पिथौरागढ़: उत्तराखंड में स्वास्थ्य महकमे की बदहाल हालत किसी से छिपी नहीं है. आलम ये है कि सूबे के कई अस्पतालों में डॉक्टर नहीं हैं. जहां पर डॉक्टर तैनात भी हैं तो वहां पर दवाइयां और अन्य सुविधाएं उपलब्ध नहीं है. यहां एक गर्भवती महिला को समय पर इलाज नहीं मिलने के कारण अपनी जान गंवानी पड़ी है. हालांकि, प्रसूता ने दो जुड़वा बच्चों को जन्म दिया है.
आजादी के सात दशक और राज्य गठन के 18 साल बीत जाने के बाद भी ग्रामीण क्षेत्रों में मूलभूत सुविधाएं नहीं पहुंच पाई हैं. सरकार सीमांत क्षेत्रों में बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर लाख दावे करती है, लेकिन जमीनी हकीकत एकदम जुदा है.
दरअसल, नेपाल बॉर्डर से सटे सेल गांव में एक गर्भवती महिला बिंदु देवी को 25 जुलाई को अचनाक प्रसव पीड़ा शुरू हुई. जिसे देख परिजन गांव के एलोपैथिक अस्पताल ले गए, लेकिन अस्पताल में डॉक्टर और एएनएम के नहीं होने की वजह से परिजनों को दाई की मदद से प्रसव कराना पड़ा.
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बीते 26 जुलाई की रात को करीब एक बजे बिंदु देवी ने अपने घर में ही एक स्वस्थ बच्चे को जन्म दिया. जिसके बाद महिला की तबीयत बिगड़ गई. जिस पर परिजन जिला अस्पताल ले गए, लेकिन सल्ला-रौतगड़ा मार्ग पर भूस्खलन के चलते बंद होने से महिला को अस्पताल नहीं पहुंचाया जा सका. 27 जुलाई की सुबह रास्ते में ही बिंदु देवी ने एक बेटी को जन्म दिया.
मार्ग बंद होने की वजह से परिजन महिला को घर वापस ले आए. जहां पर उसकी तबीयत ज्यादा खराब हो गई और महिला की मौत हो गई. उधर, जुड़वा बच्चों को फिलहाल जिला महिला अस्पताल में डॉक्टरों की निगरानी में रखा गया है. वहीं, मामले की उच्चस्तरीय जांच की मांग को लेकर विभिन्न संगठन और स्थानीय लोग सोमवार मुख्य चिकित्साधिकारी और जिलाधिकारी से मिले.
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ग्रामीणों का कहना है कि डॉक्टर और एएनएम अक्सर अस्पताल से नदारद रहते हैं. जिसका खामियाजा बिंदु देवी को अपनी जान देकर चुकानी पड़ी है. वहीं, मुख्य चिकित्साधीक्षक ने एएनएम के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने की बात कही है, जबकि डॉक्टर के खिलाफ एक्शन लेने से स्वास्थ्य विभाग बचता नजर आ रहा है.
उधर, मार्ग बंद होने के सवाल पर जिलाधिकारी विजय कुमार जोगदंडे का कहना है कि सल्ला-रौतगड़ा मोटरमार्ग को जल्द खोला जाएगा. साथ ही कहा कि मानसून सीजन के दौरान सड़क निर्माण कार्य पर भी रोक लगाई जाएगी.