्वास्थ्य पर पड़ता है.