बेरीनाग: आज के आधुनिकता दौर में खानपान पर ध्यान ना देने के चलते लोगों में बीमारियां बढ़ती जा रही हैं. भारतीय संस्कृति में अतीत से पौष्टिक भोजन और स्वस्थ्य जीवनशैली अपनाने को महत्तता दी गयी है. लेकिन आज के दौर में लोग खानपान में पाश्चात्य की सभ्यता को अपनाने लगे हैं. जो उनके स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव डाल रहा है.
कांगडा विश्वविद्यालय में कार्यरत अस्टिेंट प्रो0 डां.बबीता भंडारी ने बताया कि बढ़ती आय और बेहतर रहन- सहन के साथ लोगों के खानपान का तरीका भी काफी बदल गया है. आज दौर के युवा हो या बुजुर्ग सभी का रूझान फास्ट फूड की ओर जा रहा है. जिसके चलते अनियंत्रित रक्तचाप, मधुमेह जैसे गंभीर रोग लोगों को जकड़ रहे हैं. उन्होंने कहा कि हमारे प्राचीन भोजन पदार्थ पोषक तत्वों से भरपूर हैं. साथ ही इनका पाचन भी सरल है. लेकिन आधुनिकता की होड़ में वे कहीं गुम होने लगे हैं. उन्होंने बताया कि यदि भावी पीढ़ी का स्वास्थ्य सुरक्षित रखना है, तो ढ़ाबों और रेस्टोरेंट में पौष्टिक भोज्य पदार्थों को प्रचलित करने की जरूरत है.
उन्होंने बताया कि मंडुए की रोटी, गहत की दाल, भट्ट की चुटकानी, डुबुके, झंगोर की खीर, दाल बडे, मोटे अनाज और सब्जियां प्रोटीन, विटामीन, मिनरल और फाइबर से भरपूर होते हैं. साथ ही कई सारी बिमारियों से निजात दिलाने में भी सहायक होते हैं. उन्होंने बताया कि मंडुआ मोटाप, डायबिटीज, रक्तचाप और पेट की कब्ज को दूर करता है. वहीं गहत की दाल खाने से सर्दी-जुकाम, पीलिया, पथरी जैसे रोगों से राहत मिलती है. वहीं काले भट्ट हड्यिों को मजबूत बनाते हैं, और हदय रोग, कैंसर, बीपी, डायबिटीज जैसे रोगों से लड़ने में मदद करते हैं.
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साथ ही उन्होंने कहा कि पुराने जमाने में लोग स्वस्थ रहने के लिए जिन अनाजों का खनपान में उपयोग करते थे. भवी पीढ़ी उनका सेवन करने से कतराती है. जिसके चलते किसानों ने भी उन पौषटिक अनाजों को उगाना बंद कर दिया है.
उन्होंने कहा जिस प्रकार देश में पंजाबी और दक्षिणी खान-पान प्रसिद्ध है. उसी तर्ज पर प्रदेश सरकार को भी उत्तराखंड के लोकप्रिय भोजन को बढ़ावा देना चाहिए. यदि सरकार ऐसे कदम उठाए तो यहां के लोगों को रोजगार के साथ उत्तम स्वास्थ मिलेगा. साथ ही किसानों की आय बढ़ेगी और प्रदेश की अलग पहचान बनेगी.