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कोरोनाकाल में घर लौटे अनिल ने पेश की नजीर, लघु उद्योग से आर्थिकी को किया मजबूत - उत्तराखंड पलायन समाचार

रुद्रप्रयाग जनपद के बसुकेदार क्यार्क गांव निवासी अनिल कुमार ने क्षेत्र के लोगों के लिए नजीर पेश की है. कोरोनाकाल में घर लौटे अनिल ने चप्पल का व्यापार शुरू किया और अब वो हर महीने करीब 30 हजार रुपए की आमदनी कर रहे हैं और क्षेत्र के लोगों को रोजगार से जोड़ रहे हैं.

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अनिल कुमार
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Published : Jan 21, 2022, 4:22 PM IST

रुद्रप्रयाग: दिल में कुछ करने का जज्बा हो तो मंजिल मिल ही जाती है. कोरोनाकाल में देश-विदेश से अपने गांवों की ओर लौटे कई हुनरमंद प्रवासी छोटे-छोटे उद्योग स्थापित कर रोजगार जुटा रहे हैं. बसुकेदार के क्यार्क गांव निवासी अनिल कुमार भी वर्षों से विभिन्न राज्यों में रहने के बाद कोरोनाकाल में घर लौट आए. यहां आने के बाद उन्होंने चप्पल बनाने का काम शुरू किया और आज अनिल हर महीने करीब 30 हजार रुपये की कमाई कर रहे हैं.

बता दें, रुद्रप्रयाग जनपद के बसुकेदार के क्यार्क गांव निवासी अनिल कुमार (Anil Kumar of Rudraprayag) कई वर्षों से अपने परिवार से दूर महाराष्ट्र में चप्पल बनाने की बड़ी कम्पनी में काम करते थे. इस कंपनी में अनिल 10 घंटे काम करते थे, लेकिन इस काम के बदले अनिल को सैलरी बहुत कम मिलती थी. उस सैलरी से उनका बमुश्किल से गुजर बसर चलता था. इसके बाद कोरोनाकाल में उनका काम छूट गया और वो घर लौट आए. घर लौट कर अनिल महीने तक घर में खाली बैठे रहे.

मंगतु परदेशी फिल्म से मिला आईडिया: कारोनाकाल में अनिल ने मंगतु परदेशी फिल्म देखी, जिसमें उन्होंने देखा कि मुम्बई से प्रवासी गांव आकर अपना स्वयं का रोजगार शुरू कर रहे हैं. देखते ही देखती कुछ ही वर्षों में अच्छी उन्नति करते हैं. अनिल ने बताया कि इस फिल्म को देखकर उनके मन में भी घर में ही रहकर कुछ करने का ख्याल आया. अनिल ने लोगों से कर्जा लेकर छोटी मशीन और रॉ-मटेरियल खरीदा. लोगों ने उनसे कम मूल्य पर चप्पलें खरीदे.

पढ़ें- पंजाब के बाद उत्तराखंड में भी उठी चुनाव की तिथि बदलने की मांग, जानिए कारण

केदारघाटी में रोजगार की अपार संभावनाएं: अनिल कहते हैं कि अब वे अधिक संसाधन जुटाकर अन्य बेरोजगारों को भी इस मुहिम का हिस्सा बनाना चाहते हैं. विभिन्न जगहों पर छोटे-छोटे उद्यम लगाकर अन्य लोगों को भी इसके लिए जागरूक और प्रशिक्षित किया जाएगा. उन्होंने कहा कि केदारघाटी में रोजगार की अपार संभावनाएं हैं. यहां पर तीर्थाटन और पर्यटन से रोजगार जुड़ा है. 6 माह यात्रा काल के दौरान लाखों की संख्या में तीर्थयात्री पहुंचते हैं, जबकि शीतकाल में पर्यटक बर्फबारी वाले इलाकों में आकर आनंद उठाते हैं.

स्थानीय लोग मजबूत कर सकते हैं आर्थिकी: अनिल मानते हैं कि स्थानीय लोगों को अपने क्षेत्र में छोटे-छोटे रोजगार के जरिये आर्थिकी को मजबूत करना चाहिए. अगर वे अपने क्षेत्र में रहकर रोजगार करेंगे तो उन्हें जितनी भी आमदनी होगी, उससे वे अपने परिवार का लालन-पालन कर सकते हैं. उन्होंने कहा कि बाहरी शहरों में वेतन न्यून मिलता है, जो रहने और खाने में ही निकल जाता है और बचत नहीं हो पाती है. अगर लोगों को बचत करनी है तो अपने क्षेत्र में छोटे से रोजगार से शुरूआत करनी चाहिए और फिर उद्योग को बड़े स्तर करना चाहिए. उन्होंने कोरोनाकाल में घर लौटे प्रवासियों से अपने क्षेत्र में रोजगार करने का आह्वान किया है. इससे जहां क्षेत्र तरक्की की ओर बढ़ेगा और पलायन पर रोक लगेगी.

रुद्रप्रयाग: दिल में कुछ करने का जज्बा हो तो मंजिल मिल ही जाती है. कोरोनाकाल में देश-विदेश से अपने गांवों की ओर लौटे कई हुनरमंद प्रवासी छोटे-छोटे उद्योग स्थापित कर रोजगार जुटा रहे हैं. बसुकेदार के क्यार्क गांव निवासी अनिल कुमार भी वर्षों से विभिन्न राज्यों में रहने के बाद कोरोनाकाल में घर लौट आए. यहां आने के बाद उन्होंने चप्पल बनाने का काम शुरू किया और आज अनिल हर महीने करीब 30 हजार रुपये की कमाई कर रहे हैं.

बता दें, रुद्रप्रयाग जनपद के बसुकेदार के क्यार्क गांव निवासी अनिल कुमार (Anil Kumar of Rudraprayag) कई वर्षों से अपने परिवार से दूर महाराष्ट्र में चप्पल बनाने की बड़ी कम्पनी में काम करते थे. इस कंपनी में अनिल 10 घंटे काम करते थे, लेकिन इस काम के बदले अनिल को सैलरी बहुत कम मिलती थी. उस सैलरी से उनका बमुश्किल से गुजर बसर चलता था. इसके बाद कोरोनाकाल में उनका काम छूट गया और वो घर लौट आए. घर लौट कर अनिल महीने तक घर में खाली बैठे रहे.

मंगतु परदेशी फिल्म से मिला आईडिया: कारोनाकाल में अनिल ने मंगतु परदेशी फिल्म देखी, जिसमें उन्होंने देखा कि मुम्बई से प्रवासी गांव आकर अपना स्वयं का रोजगार शुरू कर रहे हैं. देखते ही देखती कुछ ही वर्षों में अच्छी उन्नति करते हैं. अनिल ने बताया कि इस फिल्म को देखकर उनके मन में भी घर में ही रहकर कुछ करने का ख्याल आया. अनिल ने लोगों से कर्जा लेकर छोटी मशीन और रॉ-मटेरियल खरीदा. लोगों ने उनसे कम मूल्य पर चप्पलें खरीदे.

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केदारघाटी में रोजगार की अपार संभावनाएं: अनिल कहते हैं कि अब वे अधिक संसाधन जुटाकर अन्य बेरोजगारों को भी इस मुहिम का हिस्सा बनाना चाहते हैं. विभिन्न जगहों पर छोटे-छोटे उद्यम लगाकर अन्य लोगों को भी इसके लिए जागरूक और प्रशिक्षित किया जाएगा. उन्होंने कहा कि केदारघाटी में रोजगार की अपार संभावनाएं हैं. यहां पर तीर्थाटन और पर्यटन से रोजगार जुड़ा है. 6 माह यात्रा काल के दौरान लाखों की संख्या में तीर्थयात्री पहुंचते हैं, जबकि शीतकाल में पर्यटक बर्फबारी वाले इलाकों में आकर आनंद उठाते हैं.

स्थानीय लोग मजबूत कर सकते हैं आर्थिकी: अनिल मानते हैं कि स्थानीय लोगों को अपने क्षेत्र में छोटे-छोटे रोजगार के जरिये आर्थिकी को मजबूत करना चाहिए. अगर वे अपने क्षेत्र में रहकर रोजगार करेंगे तो उन्हें जितनी भी आमदनी होगी, उससे वे अपने परिवार का लालन-पालन कर सकते हैं. उन्होंने कहा कि बाहरी शहरों में वेतन न्यून मिलता है, जो रहने और खाने में ही निकल जाता है और बचत नहीं हो पाती है. अगर लोगों को बचत करनी है तो अपने क्षेत्र में छोटे से रोजगार से शुरूआत करनी चाहिए और फिर उद्योग को बड़े स्तर करना चाहिए. उन्होंने कोरोनाकाल में घर लौटे प्रवासियों से अपने क्षेत्र में रोजगार करने का आह्वान किया है. इससे जहां क्षेत्र तरक्की की ओर बढ़ेगा और पलायन पर रोक लगेगी.

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