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चीन से बिगड़े रिश्तों के कारण गुंजी मंडी से चीनी सामान 'गायब', भारतीय सामान 5 गुना महंगा - Indian goods expensive in Gunji

पिथौरागढ़ जिले के उच्च हिमालयी इलाकों में रहने वाले लोग चीनी समान पर निर्भर हैं. लेकिन पिछले दो साल से भारत-चीन व्यापार बंद है. ऐसे में यहां के लोगों को भारतीय सामान महंगे दामों में खरीदना पड़ता है. आपको बताते हैं कि यहां भारतीय सामान आखिर महंगा क्यों मिलता है.

Pithoragarh
पिथौरागढ़
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Published : Feb 12, 2022, 9:32 PM IST

पिथौरागढ़: चीन सीमा से सटे पिथौरागढ़ जिले के उच्च हिमालयी इलाकों में रहने वाले लोग चीनी समान पर निर्भर रहते थे. लेकिन पिछले दो साल से कोरोना और भारत-चीन के बिगड़े रिश्तों को कारण अब यहां के लोगों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. आलम ये है कि चीन सीमा से लगी व्यास घाटी के 9 गांवों के लोगों को भारतीय सामान खरीदने के लिए भारी कीमत चुकानी पड़ रही है. आइये समझते हैं कि आखिर ऐसा क्यों है कि भारत के लोगों को भारतीय सामान इतना महंगा मिल रहा है.

दरअसल, भारत-चीन सीमा पर स्थित अंतिम व्यापारिक मंडी गुंजी सालभर चीनी समान से पटी रहती है. इंडो-चीन ट्रेड से आयात किये गये माल की यहां भारी खपत रहती है. हालांकि, गुंजी मंडी में भारतीय सामान भी बिकता है. लेकिन लोगों को भारतीय सामान की भारी कीमत चुकानी पडती हैं. यही वजह है कि सीमांत की बाजारों में 70 फीसदी चीनी माल और भारतीय माल महज 30 फीसदी ही नजर आता है. इसलिए यहां भारतीय माल खरीदने के लिए ग्राहकों को भारी कीमत चुकानी पड़ रही है. यहां भारतीय सामान 5 से 6 गुना महंगा मिलता है.

गुंजी मंडी से चीनी सामान 'गायब'

आलम ये है कि व्यास घाटी में स्थित व्यापारिक मंडी गुंजी में भारतीय सीमेंट की एक बोरी की कीमत ₹3 से ₹4 हजार है, जबकि चीनी सीमेंट की बोरी सिर्फ ₹400 उपलब्ध है. वहीं, अगर धारचुला तहसील मुख्यालय की बात करें तो यहां भारतीय सीमेंट सिर्फ ₹350 का ही बिकता है. ऐसे में सीमांत के व्यापारियों के आगे रोजी-रोटी का संकट गहरा गया है.

भारतीय सामान गुंजी तक पहुंचना आसान नहीं: गुंजी में भारतीय सामना महंगा होने का बड़ा कारण ये भी है कि बरसात हो या गर्मी का मौसम ये सड़क अक्सर भूस्खलन के कारण बाधित रहती है, जिस कारण गुंजी के व्यापारियों को पोनी पोर्टर्सल (खच्चरों) की मदद से समान गुंजी पहुंचाना पड़ता है. ऐसे में भारतीय समान की कीमत 5 से 6 गुना तक चुकानी पड़ती है, जबकि चीन से आयात किये गये माल की कीमत बेहद कम है.

सीमेंट के अलावा चीन से आयातित इलेक्ट्रॉनिक आइटम, कपडे, ऊनी जैकेट, जूते, कम्बल, टॉफी, चायनीज बियर और याक के ऊन से बने खिरबी इत्यादी सामान भारतीय बाजारों में बिकने वाले सामान से काफी सस्ते हैं. यही वजह है कि यहां की बाजार चीनी सामान से पटी रहती हैं.

पढ़ें- भारत-चीन सीमा पर -40° तापमान में भी डटे हैं हिमवीर, ड्रैगन से मुकाबले को तैयार

कालापानी में दुकान चलाने वाली गोदावरी गर्ब्याल बताती है कि भारतीय मंडी से समान लाने में उन्हें ढुलाई और किराया अधिक पड़ता है, जबकि चीनी मंडी से सामान आसानी से आ जाता है. लेकिन कोरोना संकट और भारत चीन के बिगड़े रिश्तों के कारण पिछले दो साल से भारत-चीन का स्थानीय व्यापार ठप है. कैलाश मानसरोवर यात्रा भी रद्द है, जिस वजह से उनके आगे रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है.

कनेक्टिविटी बड़ा कारण: व्यास घाटी में स्थित गुंजी मंडी से तिब्बती मंडी तकलाकोट की दूरी महज 32 किलोमीटर है, जबकि गुंजी से तहसील मुख्यालय धारचूला की दूरी 69 किलोमीटर है, जबकि पिथौरागढ़ मुख्यालय से गुंजी की दूरी करीब 160 किलोमीटर है. ऐसे में जाहिर है कि सीमांत क्षेत्र के व्यापारियों के लिए भारत-चीन व्यापार फायदे का सौदा रहता है.

दशकों तक निलंबित रहा भारत-चीन का व्यापार: पिथौरागढ़ जिले की चांद घाटी में 17 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित लिपुलेख दर्रे के माध्यम से भारत-चीन स्थलीय व्यापार साल 1962 में हुए भारत-चीन युद्ध के बाद बंद रहा. उसके बाद साल 1991 में एक बार फिर भारत-चीन का व्यापार शुरू हुआ है. भारत-चीन व्यापार की खास बात यह है कि यह हर साल जून में शुरू होता है और अक्टूबर तक चलता है. यानी यहां पांच महीने के लिए सर्दी का प्रकोप कम हो जाता है और भारत-चीन के व्यापार के लिए यह पांच महीने मुफीद हो जाते हैं. इन्हीं महीनों में कैलाश मानसरोवर यात्रा भी होती है.

धारचूला-लिपुलेख सड़क से जगी उम्मीद: पिथौरागढ़ के सीमांत क्षेत्रों तक भारत का सामना और सेना के जवान आसानी पहुंच सके. इसके लिए बीआरओ ने धारचूला से लिपुलेख तक सड़क कनेक्टिविटी दी है. हालांकि, विषम भौगोलिक परिस्थितियों के कारण धारचूला से लिपुलेख बॉर्डर सड़क की कटिंग हो गई है लेकिन सड़क में काम अभी भी बाकी है. सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) ने पुल, सुरक्षा दीवार, कॉजवे निर्माण के साथ पहाड़ी की कटान कर दी है. हालांकि, सड़क की कटिंग होने के बाद गुंजी के लोगों को उम्मीद थी कि यहां भारतीय सामान उचित दाम पर मिल सकेगा. आपको बता दें, रक्षामंत्री राजनाथ सिंह धारचूला-लिपुलेख सड़क का ऑनलाइन शुभारंभ भी कर चुके हैं.

भारत सरकार ने लिपुलेख तक सड़क की कटिंग होने के बाद उम्मीद जगी थी कि भारतीय समान गुंजी में उचित दामों पर मिल पायेगा लेकिन सामरिक नजरिये से अहम इस सड़क की दुर्दशा के चलते इसका वो लाभ नहीं मिल पा रहा, जिसकी स्थानीय लोगों को दरकार थी. ऐसे में अब जरुरत है की दोनों मुल्कों की सरकार आपसी बातचीत के जरिए इंडो चाईना ट्रेड और विश्व प्रसिद्ध कैलाश मानसरोवर यात्रा फिर से चालू करवाए, ताकि सीमांत के इलाकों में ठप पड़ी व्यापारिक गतिविधियां फिर से सुचारु हो सके.

पिथौरागढ़: चीन सीमा से सटे पिथौरागढ़ जिले के उच्च हिमालयी इलाकों में रहने वाले लोग चीनी समान पर निर्भर रहते थे. लेकिन पिछले दो साल से कोरोना और भारत-चीन के बिगड़े रिश्तों को कारण अब यहां के लोगों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. आलम ये है कि चीन सीमा से लगी व्यास घाटी के 9 गांवों के लोगों को भारतीय सामान खरीदने के लिए भारी कीमत चुकानी पड़ रही है. आइये समझते हैं कि आखिर ऐसा क्यों है कि भारत के लोगों को भारतीय सामान इतना महंगा मिल रहा है.

दरअसल, भारत-चीन सीमा पर स्थित अंतिम व्यापारिक मंडी गुंजी सालभर चीनी समान से पटी रहती है. इंडो-चीन ट्रेड से आयात किये गये माल की यहां भारी खपत रहती है. हालांकि, गुंजी मंडी में भारतीय सामान भी बिकता है. लेकिन लोगों को भारतीय सामान की भारी कीमत चुकानी पडती हैं. यही वजह है कि सीमांत की बाजारों में 70 फीसदी चीनी माल और भारतीय माल महज 30 फीसदी ही नजर आता है. इसलिए यहां भारतीय माल खरीदने के लिए ग्राहकों को भारी कीमत चुकानी पड़ रही है. यहां भारतीय सामान 5 से 6 गुना महंगा मिलता है.

गुंजी मंडी से चीनी सामान 'गायब'

आलम ये है कि व्यास घाटी में स्थित व्यापारिक मंडी गुंजी में भारतीय सीमेंट की एक बोरी की कीमत ₹3 से ₹4 हजार है, जबकि चीनी सीमेंट की बोरी सिर्फ ₹400 उपलब्ध है. वहीं, अगर धारचुला तहसील मुख्यालय की बात करें तो यहां भारतीय सीमेंट सिर्फ ₹350 का ही बिकता है. ऐसे में सीमांत के व्यापारियों के आगे रोजी-रोटी का संकट गहरा गया है.

भारतीय सामान गुंजी तक पहुंचना आसान नहीं: गुंजी में भारतीय सामना महंगा होने का बड़ा कारण ये भी है कि बरसात हो या गर्मी का मौसम ये सड़क अक्सर भूस्खलन के कारण बाधित रहती है, जिस कारण गुंजी के व्यापारियों को पोनी पोर्टर्सल (खच्चरों) की मदद से समान गुंजी पहुंचाना पड़ता है. ऐसे में भारतीय समान की कीमत 5 से 6 गुना तक चुकानी पड़ती है, जबकि चीन से आयात किये गये माल की कीमत बेहद कम है.

सीमेंट के अलावा चीन से आयातित इलेक्ट्रॉनिक आइटम, कपडे, ऊनी जैकेट, जूते, कम्बल, टॉफी, चायनीज बियर और याक के ऊन से बने खिरबी इत्यादी सामान भारतीय बाजारों में बिकने वाले सामान से काफी सस्ते हैं. यही वजह है कि यहां की बाजार चीनी सामान से पटी रहती हैं.

पढ़ें- भारत-चीन सीमा पर -40° तापमान में भी डटे हैं हिमवीर, ड्रैगन से मुकाबले को तैयार

कालापानी में दुकान चलाने वाली गोदावरी गर्ब्याल बताती है कि भारतीय मंडी से समान लाने में उन्हें ढुलाई और किराया अधिक पड़ता है, जबकि चीनी मंडी से सामान आसानी से आ जाता है. लेकिन कोरोना संकट और भारत चीन के बिगड़े रिश्तों के कारण पिछले दो साल से भारत-चीन का स्थानीय व्यापार ठप है. कैलाश मानसरोवर यात्रा भी रद्द है, जिस वजह से उनके आगे रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है.

कनेक्टिविटी बड़ा कारण: व्यास घाटी में स्थित गुंजी मंडी से तिब्बती मंडी तकलाकोट की दूरी महज 32 किलोमीटर है, जबकि गुंजी से तहसील मुख्यालय धारचूला की दूरी 69 किलोमीटर है, जबकि पिथौरागढ़ मुख्यालय से गुंजी की दूरी करीब 160 किलोमीटर है. ऐसे में जाहिर है कि सीमांत क्षेत्र के व्यापारियों के लिए भारत-चीन व्यापार फायदे का सौदा रहता है.

दशकों तक निलंबित रहा भारत-चीन का व्यापार: पिथौरागढ़ जिले की चांद घाटी में 17 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित लिपुलेख दर्रे के माध्यम से भारत-चीन स्थलीय व्यापार साल 1962 में हुए भारत-चीन युद्ध के बाद बंद रहा. उसके बाद साल 1991 में एक बार फिर भारत-चीन का व्यापार शुरू हुआ है. भारत-चीन व्यापार की खास बात यह है कि यह हर साल जून में शुरू होता है और अक्टूबर तक चलता है. यानी यहां पांच महीने के लिए सर्दी का प्रकोप कम हो जाता है और भारत-चीन के व्यापार के लिए यह पांच महीने मुफीद हो जाते हैं. इन्हीं महीनों में कैलाश मानसरोवर यात्रा भी होती है.

धारचूला-लिपुलेख सड़क से जगी उम्मीद: पिथौरागढ़ के सीमांत क्षेत्रों तक भारत का सामना और सेना के जवान आसानी पहुंच सके. इसके लिए बीआरओ ने धारचूला से लिपुलेख तक सड़क कनेक्टिविटी दी है. हालांकि, विषम भौगोलिक परिस्थितियों के कारण धारचूला से लिपुलेख बॉर्डर सड़क की कटिंग हो गई है लेकिन सड़क में काम अभी भी बाकी है. सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) ने पुल, सुरक्षा दीवार, कॉजवे निर्माण के साथ पहाड़ी की कटान कर दी है. हालांकि, सड़क की कटिंग होने के बाद गुंजी के लोगों को उम्मीद थी कि यहां भारतीय सामान उचित दाम पर मिल सकेगा. आपको बता दें, रक्षामंत्री राजनाथ सिंह धारचूला-लिपुलेख सड़क का ऑनलाइन शुभारंभ भी कर चुके हैं.

भारत सरकार ने लिपुलेख तक सड़क की कटिंग होने के बाद उम्मीद जगी थी कि भारतीय समान गुंजी में उचित दामों पर मिल पायेगा लेकिन सामरिक नजरिये से अहम इस सड़क की दुर्दशा के चलते इसका वो लाभ नहीं मिल पा रहा, जिसकी स्थानीय लोगों को दरकार थी. ऐसे में अब जरुरत है की दोनों मुल्कों की सरकार आपसी बातचीत के जरिए इंडो चाईना ट्रेड और विश्व प्रसिद्ध कैलाश मानसरोवर यात्रा फिर से चालू करवाए, ताकि सीमांत के इलाकों में ठप पड़ी व्यापारिक गतिविधियां फिर से सुचारु हो सके.

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