पिथौरागढ़: उत्तराखंड में गुलदारों की बढ़ती संख्या और घटते जंगल इंसानी जिंदगी पर भारी पड़ रहे हैं. आलम ये है कि अब गुलदार शहरी इलाकों में भी आसानी से नजर आने लगे हैं. इंसानों का जंगलों में बढ़ता दखल और गुलदारों का रिहायशी इलाकों में आना दोनों के लिए खतरा साबित हो रहा है.
बीते कुछ सालों में उत्तराखंड में गुलदार और इंसान के बीच संघर्ष बढ़ा है. इसी साल अब तक गुलदारों के हमलों में दो दर्जन लोगों की जान जा चुकी है, जबकि 65 से अधिक इंसान जख्मी हो चुके हैं. यही नहीं राज्य में बीते 7 महीनों में 7 गुलदारों को आदमखोर घोषित किया गया है, जिनमें से 6 गुलदारों को शिकारियों ने मौत के घाट उतार डाला है.
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गुलदारों के इंसानों पर सबसे अधिक हमले पहाड़ी इलाकों में देखने को मिले हैं. जानकारों की मानें तो जंगलों में लगातार बढ़ रहा इंसानी दखल गुलदारों को आबाद इलाकों में आने पर मजबूर कर रहा है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक उत्तराखंड में गुलदारों की संख्या 3 हजार के पार जा चुकी है.
उत्तराखंड में गुलदार और मानवों के बीच संघर्ष लगातार बढ़ रहा है, लेकिन वन विभाग ने अब तक इसके लिए कोई ठोस प्लान भी तैयार नहीं कर पाया है. न ही इसका कोई सटीक जवाब तलाश पाया है. हालात ये हैं कि पहाड़ी जिलों में विभाग के पास न तो वेटनरी डॉक्टर हैं, और ना ही ट्रैंक्यूलाइज गन उपलब्ध है.
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ऐसे में हालात तब और खराब हो जाते हैं, जब गुलदार रियाहशी इलाकों में फंस जाता है. पहाड़ों में बरसात के बाद गुलदारों के हमलों में हर साल इजाफा होता है. ऐसे में तय है कि गुलदार के हमले में मरने और घायल होने वालों की संख्या में अभी बड़ा इजाफा होना बाकी है. ऐसे में सबसे बड़ा सवाल ये है कि राम भरोसे चल रहा वन विभाग आखिर कैसे मानव-गुलदार संघर्ष पर काबू पाएगा.
आरटीआई के तहत वन विभाग से बीते दस सालों में मानव वन्यजीव संघर्ष के आंकड़ों की जानकारी मिली है. रिपोर्ट में प्रदेश में 603 लोगों की मौत जंगली जानवरों के हमलों में हुई है. इसमें से सबसे ज्यादा 236 लोगों को गुलदार ने अपना शिकार बनाया है. वहीं साल 2017 के बाद से गुलदार के हमलों में जान गंवाने वाले लोगों की संख्या में लगातार इजाफा हुआ है. अकेले 2021 में ही अब तक गुलदार 14 लोगों की जान ले चुका है. इंसानों की जान लेने में गुलदार के बाद हाथी का नंबर है। 127 लोग हाथी के हमले में अब तक मारे गए हैं.