श्रीनगर: औषधीय गुणों से भरपूर उत्तराखंड के पारंपरिक भोजन को अब अस्पतालों में भर्ती होने वाले मरीजों को भी परोसा जायेगा. इसके लिए गढ़भोज अभियान के सूत्रधार व स्वास्थ्य विभाग जल्द ही व्यवस्था बनाने जा रहे हैं. इससे पूर्व गढ़भोज अभियान के तहत प्रदेश के सरकारी स्कूलों के मिड-डे-मील में छात्रों को भोजन परोसा जा रहा है. गढ़भोज में उत्तराखंड के बारह अनाजों के साथ अन्य पारंपरिक भोजन को स्थान दिया गया है, जिसमें मुख्य रूप से कोदा, झंगोरा, चौलाई है.
गढ़ भोज को पहचान दिलाने का प्रयास: उत्तराखंड के पारंपरिक भोजन को मुख्य धारा में लाने का कार्य कर रहे जगदंबा प्रसाद सेमवाल ने बताया कि यह दुनिया का पहला ऐसा अभियान है, जो स्थानीय भोजन को बाजार व पहचान दिलाने का प्रयास कर रहा है. इसमें काफी हद तक सफलता भी मिली है जो आज गांव के चूल्हे से लेकर बड़े होटलों के मेन्यू का हिस्सा बन रहा है. उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा भी साल 2021 को गढ़भोज वर्ष के रूप में मनाया गया था. लगातार सरकारी व गैर सरकारी संस्थानों में उत्तराखंड के पांरपरिक खाद्य को पहुंचाने का कार्य किया जा रहा है. जिससे पहाड़ के किसानों की आर्थिकी सुधर सके और पहाड़ के अनाजों को पहचान भी मिल पाए.
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उत्तराखंड के पारंपरिक भोजन: उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में रहने वाले लोग अपने दैनिक जीवन में फानु, काफुली, भिवाणी, चैंसो, झोली, गहत के पराठे और दाल, रोट, बाड़ी जैसे गढ़वाली व्यंजन खाते हैं. वहीं कुमाऊं में आलू के गुटुके, डुबके, थथवानी, कापा, भट की चुड़कानी, जौला, सिसौणक साग बनाते हैं, जो खाने में स्वादिष्ट होते ही हैं इनमें भरपूर पौष्टिकता भी होती है. इसी तरह खाने को और भी स्वादिष्ट बनाने के लिए भोजन में तिल की चटनी, भंगीरे की चटनी, मूली की ठिकाणी, हरा पिसा हुआ नमक का इस्तेमाल किया जाता रहा है. इसी की तरह मीठे में सिंघाल पुहा, झंगोरे की खीर, सिगुड़ी, बाल मिठाई, आटे की लपसी बनाई जाती है.