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Shardiya Navratri 2023 : कालीमठ में उमड़ रही भक्तों की भीड़, विशेष पूजा के कार्यक्रमों की तिथि घोषित

Siddhpeeth Kalimath Temple located in Rudraprayag: रुद्रप्रयाग के कालीमठ मंदिर में विशेष पूजा कार्यक्रमों की तिथियां घोषित कर दी गई है. 20 अक्टूबर को रात्रि में काल रात्रि पूजन किया जाएगा. कहा जाता है कि सिद्धपीठ कालीमठ में युगों से प्रज्वलित धुनी की भस्म धारण करने से मनुष्य को सभी सुखों की प्राप्ति होती है.

Rudraprayag Kalimath Temple
रुद्रप्रयाग कालीमठ मंदिर
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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Oct 17, 2023, 7:13 PM IST

Updated : Oct 17, 2023, 10:57 PM IST

कालीमठ में उमड़ रही भक्तों की भीड़.

रुप्रयाग: नवरात्रि पर्व पर आस्था, आध्यात्म और पवित्रता की त्रिवेणी सिद्धपीठ कालीमठ और कालीशिला में बड़ी संख्या में भक्त मां काली के दर्शन के लिए पहुंच रहे हैं. माना जाता है कि जो भी भक्त मां काली के दरबार में श्रद्धा भाव से पूजा अर्चना करता है, उसकी मनोकामनाएं पूरी होती है.

शास्त्रों में वर्णन है कि प्राचीन काल में जब आसुरी शक्तियों से देवतागण प्रताड़ित होने लगे तो देवताओं ने भगवान शिव की तपस्या की. कई वर्ष बाद शिव प्रसन्न हुए और राक्षसों के उत्पात से बचने का उपाय पूछा. प्रभु ने असमर्थता जाहिर करते हुए कहा कि मां काली की तपस्या करो, वो ही तुम्हें मुक्ति का उपाय बता सकती हैं. देवताओं ने मां काली की उपासना की. देवताओं की तपस्या से प्रसन्न होकर मां काली ने देवताओं की समस्या पूछी.

अष्टमी पर मेले के आयोजन: देवताओं ने बताया कि रक्तबीज नामक दैत्य ने देवलोक पर आक्रमण कर दिया है और देवतागण भागते फिर रहे हैं. मां काली क्रोधित हो गई और कालीमठ नामक स्थान पर रक्तबीज के साथ कई माह तक युद्ध करने के बाद उसका वध करके गर्भगृह में समा गई. तब से लेकर आज तक मां काली के सभी रूपों की पूजा कालीमठ में होती है. नवरात्रि की अष्टमी के दिन कालीमठ में मेले का आयोजन किया जाता है.

भूत-पिचाश की बाधाएं होती है दूर: आध्यात्मिक, धार्मिक और सामाजिक दृष्टि से कालीमठ का विशेष महत्व है. सरस्वती नदी के तट पर स्थित सिद्धपीठ कालीमठ में स्थित मां काली, मां लक्ष्मी, मां सरस्वती, भैरवनाथ मंदिर में नवरात्रों के दौरान भक्त पूजा पाठ करते हैं. सिद्धपीठ कालीमठ मंदिर सरस्वती नदी के किनारे स्थित है. केदारनाथ हाईवे पर स्थित गुप्तकाशी से कालीमठ मात्र आठ किमी की दूरी पर है. कालीमठ में मां काली, महालक्ष्मी और सरस्वती के रूप में देवी का पूजन होता है. इस दिव्य स्थान में प्राचीनकाल से अखंड धुनी प्रज्वलित है. इस धुनी को धारण करने से भूत-पिचाश की बाधाएं दूर होती हैं. यहां पर प्रेत शिला, शक्ति शिला, मातंगी सहित अन्य शिलाएं भी विराजमान हैं. इसके अलावा क्षेत्रपाल, सिद्धेश्वर महादेव सहित गौरीशंकर के मंदिर भी विद्यमान हैं.
ये भी पढ़ेंः Shardiya Navratri 2023 : शारदीय नवरात्र के पहले दिन मां विंध्यवासिनी दरबार में उमड़ा भक्तों का सैलाब

कालीशिला में होते हैं देवी-देवताओं के दर्शन: कालीमठ से छह किमी की खड़ी चढ़ाई के बाद कालीशिला के दर्शन होते हैं. यहां पर भी नवरात्रों में बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं. कालीशिला को 64 शक्तिपुंजों की शिला माना गया है. कालीशिला के शीर्ष भाग पर अनेक मंत्रों के लिखे होने की बात सामने आती रही है. अनेक तंत्र-मंत्रों से युक्त यह शिला सिद्धि प्राप्ति के लिए सिद्धस्थल मानी गई है. लोगों का मानना है कि आज भी उपासकों को यहां वनदेवियों, यक्ष, गंधर्व, नाग समेत अन्य देवी-देवताओं के दर्शन होते हैं. धैर्यवान भक्त ही इस शिला की परिक्रमा कर सकता है. मान्यता है कि मां काली ने कालीशिला में शुंभ और निशुंभ नामक दैत्यों का वध कर देवताओं को असुरों के आतंक से निजात दिलाई थी. मां काली के दर्शन के लिए श्रद्धालु दूर-दूर से यहां पहुंचते हैं.

शारदीय नवरात्रों में होने वाली विशेष पूजा के कार्यक्रम: शारदीय नवरात्रों के तीसरे दिन सिद्धपीठ कालीमठ में सैकड़ों भक्तों ने पूजा-अर्चना कर विश्व समृद्धि व क्षेत्र के खुशहाली की कामना की. सिद्धपीठ कालीमठ व कोटि माहेश्वरी तीर्थ में प्रति दिन सैकड़ों भक्तों की आवाजाही होने से कालीमठ घाटी के विभिन्न हिल स्टेशनों पर रौनक बनी हुई है. मंदिर समिति की ओर से आगामी दिनों में सिद्धपीठ कालीमठ में होने वाली पूजाओं की तिथि निश्चित कर दी गयी है. ग्रीष्मकाल में दस हजार से अधिक तीर्थ यात्रियों ने सिद्धपीठ कालीमठ पहुंचकर पूजा अर्चना कर मन्नत मांगी.
ये भी पढ़ेंः हल्द्वानी वन अनुसंधान केंद्र ने तैयार की देवी वाटिका, नवरात्रि में करें मां के चार रूपों के दर्शन

भक्तों की बढ़ी संख्या: बदरी-केदार मंदिर समिति के सदस्य श्रीनिवास पोस्ती ने बताया कि शारदीय नवरात्रों में प्रतिदिन सैकड़ों तीर्थ यात्री सिद्धपीठ कालीमठ पहुंचकर पूजा अर्चना कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि कालीमठ घाटी में प्रतिदिन सैकड़ों भक्तों की आवाजाही होने से कालीमठ घाटी के हिल स्टेशनों पर रौनक बनी हुई है. क्षेत्र के तीर्थाटन, पर्यटन व्यवसाय में खासा इजाफा हो रहा है. कालीमठ मंदिर के प्रबंधक प्रकाश पुरोहित ने बताया कि विद्वान आचार्यों व मंदिर समिति की ओर से शारदीय नवरात्रों में आगामी दिनों में होने वाली विशेष पूजाओं के कार्यक्रम तय कर दिए गए हैं.

विशेष पूजाओं के कार्यक्रम: 20 अक्टूबर को रात्रि में काल रात्रि पूजन किया जाएगा. 21 अक्टूबर को रात्रि में कुंड प्रक्षालन, महाकाली उत्सव विग्रह, निशा पूजन, डोली दर्शन तथा रात्रि मेले का आयोजन किया जाएगा. 22 अक्टूबर को दिन में पूजन, 23 अक्टूबर को नवमी पूजन तथा दिन में भव्य मेले का आयोजन किया जाएगा. 24 अक्टूबर को दशहरा पूजन के साथ नवरात्र विसर्जन होगा.
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वेदपाठी रमेश चंद्र भट्ट ने बताया कि सिद्धपीठ कालीमठ तीर्थ में भगवती दुर्गा के महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती तीनों रूपों की पूजा एक साथ होने से महाकाली तीर्थ में पूजा का अधिक महत्व है. पंडित दिनेश चंद्र गौड़ ने बताया कि सिद्धपीठ कालीमठ में युगों से प्रज्वलित धुनी की भस्म धारण करने से मनुष्य को सभी सुखों की प्राप्ति होती है. पंडित संजय भट्ट ने बताया कि केदारखंड में सिद्धपीठ कालीमठ तीर्थ की महिमा का विस्तृत वर्णन किया गया है.

कालीमठ में उमड़ रही भक्तों की भीड़.

रुप्रयाग: नवरात्रि पर्व पर आस्था, आध्यात्म और पवित्रता की त्रिवेणी सिद्धपीठ कालीमठ और कालीशिला में बड़ी संख्या में भक्त मां काली के दर्शन के लिए पहुंच रहे हैं. माना जाता है कि जो भी भक्त मां काली के दरबार में श्रद्धा भाव से पूजा अर्चना करता है, उसकी मनोकामनाएं पूरी होती है.

शास्त्रों में वर्णन है कि प्राचीन काल में जब आसुरी शक्तियों से देवतागण प्रताड़ित होने लगे तो देवताओं ने भगवान शिव की तपस्या की. कई वर्ष बाद शिव प्रसन्न हुए और राक्षसों के उत्पात से बचने का उपाय पूछा. प्रभु ने असमर्थता जाहिर करते हुए कहा कि मां काली की तपस्या करो, वो ही तुम्हें मुक्ति का उपाय बता सकती हैं. देवताओं ने मां काली की उपासना की. देवताओं की तपस्या से प्रसन्न होकर मां काली ने देवताओं की समस्या पूछी.

अष्टमी पर मेले के आयोजन: देवताओं ने बताया कि रक्तबीज नामक दैत्य ने देवलोक पर आक्रमण कर दिया है और देवतागण भागते फिर रहे हैं. मां काली क्रोधित हो गई और कालीमठ नामक स्थान पर रक्तबीज के साथ कई माह तक युद्ध करने के बाद उसका वध करके गर्भगृह में समा गई. तब से लेकर आज तक मां काली के सभी रूपों की पूजा कालीमठ में होती है. नवरात्रि की अष्टमी के दिन कालीमठ में मेले का आयोजन किया जाता है.

भूत-पिचाश की बाधाएं होती है दूर: आध्यात्मिक, धार्मिक और सामाजिक दृष्टि से कालीमठ का विशेष महत्व है. सरस्वती नदी के तट पर स्थित सिद्धपीठ कालीमठ में स्थित मां काली, मां लक्ष्मी, मां सरस्वती, भैरवनाथ मंदिर में नवरात्रों के दौरान भक्त पूजा पाठ करते हैं. सिद्धपीठ कालीमठ मंदिर सरस्वती नदी के किनारे स्थित है. केदारनाथ हाईवे पर स्थित गुप्तकाशी से कालीमठ मात्र आठ किमी की दूरी पर है. कालीमठ में मां काली, महालक्ष्मी और सरस्वती के रूप में देवी का पूजन होता है. इस दिव्य स्थान में प्राचीनकाल से अखंड धुनी प्रज्वलित है. इस धुनी को धारण करने से भूत-पिचाश की बाधाएं दूर होती हैं. यहां पर प्रेत शिला, शक्ति शिला, मातंगी सहित अन्य शिलाएं भी विराजमान हैं. इसके अलावा क्षेत्रपाल, सिद्धेश्वर महादेव सहित गौरीशंकर के मंदिर भी विद्यमान हैं.
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कालीशिला में होते हैं देवी-देवताओं के दर्शन: कालीमठ से छह किमी की खड़ी चढ़ाई के बाद कालीशिला के दर्शन होते हैं. यहां पर भी नवरात्रों में बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं. कालीशिला को 64 शक्तिपुंजों की शिला माना गया है. कालीशिला के शीर्ष भाग पर अनेक मंत्रों के लिखे होने की बात सामने आती रही है. अनेक तंत्र-मंत्रों से युक्त यह शिला सिद्धि प्राप्ति के लिए सिद्धस्थल मानी गई है. लोगों का मानना है कि आज भी उपासकों को यहां वनदेवियों, यक्ष, गंधर्व, नाग समेत अन्य देवी-देवताओं के दर्शन होते हैं. धैर्यवान भक्त ही इस शिला की परिक्रमा कर सकता है. मान्यता है कि मां काली ने कालीशिला में शुंभ और निशुंभ नामक दैत्यों का वध कर देवताओं को असुरों के आतंक से निजात दिलाई थी. मां काली के दर्शन के लिए श्रद्धालु दूर-दूर से यहां पहुंचते हैं.

शारदीय नवरात्रों में होने वाली विशेष पूजा के कार्यक्रम: शारदीय नवरात्रों के तीसरे दिन सिद्धपीठ कालीमठ में सैकड़ों भक्तों ने पूजा-अर्चना कर विश्व समृद्धि व क्षेत्र के खुशहाली की कामना की. सिद्धपीठ कालीमठ व कोटि माहेश्वरी तीर्थ में प्रति दिन सैकड़ों भक्तों की आवाजाही होने से कालीमठ घाटी के विभिन्न हिल स्टेशनों पर रौनक बनी हुई है. मंदिर समिति की ओर से आगामी दिनों में सिद्धपीठ कालीमठ में होने वाली पूजाओं की तिथि निश्चित कर दी गयी है. ग्रीष्मकाल में दस हजार से अधिक तीर्थ यात्रियों ने सिद्धपीठ कालीमठ पहुंचकर पूजा अर्चना कर मन्नत मांगी.
ये भी पढ़ेंः हल्द्वानी वन अनुसंधान केंद्र ने तैयार की देवी वाटिका, नवरात्रि में करें मां के चार रूपों के दर्शन

भक्तों की बढ़ी संख्या: बदरी-केदार मंदिर समिति के सदस्य श्रीनिवास पोस्ती ने बताया कि शारदीय नवरात्रों में प्रतिदिन सैकड़ों तीर्थ यात्री सिद्धपीठ कालीमठ पहुंचकर पूजा अर्चना कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि कालीमठ घाटी में प्रतिदिन सैकड़ों भक्तों की आवाजाही होने से कालीमठ घाटी के हिल स्टेशनों पर रौनक बनी हुई है. क्षेत्र के तीर्थाटन, पर्यटन व्यवसाय में खासा इजाफा हो रहा है. कालीमठ मंदिर के प्रबंधक प्रकाश पुरोहित ने बताया कि विद्वान आचार्यों व मंदिर समिति की ओर से शारदीय नवरात्रों में आगामी दिनों में होने वाली विशेष पूजाओं के कार्यक्रम तय कर दिए गए हैं.

विशेष पूजाओं के कार्यक्रम: 20 अक्टूबर को रात्रि में काल रात्रि पूजन किया जाएगा. 21 अक्टूबर को रात्रि में कुंड प्रक्षालन, महाकाली उत्सव विग्रह, निशा पूजन, डोली दर्शन तथा रात्रि मेले का आयोजन किया जाएगा. 22 अक्टूबर को दिन में पूजन, 23 अक्टूबर को नवमी पूजन तथा दिन में भव्य मेले का आयोजन किया जाएगा. 24 अक्टूबर को दशहरा पूजन के साथ नवरात्र विसर्जन होगा.
ये भी पढ़ेंः शारदीय नवरात्र 2023 पर उत्तराखंड के इन मंदिरों के करें दर्शन, मिलेगा मनचाहा फल!

वेदपाठी रमेश चंद्र भट्ट ने बताया कि सिद्धपीठ कालीमठ तीर्थ में भगवती दुर्गा के महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती तीनों रूपों की पूजा एक साथ होने से महाकाली तीर्थ में पूजा का अधिक महत्व है. पंडित दिनेश चंद्र गौड़ ने बताया कि सिद्धपीठ कालीमठ में युगों से प्रज्वलित धुनी की भस्म धारण करने से मनुष्य को सभी सुखों की प्राप्ति होती है. पंडित संजय भट्ट ने बताया कि केदारखंड में सिद्धपीठ कालीमठ तीर्थ की महिमा का विस्तृत वर्णन किया गया है.

Last Updated : Oct 17, 2023, 10:57 PM IST
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