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औषधीय गुणों से भरपूर है यह जंगली फल लाइलाज बीमारियों से दिलाता है निजात

औषधीय गुणों से भरपूर गीठीं के फल का उपयोग कई तरह की रोगों के इलाज में किया जाता है. लंबे समय से ही पहाड़ी क्षेत्रों में लाइलाज बीमारियों का इलाज परंपरागत तरीकों से ही किया जाता रहा है. जिनमें गीठी का फल मुख्य रूप से उपयोग में लिया जाता है.

औषधीय गुणों से भरपूर है गीठी.
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Published : Oct 13, 2019, 2:52 PM IST

पिथौरागढ़: प्राचीन समय से ही पहाड़ों में लाइलाज बीमारियों का इलाज परंपरागत तरीकों से ही किया जाता रहा है. आज के दौर में भी कई बीमारियों के लिए कंदमूल फलों का उपयोग कर पहाड़ी क्षेत्रों में लोगों का इलाज किया जाता है. ऐसा ही एक फल है गीठीं जो आम तौर पर जंगलों में पाया जाता है. गीठी में कई औषधीय गुण पाएं जाते हैं. जो कई रोगों से लड़ने में मदद करते हैं. वहीं अब इसके औषधीय गुणों को देखते हुए लोग घरों में भी गीठी की खेती कर रहे हैं.

औषधीय गुणों से भरपूर है गीठी.

बता दें कि गीठी का वानस्पतिक नाम डाइस्कोरिया बल्बीफेरा है. ये डाइस्कोरेसी फैमिली का पौधा है. विश्व भर में गेठी की कुल 600 प्रजातियां पाई जाती हैं. गीठी का फल बेल में लगता है जो हल्के गुलाबी, भूरे और हरे रंग का होता है. आम तौर पर गीठी के फल की पैदावार अक्टूबर से नवंबर माह के दौरान होती है.

गीठी में डायोसजेनिन और डायोस्कोरिन नामक रसायनिक यौगिक पाए जाते है. जिसका उपयोग कई रोगों के इलाज में किया जाता है. साथ ही पहाड़ी क्षेत्रों में लोग इसका उपयोग सब्जी के रूप में भी करते हैं. आम तौर पर गीठी के फल को पानी में उबालने के बाद इसका छिलका उतारा जाता है. जिसके बाद इसे तेल में भून कर इसमें मसाले मिलाए जाते हैं. जिसके बाद इसका उपयोग सब्जी के रूप में किया जाता है. गीठीं में प्रचुर मात्रा में फाइबर पाया जाता है. इसका उपयोग च्यवनप्राश बनाने में भी किया जाता है. गींठी का सेवन करने से शरीर में उर्जा का स्तर भी बढ़ता है.

खास तौर पर गीठी का औषधीय उपयोग मधुमेह, कैंसर, सांस की बीमारी, पेट दर्द, कुष्ठ रोग,अपच, पाचन क्रिया संतुलित करने, दागों से निजात, फेफड़ों की बीमारी में, पित्त की थैली में सूजन कम करने, और बच्चों के पेट में पनपने वाले कीड़ों को खत्म करने में का उपयोग किया जाता है.

ये भी पढ़े: अंतरराष्ट्रीय आपदा न्यूनीकरण दिवसः हर चुनाौती से निपटने के लिए तैयार है उत्तराखंड SDRF, देवदूत बनकर लाखों लोगों की बचा रही है जिंदगी

इनके अलावा पहाड़ी क्षेत्रों में लताऊ, झिंगुर, करी, बाकवा, बोंबा, मकड़ा, शाहरी, बड़ाकू, दूधकू, कुकरेंडा, सियांकू, धधकी, रांय-छांय, कोकड़ो, कंदा, बरना कंदा, दुरु कंदा, बरनाई, खानिया, मीठारू कंदा जैसे दर्जनों कंद-मूल और जड़ी-बूटियों का उपयोग पारंपरिक इलाज के लिए किया जाता है.

पिथौरागढ़: प्राचीन समय से ही पहाड़ों में लाइलाज बीमारियों का इलाज परंपरागत तरीकों से ही किया जाता रहा है. आज के दौर में भी कई बीमारियों के लिए कंदमूल फलों का उपयोग कर पहाड़ी क्षेत्रों में लोगों का इलाज किया जाता है. ऐसा ही एक फल है गीठीं जो आम तौर पर जंगलों में पाया जाता है. गीठी में कई औषधीय गुण पाएं जाते हैं. जो कई रोगों से लड़ने में मदद करते हैं. वहीं अब इसके औषधीय गुणों को देखते हुए लोग घरों में भी गीठी की खेती कर रहे हैं.

औषधीय गुणों से भरपूर है गीठी.

बता दें कि गीठी का वानस्पतिक नाम डाइस्कोरिया बल्बीफेरा है. ये डाइस्कोरेसी फैमिली का पौधा है. विश्व भर में गेठी की कुल 600 प्रजातियां पाई जाती हैं. गीठी का फल बेल में लगता है जो हल्के गुलाबी, भूरे और हरे रंग का होता है. आम तौर पर गीठी के फल की पैदावार अक्टूबर से नवंबर माह के दौरान होती है.

गीठी में डायोसजेनिन और डायोस्कोरिन नामक रसायनिक यौगिक पाए जाते है. जिसका उपयोग कई रोगों के इलाज में किया जाता है. साथ ही पहाड़ी क्षेत्रों में लोग इसका उपयोग सब्जी के रूप में भी करते हैं. आम तौर पर गीठी के फल को पानी में उबालने के बाद इसका छिलका उतारा जाता है. जिसके बाद इसे तेल में भून कर इसमें मसाले मिलाए जाते हैं. जिसके बाद इसका उपयोग सब्जी के रूप में किया जाता है. गीठीं में प्रचुर मात्रा में फाइबर पाया जाता है. इसका उपयोग च्यवनप्राश बनाने में भी किया जाता है. गींठी का सेवन करने से शरीर में उर्जा का स्तर भी बढ़ता है.

खास तौर पर गीठी का औषधीय उपयोग मधुमेह, कैंसर, सांस की बीमारी, पेट दर्द, कुष्ठ रोग,अपच, पाचन क्रिया संतुलित करने, दागों से निजात, फेफड़ों की बीमारी में, पित्त की थैली में सूजन कम करने, और बच्चों के पेट में पनपने वाले कीड़ों को खत्म करने में का उपयोग किया जाता है.

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इनके अलावा पहाड़ी क्षेत्रों में लताऊ, झिंगुर, करी, बाकवा, बोंबा, मकड़ा, शाहरी, बड़ाकू, दूधकू, कुकरेंडा, सियांकू, धधकी, रांय-छांय, कोकड़ो, कंदा, बरना कंदा, दुरु कंदा, बरनाई, खानिया, मीठारू कंदा जैसे दर्जनों कंद-मूल और जड़ी-बूटियों का उपयोग पारंपरिक इलाज के लिए किया जाता है.

Intro:पिथौरागढ़: पहाड़ में लाइलाज बीमारियों को ठीक करने के लिए आज भी परम्परागत नुस्खे अपनाए जाते है। आज हम आपको एक ऐसे कंदमूल के बारे में बताने जा रहे है जिसका उपयोग कई रोगों के उपचार में किया जाता है। अक्टूबर और नवम्बर के महीने में जंगलों में होने वाले कंदमूल गेठी का उपयोग प्राचीन काल से ही कई बीमारियों के इलाज में होता आया है। इसके ओषधीय उपयोग को देखते हुए लोग घरों में भी गेठी का उत्पादन करने लगे है। मगर ये चमत्कारी वनस्पति अब धीरे-धीरे विलुप्ति की कगार पर है।


Body:गेठी का वानस्पतिक नाम डाइस्कोरिया बल्बीफेरा है। ये डाइस्कोरेसी फैमिली का पौधा है। विश्व में गेठी की कुल 600 प्रजातियां पाई जाती है। गेठी की बेल हल्की गुलाबी, भूरे और हरे रंग की होती है। कुमाऊं के पहाड़ी क्षेत्रों में घरेलू और वनों में गेठी की बेल बरसात के सीजन में देखने को मिल जाएंगी। गेठी में डायोसजेनिन और डायोस्कोरिन नामक रसायनिक यौगिक पाए जाते है। जिसका उपयोग कई बीमारियों के इलाज में किया जाता है। गेठी को भूनकर नमक के साथ खाने से पुराने कफ से निजात मिलती है। पहाड़ी क्षेत्रों में गाँव के लोगों द्वारा इसकी सब्जी भी बनाई जाती है।

गेठी का ओषधीय उपयोग

मधुमेह के रोगियों द्वारा गेठी का सेवन करना काफी फायदेमंद है। इसके अलावा पुराने कफ से निजात पाने, सांस की बीमारी, पेट दर्द में, कुष्ठ रोग के उपचार में, किडनी को ठीक रखने, अपच में, पाचन क्रिया संतुलित करने, बच्चों में टाइफाइड रोगों के इलाज में, कीड़े के काटने पर, दाग, फेफड़े की बीमारी में, पित्त की थैली में सूजन कम करने, बच्चों के पेट के कीड़े खत्म करने में गेठी का उपयोग होता है।

Byte: डॉ0 कमलेश भाकुनी, वनस्पति वैज्ञानिक


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