पिथौरागढ़: पर्यावरण संरक्षण के लिए कार्य करने वाली पिथौरागढ़ की हरेला सोसायटी एक बार फिर चर्चाओं में है. सोसायटी की ओर से बनाई गई 'जुगनू लाइट' दीपावली में घरों को रोशन करने के साथ ही पर्यावरण संरक्षण में भी मददगार साबित हो रही है. ये दीये और लाइटें कबाड़ की बोतलों से तैयार की गई है.
दरअसल, हरेला सोसायटी ने कबाड़ की बोतलों को काटकर उसमें मोम की जगह च्युरे के घी का इस्तेमाल किया है. वनस्पति घी से तैयार इस कैंडल से जहां कार्बन नहीं होता तो वहीं ये दिया 8 से 10 घंटे तक घरों को रोशन करता है. हालांकि, इस दीये की कीमत आम दीयों के मुकाबले काफी अधिक है, लेकिन पर्यावरणीय पहल के चलते लोगों को खूब पसंद आ रहा है.
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कबाड़ की बोतलों से बनाया इको फ्रेंडली दीयाः बीते कई सालों से हरेला सोसायटी रीसाइक्लिंग का काम करती है. सोसायटी ने कबाड़ से कांच की बोतलों को इकट्ठा कर और उसे काटकर कैंडल लैंप का रूप दिया है. साथ ही तेल या मोम के बजाए वनस्पति घी का इस्तेमाल कर इको फ्रेंडली दीये तैयार किए है.
हरेला सोसायटी में कार्य करने वाले सोनू शर्मा का कहना है कि पर्यटक स्थलों की सफाई के दौरान उन्हें शीशे की कई खाली बोतलें मिली. जिसकी रीसाइक्लिंग के मद्देनजर जुगनू लाइट बनाने का विचार उनके मन में आया. इसे बनाने के लिए बोतलों को कटिंग की गई और उसे दीये का आकार दिया गया है.
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जुगनू लाइट को गमले के रूप में किया जा सकेगा इस्तेमालः हरेला सोसायटी ने जुगनू लाइट का एक बॉक्स बनाया है. इस सेट की पैकेजिंग में हरेला सोसायटी ने एक पोटली दी है, जिसमें जैविक खाद है. साथ ही मौस (काई) और फूल के बीज दिए हैं. ताकि जुगनू लाइट के भीतर का च्यूरे का घी खत्म हो जाए तो बोटल को फैंकने की बजाए उसमें फूल उगा सकें. सोसायटी की इस पहल से पर्यावरण संरक्षण के साथ ही युवाओं को भी रोजगार मिल रहा है. हरेला सोसाइटी की इस पहल की खूब सराहना भी की जा रही है.
च्युरे के पेड़ को भी मिला संरक्षणः पिथौरागढ़ जिले के आसपास च्यूरे के बहुत से पेड़ देखने को मिलते हैं. इसके बीज से वनस्पति घी बनता है. पहाड़ों में त्वचा में लगाने और कई जगह खाने में च्यूरे के घी का प्रयोग किया जाता है. इस पेड़ से अनेकों उत्पाद बनाए जा सकते हैं, लेकिन जानकारी के अभाव में लोग इन पेड़ों का कटान अधिक हो रहा है. जिसे देखते हुए हरेला की टीम ने जुगनू लाइट में मोम की जगह इसी च्यूरे के घी का इस्लेमाल किया है. ताकि च्युरे के पेड़ का भी संरक्षित किया जा सके.