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आजादी के 7 दशक बाद लाइफ लाइन से जुड़े चीन सीमा के गांव, पढ़िए फायदे और नुकसान

बीआरओ ने 12 साल की कड़ी मशक्कत के बाद घटियाबगड़ से लिपुलेख तक 74 किलोमीटर की सड़क बना डाली है. इस सड़क को काटने में पिछले दस सालों में ग्रिफ के एक जूनियर इंजीनियर, दो ऑपरेटरों और छह स्थानीय मजदूरों को अपनी जान गंवानी पड़ी है. आइए आपको सड़क निर्माण के दौरान आई बाधाएं और इसके फायदे व नुकसान को बताते हैं.

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पिथौरागढ़ सड़क
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Published : May 9, 2020, 3:52 PM IST

Updated : May 9, 2020, 4:33 PM IST

पिथौरागढ़: चीन सीमा तक अब गाड़ी से पहुंचा जा सकेगा. बॉर्डर रोड ऑर्गनाइजेशन (BRO) ने लिपुलेख दर्रे तक सड़क पहुंचा दी है. ये लम्हा पिथौरागढ़ के बॉर्डर इलाकों में रहने वालों के लिए तो यादगार है ही, साथ ही सुरक्षा के लिहाज से भी खासा अहम है. बीआरओ ने 12 साल की कड़ी मशक्कत के बाद घटियाबगड़ से लिपुलेख तक 74 किलोमीटर की सड़क काट ली है.

सड़क सुविधा से जुड़े चीन सीमा के गांव.

लिपुलेख तक सड़क बनाना इसलिए भी अहम माना जा रहा है कि दुनिया की सबसे कठिन पहाड़ियों को काटकर इसे तैयार किया गया है. लखनपुर और नजंग की पहाड़ियों को काटना बेहद कठिन था. इस सड़क को काटने में पिछले दस सालों में ग्रिफ के एक जूनियर इंजीनियर, दो ऑपरेटरों और छह स्थानीय मजदूरों को अपनी जान गंवानी पड़ी है. साथ ही करोड़ों की मशीनें भी सड़क निर्माण के दौरान इन चट्टानों के नीचे दफन हो गईं.

सेना, आईटीबीपी, और एसएसबी की राह हुई आसान

लिपुलेख रोड का सुरक्षा के नजरिए से भी खासा महत्व है. बॉर्डर पर तैनात सेना, आईटीबीपी, और एसएसबी का सफर जो हफ्तों में तय होता था, अब वो घंटों में पूरा हो जाएगा. इतना ही नहीं कैलाश-मानसरोवर जाने वाले यात्रियों को भी दुर्गम पैदल सफर से मुक्ति मिल जाएगी. साथ ही इंडो-चाइना ट्रेड की राह भी इस सड़क के बनने से आसान हो गई है. हालांकि, तकनीकी कारणों से अभी भी लिपुलेख से कुछ पहले तक ही सड़क बनी है. लेकिन, डीजीएमओ की रोक हटने पर ये कटिंग भी पूरी हो जाएगी.

ये भी पढ़ेंः लॉकडाउन ने दुश्मनों की करा दी यारी, एक ही घर में रहे हैं तेंदुआ-टाइगर बारी-बारी

घाटी के कई गावों के लोगों का सपना हुआ पूरा

चीन और नेपाल सीमा से सटे जिले के दूरस्थ गांव अब तक सड़क सुविधा से महरूम थे. आजादी के सात दशक बाद व्यास घाटी के 7 गांवों के ग्रामीणों ने सड़क के दर्शन किए हैं. ऐसे में सीमांत क्षेत्र के लोगों की खुशी का कोई ठिकाना नहीं है. लिपुलेख तक सड़क बनने से यात्रा पड़ाव मालपा और लामारी के साथ ही व्यास घाटी के बूंदी, गर्ब्यांग, नपलच्यु, गूंजी, नाबी, रोंगकोंग और कुटी गांव की हजारों की आबादी को राहत मिलेगी. साथ ही नेपाल के सीमांत गांव छांगरू और टिंकर के लोगों को भी सड़क का लाभ मिलेगा.

नैसर्गिक सौंदर्य से लबरेज घाटी में पर्यटन को मिलेगा बढ़ावा

नाबी की ग्राम प्रधान सनम देवी का कहना है कि सड़क पहुंचने से जहां द्वितीय रक्षा पंक्ति कहे जाने वाले सीमांत के प्रहरियों को राहत मिली है. जबकि, नैसर्गिक सौंदर्य से लबरेज इस इलाके में पर्यटन का भी विकास होगा. वहीं, रोंगकोंग की ग्राम प्रधान अंजू देवी ने बताया कि उनका गांव अभी भी सड़क सुविधा से नहीं जुड़ा है. ऐसे में सरकार को नपलच्यू से रोंगकोंग को जोड़ने के लिए सड़क बनाने की जरूरत है, जिससे उनके गांव के लोग भी सड़क सुविधा से जुड़ सकें.

ग्रामीणों को मिली बड़ी राहत

कल्याण संस्था की पूर्व अध्यक्ष कृष्णा गर्ब्याल का कहना है कि लोग अब तक पोनी-पोर्टर्स के सहारे दुर्गम रास्तों से होकर गांव जाते थे. जिस कारण उनकी जान को खतरा बना रहता था, लेकिन सड़क पहुंचने से लोगों को बड़ी राहत मिलेगी. साथ ही उन्होंने कहा कि ये इलाका आपदा की दृष्टि से जोन-5 में आता है. सड़क बनने से यहां आपदा राहत कार्यों को संचालित करने में मदद मिलेगी.

ये भी पढ़ेंः कोहनियों को हाथ बनाकर बन गयी पेंटर, कठिन परिस्थितियों में भी जिंदगी से कहा- 'मैं तैयार हूं'

12 साल के सफर में कई मुश्किलों को पार कर बीआरओ ने वो कर दिखाया है, जो कभी सपना लगता था. लेकिन, अभी भी सड़क को चौड़ा करने के साथ ही डामरीकरण होना शेष है. साथ ही मालपा और बूंदी में दो पुल भी बनने बाकी हैं. बावजूद इसके पहले चरण में इसे सुरक्षा एंजेसियों के लिए तैयार कर लिया गया है और जल्द ही आम लोगों की भी यहां आवाजाही हो जाएगी.

पोनी पोर्टर्स की आजीविका पर संकट

चीन सीमा को जोड़ने वाली ये सड़क जहां सीमांत क्षेत्र के लोगों के लिए वरदान है. वहीं कई परिवारों के लिए ये अभिशाप भी साबित हो सकती है. सड़क बनने से हजारों पोनी पोर्टर्स और कंधे में लादकर सामान ढोने वालों की आजीविका खतरे में पड़ गई है. अब तक ये लोग सीमांत क्षेत्रों में सामान लादकर पहुंचाने का 2 से 3 हजार रुपये लेते थे.

इससे इनकी आजीविका चलती थी, लेकिन सड़क बनने से इनका एक मात्र रोजगार भी छिन गया है. पोनी-पोर्टर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष जगत मर्तोलिया का कहना है कि सड़क बनने से सीमांत क्षेत्र के कई पोनी पोर्टर्स की आजीविका खतरे में है. ऐसे में सरकार को इन लोगों को रोजगार से जोड़ने के लिए ठोस योजना बनाने की जरूरत है.

पिथौरागढ़: चीन सीमा तक अब गाड़ी से पहुंचा जा सकेगा. बॉर्डर रोड ऑर्गनाइजेशन (BRO) ने लिपुलेख दर्रे तक सड़क पहुंचा दी है. ये लम्हा पिथौरागढ़ के बॉर्डर इलाकों में रहने वालों के लिए तो यादगार है ही, साथ ही सुरक्षा के लिहाज से भी खासा अहम है. बीआरओ ने 12 साल की कड़ी मशक्कत के बाद घटियाबगड़ से लिपुलेख तक 74 किलोमीटर की सड़क काट ली है.

सड़क सुविधा से जुड़े चीन सीमा के गांव.

लिपुलेख तक सड़क बनाना इसलिए भी अहम माना जा रहा है कि दुनिया की सबसे कठिन पहाड़ियों को काटकर इसे तैयार किया गया है. लखनपुर और नजंग की पहाड़ियों को काटना बेहद कठिन था. इस सड़क को काटने में पिछले दस सालों में ग्रिफ के एक जूनियर इंजीनियर, दो ऑपरेटरों और छह स्थानीय मजदूरों को अपनी जान गंवानी पड़ी है. साथ ही करोड़ों की मशीनें भी सड़क निर्माण के दौरान इन चट्टानों के नीचे दफन हो गईं.

सेना, आईटीबीपी, और एसएसबी की राह हुई आसान

लिपुलेख रोड का सुरक्षा के नजरिए से भी खासा महत्व है. बॉर्डर पर तैनात सेना, आईटीबीपी, और एसएसबी का सफर जो हफ्तों में तय होता था, अब वो घंटों में पूरा हो जाएगा. इतना ही नहीं कैलाश-मानसरोवर जाने वाले यात्रियों को भी दुर्गम पैदल सफर से मुक्ति मिल जाएगी. साथ ही इंडो-चाइना ट्रेड की राह भी इस सड़क के बनने से आसान हो गई है. हालांकि, तकनीकी कारणों से अभी भी लिपुलेख से कुछ पहले तक ही सड़क बनी है. लेकिन, डीजीएमओ की रोक हटने पर ये कटिंग भी पूरी हो जाएगी.

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घाटी के कई गावों के लोगों का सपना हुआ पूरा

चीन और नेपाल सीमा से सटे जिले के दूरस्थ गांव अब तक सड़क सुविधा से महरूम थे. आजादी के सात दशक बाद व्यास घाटी के 7 गांवों के ग्रामीणों ने सड़क के दर्शन किए हैं. ऐसे में सीमांत क्षेत्र के लोगों की खुशी का कोई ठिकाना नहीं है. लिपुलेख तक सड़क बनने से यात्रा पड़ाव मालपा और लामारी के साथ ही व्यास घाटी के बूंदी, गर्ब्यांग, नपलच्यु, गूंजी, नाबी, रोंगकोंग और कुटी गांव की हजारों की आबादी को राहत मिलेगी. साथ ही नेपाल के सीमांत गांव छांगरू और टिंकर के लोगों को भी सड़क का लाभ मिलेगा.

नैसर्गिक सौंदर्य से लबरेज घाटी में पर्यटन को मिलेगा बढ़ावा

नाबी की ग्राम प्रधान सनम देवी का कहना है कि सड़क पहुंचने से जहां द्वितीय रक्षा पंक्ति कहे जाने वाले सीमांत के प्रहरियों को राहत मिली है. जबकि, नैसर्गिक सौंदर्य से लबरेज इस इलाके में पर्यटन का भी विकास होगा. वहीं, रोंगकोंग की ग्राम प्रधान अंजू देवी ने बताया कि उनका गांव अभी भी सड़क सुविधा से नहीं जुड़ा है. ऐसे में सरकार को नपलच्यू से रोंगकोंग को जोड़ने के लिए सड़क बनाने की जरूरत है, जिससे उनके गांव के लोग भी सड़क सुविधा से जुड़ सकें.

ग्रामीणों को मिली बड़ी राहत

कल्याण संस्था की पूर्व अध्यक्ष कृष्णा गर्ब्याल का कहना है कि लोग अब तक पोनी-पोर्टर्स के सहारे दुर्गम रास्तों से होकर गांव जाते थे. जिस कारण उनकी जान को खतरा बना रहता था, लेकिन सड़क पहुंचने से लोगों को बड़ी राहत मिलेगी. साथ ही उन्होंने कहा कि ये इलाका आपदा की दृष्टि से जोन-5 में आता है. सड़क बनने से यहां आपदा राहत कार्यों को संचालित करने में मदद मिलेगी.

ये भी पढ़ेंः कोहनियों को हाथ बनाकर बन गयी पेंटर, कठिन परिस्थितियों में भी जिंदगी से कहा- 'मैं तैयार हूं'

12 साल के सफर में कई मुश्किलों को पार कर बीआरओ ने वो कर दिखाया है, जो कभी सपना लगता था. लेकिन, अभी भी सड़क को चौड़ा करने के साथ ही डामरीकरण होना शेष है. साथ ही मालपा और बूंदी में दो पुल भी बनने बाकी हैं. बावजूद इसके पहले चरण में इसे सुरक्षा एंजेसियों के लिए तैयार कर लिया गया है और जल्द ही आम लोगों की भी यहां आवाजाही हो जाएगी.

पोनी पोर्टर्स की आजीविका पर संकट

चीन सीमा को जोड़ने वाली ये सड़क जहां सीमांत क्षेत्र के लोगों के लिए वरदान है. वहीं कई परिवारों के लिए ये अभिशाप भी साबित हो सकती है. सड़क बनने से हजारों पोनी पोर्टर्स और कंधे में लादकर सामान ढोने वालों की आजीविका खतरे में पड़ गई है. अब तक ये लोग सीमांत क्षेत्रों में सामान लादकर पहुंचाने का 2 से 3 हजार रुपये लेते थे.

इससे इनकी आजीविका चलती थी, लेकिन सड़क बनने से इनका एक मात्र रोजगार भी छिन गया है. पोनी-पोर्टर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष जगत मर्तोलिया का कहना है कि सड़क बनने से सीमांत क्षेत्र के कई पोनी पोर्टर्स की आजीविका खतरे में है. ऐसे में सरकार को इन लोगों को रोजगार से जोड़ने के लिए ठोस योजना बनाने की जरूरत है.

Last Updated : May 9, 2020, 4:33 PM IST
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