पिथौरागढ़: पर्यावरण संरक्षण को लेकर चीन भारत के मुकाबले काफी संजीदा है. यही वजह है कि आस्था के केंद्र मानसरोवर के संरक्षण के लिए चीन ने झील में डूबकी पर पूरी तरह से रोक लगा दी है. झील संरक्षण को लेकर चीन के इस कदम से भारतीय तीर्थ यात्री भी खासे प्रभावित हैं. वहीं, अब तीर्थयात्रियों ने भारत में भी नदियों के संरक्षण के लिए चीन की तर्ज पर ही सख्ती करने की मांग की है.
बता दें कि, चीन सरकार ने मानसरोवर को बचाने के लिए झील में स्नान पर पूरी तरह से रोक लगाई है. तीर्थ यात्रियों के लिए विकल्प के तौर पर बाल्टी से पानी निकालकर झील के किनारे स्नान की व्यवस्था की गई है. जिसे भारतीय तीर्थ यात्री भी काफी सराह रहे हैं. कैलाश मानसरोवर यात्रा से लौटे आईटीबीपी के डीआईजी एपीएस निम्बाडिया ने भी चीन की तर्ज पर भारत में भी नदियों को बचाने के लिए सख्ती करने की पैरवी की है.
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गौर हो कि, 4590 मीटर की ऊंचाई पर मौजूद मानसरोवर झील क्षेत्र से बह्मपुत्र, सतलज, करनाली और सिंधु जैसी नदियां निकलती हैं. 320 वर्ग किलोमीटर में फैले मानसरोवर झील के संरक्षण को आधी दुनिया के पर्यावरण के लिए जरूरी माना जाता है. यही वजह है कि चीन सरकार ने मानसरोवर झील की निगरानी के लिए सेटेलाइट कैमरे लगाए हैं. वहीं, झील में नहाने वालों पर 5 हजार यूआन यानी 50 हजार रुपये का जुर्माने का भी नियम बनाया है.
उधर, पर्यावरण बचाने की चीन की ये पहल भले ही धार्मिक आस्था की राह में रोड़ा हो, बावजूद इसके सभी धर्मों को मानने वाले इसकी जमकर तारीफ कर रहे हैं. साथ ही ये उम्मीद भी जता रहे हैं कि अपनी नदियों को बचाने के लिए चीन की इस पहल से कुछ न कुछ सीख लेंगे. ऐसे में नदियां स्वच्छ और पवित्र रह सकेंगी.