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राज्य में लोकपर्व सातूं-आठूं की धूम, मां पार्वती हो रही उपासना - satu-aathu festival

राज्य के पर्वतीय इलाकों में मनाए जाने वाले लोकपर्व आम जन-जीवन से जुड़े होते है. पहाड़ की संस्कृति और सामाजिक विरासत को खुदेे में समेटा ऐसा ही पर्व सातूं आठूं जिसे गमारा के नाम से भी जाना जाता है. इस पर्व को सोर घाटी पिथौरागढ़ में अलग ही अंदाज में मनाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है.

राज्य में लोकपर्व सातूं-आठूं की मची धूम
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Published : Aug 24, 2019, 2:06 PM IST

पिथौरागढ़: राज्य के पर्वतीय इलाकों में मनाए जाने वाले लोकपर्व आम जन-जीवन से जुड़े होते है. पहाड़ की संस्कृति और सामाजिक विरासत को खुदेे में समेटा ऐसा ही पर्व सातूं-आठूं जिसे गमारा के नाम से भी जाना जाता है. इस पर्व को सोर घाटी पिथौरागढ़ में अलग ही अंदाज में मनाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है.

राज्य में लोकपर्व सातूं-आठूं की मची धूम

राज्य के पर्वतीय इलाकों में भगवान शिव के सबसे अधिक उपासक देखने को मिलते है. यही वजह है कि पहाड़ों की लोकसंस्कृति में भी भगवान शिव की जीवन लीला साफ नजर आती है. पिथौरागढ़, बागेश्वर, चम्पावत के साथ ही इन दिनों पश्चिम नेपाल में गौरा महेश्वर के रूप में शिव पार्वती की जीवनलीला का प्रदर्शन सभी अपने-अपने ढंग से कर है. माना जाता है कि जब पार्वती भगवान शिव से नाराज होकर मायके आती है तो शिवजी उन्हें वापस लाने के लिए धरती पर आते है. गौरा देवी के वापसी को सातूं-आठूं पर्व के रूप में मनाया जाता है.

कब और कैसे मनाया जाता पर्व
सातूं आठूं पर्व का आगाज भादौ माह की सप्तमी को होता है. और तीन दिनों तक इसे बड़े ही हर्षोउल्लास के साथ मनाया जाता है. इस दौरान भगवान शिव और पार्वती की मूर्तियों को फल और अनाज चढ़ाने के साथ ही महिलाएं झोड़ा, चांचरी जैसी पारम्परिक लोक विधाओं में खेलों का प्रदर्शन करते है. इस लोकसंस्कृति को जिंदा रखने के लिए पिथौरागढ़ रामलीला मैदान में कई वर्षों से गमारा पर्व मनाया जा रहा है. पहाड़ की अन्य लोक परम्पराओं के साथ ही इस परंपरा को भी जिंदा रखने में महिलाओं की अहम भूमिका रही है.

पिथौरागढ़: राज्य के पर्वतीय इलाकों में मनाए जाने वाले लोकपर्व आम जन-जीवन से जुड़े होते है. पहाड़ की संस्कृति और सामाजिक विरासत को खुदेे में समेटा ऐसा ही पर्व सातूं-आठूं जिसे गमारा के नाम से भी जाना जाता है. इस पर्व को सोर घाटी पिथौरागढ़ में अलग ही अंदाज में मनाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है.

राज्य में लोकपर्व सातूं-आठूं की मची धूम

राज्य के पर्वतीय इलाकों में भगवान शिव के सबसे अधिक उपासक देखने को मिलते है. यही वजह है कि पहाड़ों की लोकसंस्कृति में भी भगवान शिव की जीवन लीला साफ नजर आती है. पिथौरागढ़, बागेश्वर, चम्पावत के साथ ही इन दिनों पश्चिम नेपाल में गौरा महेश्वर के रूप में शिव पार्वती की जीवनलीला का प्रदर्शन सभी अपने-अपने ढंग से कर है. माना जाता है कि जब पार्वती भगवान शिव से नाराज होकर मायके आती है तो शिवजी उन्हें वापस लाने के लिए धरती पर आते है. गौरा देवी के वापसी को सातूं-आठूं पर्व के रूप में मनाया जाता है.

कब और कैसे मनाया जाता पर्व
सातूं आठूं पर्व का आगाज भादौ माह की सप्तमी को होता है. और तीन दिनों तक इसे बड़े ही हर्षोउल्लास के साथ मनाया जाता है. इस दौरान भगवान शिव और पार्वती की मूर्तियों को फल और अनाज चढ़ाने के साथ ही महिलाएं झोड़ा, चांचरी जैसी पारम्परिक लोक विधाओं में खेलों का प्रदर्शन करते है. इस लोकसंस्कृति को जिंदा रखने के लिए पिथौरागढ़ रामलीला मैदान में कई वर्षों से गमारा पर्व मनाया जा रहा है. पहाड़ की अन्य लोक परम्पराओं के साथ ही इस परंपरा को भी जिंदा रखने में महिलाओं की अहम भूमिका रही है.

Intro:पिथौरागढ़: उत्तराखण्ड के पर्वतीय इलाकों में मनाए जाने वाले लोकपर्व यहां के आम 1जनजीवन से जुड़े होते है। पहाड़ की संस्कृति और सामाजिक विरासत को खुद में समेटा ऐसा ही एक पर्व है सातूं आठूं पर्व, जिसे गमारा के नाम से भी जाना जाता है। सोर घाटी पिथौरागढ़ में इसे एक अलग ही अंदाज में मनाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। पेश है एक रिपोर्ट।







Body:हिमालय की गोद मे बसे उत्तराखंड के पर्वतीय इलाकों में भगवान शिव के सबसे अधिक उपासक देखने को मिलते है। यही वजह है कि पहाड़ों की लोकसंस्कृति में भी भगवान शिव की जीवन लीला साफ नजर आती है। पिथौरागढ़, बागेश्वर, चम्पावत के साथ ही इन दिनों पश्चिम नेपाल में गौरा महेश्वर के रूप में शिव पार्वती की जीवनलीला का प्रदर्शन हो रहा है। कहते है जब पार्वती भगवान शिव से नाराज होकर मायके आती है तो शिवजी उन्हें वापस लेने धरती पर आते है। वापसी के इसी मौके को यहां गौरा देवी की विदाई के रूप में मनाया जाता हैं।

सातूं आठूं पर्व का आगाज भादौ माह की सप्तमी को होता है और तीन दिनों तक इसे भारी हर्षोउल्लास के साथ मनाया जाता हैं। इस दौरान भगवान शिव और पार्वती की मूर्तियों को फल और अनाज चढ़ाने के साथ ही महिलाएं झोड़ा, चांचरी जैसी पारम्परिक लोकविधाओं में खेलों का प्रदर्शन करते है। इस लोकसंस्कृति को जिंदा रखने के लिए पिथौरागढ़ रामलीला मैदान में कई वर्षों से गमारा पर्व मनाया जा रहा है।

पहाड़ की अन्य लोक परम्पराओं के साथ ही इस परंपरा को भी जिंदा रखने में महिलाओं की अहम भूमिका रही है। सांस्कृतिक पर्वों के प्रति पर्वतीय समाज का लगाव ये दर्शाने के लिए काफी है कि इस भौतिकवादी युग मे भी पहाड़ी जनमानस अपनी जड़ों से दूर नही हुआ है।



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