पिथौरागढ़: वन विभाग ने मुनस्यारी के खलिया टॉप में रात्रि विश्राम पर रोक लगा दी है. असल में बीते कुछ समय से खलिया टॉप में सैलानियों की संख्या में खासा इजाफा हो गया था. जिस कारण इस बुग्याल को खासा नुकसान पहुंच रहा था. वन विभाग ने सैलानियों के संख्या को भी रेगुलाइज किया है. नए नियमों के मुताबिक, एक दिन में सिर्फ 200 लोगों को ही खलियाटॉप जाने की परमिशन दी जाएगी.
पिथौरागढ़ जिले में वन विभाग ने बुग्यालों को संरक्षित करने की कवायद तेज कर दी है. 3500 मीटर की ऊंचाई पर स्थित खलियाटॉप में सैलानियों के रात्रि विश्राम, कैम्प फायर और टैंट लगाने पर रोक लगा दी गयी है. साथ ही एक दिन में अधिकतम 200 लोगों को ही खलियाटॉप जाने की अनुमति मिलेगी.
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बता दें कि जिले की धारचूला और मुनस्यारी तहसील में 50 से अधिक बुग्याल हैं, जो सर्दियों में बर्फ से ढके रहते हैं और गर्मियों में यहां सुंदर फूल और घास के मैदान नजर आते हैं. बुग्यालों की इसी खूबसूरती को निहारने के देश-विदेश के सैलानी यहां खिंचे चले आते हैं. साथ ही यहां रात में कैम्प लगाकर रुकना भी पसंद करते हैं, लेकिन वन विभाग द्वारा जारी नए नियमों के मुताबिक, अब सैलानियों को सिर्फ दिन के समय ही बुग्यालों में आने की अनुमति मिलेगी.
वन विभाग के प्रभारी डीएफओ नवीन पंत ने बताया कि बुग्यालों के संरक्षण के मद्देनजर सिर्फ दिन के समय ही सैलानी खलियटॉप जा सकेंगे. साथ ही एक दिन में अधिकतम 200 लोगों को ही यहां जाने की अनुमति दी जाएगी.
किसे कहते हैं बुग्याल
उत्तराखंड में कई ऐसे बुग्याल हैं, जो अपनी खूबसूरती के लिए विश्व विख्यात हैं. जिन्हें देखने के लिए पर्यटक दूर-दूर से पहुंचते हैं. बुग्याल शब्द का अर्थ है, पहाड़ों की ऊंचाई पर स्थिति घांस के मैदान. भूगोल के शब्दों में इन्हें सवाना नाम से भी जाता है. जिन्हें देखकर आभास होता है कि मानों जैसे किसी ने इन पहाड़ों पर घांस के गद्दे बिछा दिए हो.
उत्तराखंड हिमालय के हिमशिखरों की तलहटी में जहां भी टिंबर रेखा (यानी पेड़ों की पंक्तियां) समाप्त होती है. वहां से हरे मीलों तक फैले मखमली घास के मैदान शुरू होते हैं. आमतौर पर ये आठे से दस हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित होते हैं. बुग्याल हिम रेखा और वृक्ष रेखा के बीच का क्षेत्र होता है.