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बदरीनाथ तप्त कुंड में मिली सूक्ष्म शैवाल की दुर्लभ प्रजाति, बायोडीजल बनाने में है सक्षम - प्रीति सिंह

गढ़वाल विश्वविद्यालय की शोध छात्रा प्रीति सिंह ने बदरीनाथ तप्त कुंड में सूक्ष्म शैवाल की खोज की है. प्रीति सिंह के मुताबिक, यह प्रजाति उत्तराखंड में पहली बार खोजी गई है. साथ ही बायोडीजल बनाने में सक्षम है. प्रीति सिंह गढ़वाल में पाए जाने वाले 100 से अधिक सूक्ष्म शैवालों की बायोडीजल उत्पादक क्षमता पर कार्य कर रही हैं.

Badrinath Tript Kund
बदरीनाथ तप्त कुंड
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Published : Jul 10, 2022, 11:28 AM IST

Updated : Jul 10, 2022, 4:26 PM IST

श्रीनगरः गढ़वाल विश्वविद्यालय के सूक्ष्म जैविकी विषय की शोध छात्रा प्रीति सिंह ने बदरीनाथ तप्त कुंड के पानी में सूक्ष्म शैवाल की एक दुर्लभ प्रजाति Pseudobohlinia sp. (स्यूडोबोह्लिनिया प्रजाति) की खोज की है. पीएचडी स्कॉलर प्रीति के मुताबिक, यह प्रजाति उत्तराखंड में पहली बार खोजी गई है. प्रीति सिंह को डॉ. धनंजय कुमार के निर्देशन में यह उपलब्धि उनके पीएचडी शोध के दौरान मिली है. प्रीति सिंह गढ़वाल में पाए जाने वाले 100 से अधिक सूक्ष्म शैवालों की बायोडीजल उत्पादक क्षमता पर कार्य कर रही हैं. इस शोध में पाया गया कि यह दुर्लभ प्रजाति उत्तराखंड में तीसरी पीढ़ी का बायोडीजल उत्पादित करने के लिए प्रयोग की जा सकती है. यह शोध अंतरराष्ट्रीय प्रकाशन एल्सेवियर से प्रकाशित पत्रिका बायोमास एंड बायोएनर्जी में भी प्रकाशित हो चुकी है.

Pseudobohlinia sp. (स्यूडोबोह्लिनिया प्रजाति) नाम के इस सूक्ष्म शैवाल को इससे पूर्व 1980 में गुजरात, 1966 में अमेरिका, 1987 में बांग्लादेश में भी खोजा जा चुका है. लेकिन इसके ऊपर खोजे जाने के अतिरिक्त कोई अन्य कार्य नहीं हो सका. लेकिन अब एक बार फिर बदरीनाथ में इस शैवाल के मिलने से इससे बायोडीजल बनाने में मदद मिल सकेगी. इस शैवाल को माइक्रोस्कोप से ही देखा जा सकता है. ये 5 माइक्रोमीटर का होता है, ये अमूमन 25 से 35 डिग्री तापमान पर ही पाया जाता है. लेकिन इसकी खासियत ये है कि ये गर्म वातावरण के साथ साथ ठंडे वातावरण में भी अपने आप को सर्वाइव कर सकता है.

बदरीनाथ तप्त कुंड में मिली सूक्ष्म शैवाल की दुर्लभ प्रजाति.
ये भी पढ़ेंःपांडव सेरा में आज भी अपने आप उगती है धान की फसल, ये है पौराणिक कथा

इस शैवाल की सबसे अच्छी खासियत इसकी ग्रोइंग कैपेसिटी होती है. ये बड़ी तेजी के साथ बढ़ता है. इसके लिपिड से उन्नत क्वालिटी का बायोडीजल बनाया जा सकता है. गढ़वाल विवि की शोध छात्रा प्रीति सिंह ने ETV भारत से बात करते हुए बताया कि लैब में ये बात साफ पता चली है कि इससे अच्छी क्वालिटी का बायोडीजल बनाया जा सकता है. लेकिन इसके लिए इसका बड़ी मात्रा में उत्पादन करना जरूरी होगा, जो आसानी से हो भी सकता है. इसकी बढ़ने की क्षमता बेहद तेज है. बस सरकार को इस ओर धयान देने की जरूरत है, साथ में इसके लिए आगे शोध होने भी बेहद जरूरी है. उन्होंने बताया कि इस शैवाल से तीसरी पीढ़ी का उन्नत बायोडीजल बनाया जा सकता है.

क्या होता है बायोडीजल? बायोडीजल पारंपरिक या 'जीवाश्म' डीजल के स्थान पर एक वैकल्पिक ईंधन है. बायोडीजल सीधे वनस्पति तेल, पशुओं की वसा, तेल और खाना पकाने के अपशिष्ट तेल से उत्पादित किया जा सकता है. इन तेलों को बायोडीजल में परिवर्तित करने के लिए प्रयुक्त प्रक्रिया को ट्रान्स-इस्टरीकरण कहा जाता है. बता दें कि यूज्ड कुकिंग ऑयल का खाद्य पदार्थों को तलने में बार-बार उपयोग करने से कैंसर जैसी गंभीर बीमारियां होने का खतरा रहता है. बार-बार उपयोग किए गए तेल के उपभोग का सीधा असर स्वास्थ्य पर पड़ता है.

श्रीनगरः गढ़वाल विश्वविद्यालय के सूक्ष्म जैविकी विषय की शोध छात्रा प्रीति सिंह ने बदरीनाथ तप्त कुंड के पानी में सूक्ष्म शैवाल की एक दुर्लभ प्रजाति Pseudobohlinia sp. (स्यूडोबोह्लिनिया प्रजाति) की खोज की है. पीएचडी स्कॉलर प्रीति के मुताबिक, यह प्रजाति उत्तराखंड में पहली बार खोजी गई है. प्रीति सिंह को डॉ. धनंजय कुमार के निर्देशन में यह उपलब्धि उनके पीएचडी शोध के दौरान मिली है. प्रीति सिंह गढ़वाल में पाए जाने वाले 100 से अधिक सूक्ष्म शैवालों की बायोडीजल उत्पादक क्षमता पर कार्य कर रही हैं. इस शोध में पाया गया कि यह दुर्लभ प्रजाति उत्तराखंड में तीसरी पीढ़ी का बायोडीजल उत्पादित करने के लिए प्रयोग की जा सकती है. यह शोध अंतरराष्ट्रीय प्रकाशन एल्सेवियर से प्रकाशित पत्रिका बायोमास एंड बायोएनर्जी में भी प्रकाशित हो चुकी है.

Pseudobohlinia sp. (स्यूडोबोह्लिनिया प्रजाति) नाम के इस सूक्ष्म शैवाल को इससे पूर्व 1980 में गुजरात, 1966 में अमेरिका, 1987 में बांग्लादेश में भी खोजा जा चुका है. लेकिन इसके ऊपर खोजे जाने के अतिरिक्त कोई अन्य कार्य नहीं हो सका. लेकिन अब एक बार फिर बदरीनाथ में इस शैवाल के मिलने से इससे बायोडीजल बनाने में मदद मिल सकेगी. इस शैवाल को माइक्रोस्कोप से ही देखा जा सकता है. ये 5 माइक्रोमीटर का होता है, ये अमूमन 25 से 35 डिग्री तापमान पर ही पाया जाता है. लेकिन इसकी खासियत ये है कि ये गर्म वातावरण के साथ साथ ठंडे वातावरण में भी अपने आप को सर्वाइव कर सकता है.

बदरीनाथ तप्त कुंड में मिली सूक्ष्म शैवाल की दुर्लभ प्रजाति.
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इस शैवाल की सबसे अच्छी खासियत इसकी ग्रोइंग कैपेसिटी होती है. ये बड़ी तेजी के साथ बढ़ता है. इसके लिपिड से उन्नत क्वालिटी का बायोडीजल बनाया जा सकता है. गढ़वाल विवि की शोध छात्रा प्रीति सिंह ने ETV भारत से बात करते हुए बताया कि लैब में ये बात साफ पता चली है कि इससे अच्छी क्वालिटी का बायोडीजल बनाया जा सकता है. लेकिन इसके लिए इसका बड़ी मात्रा में उत्पादन करना जरूरी होगा, जो आसानी से हो भी सकता है. इसकी बढ़ने की क्षमता बेहद तेज है. बस सरकार को इस ओर धयान देने की जरूरत है, साथ में इसके लिए आगे शोध होने भी बेहद जरूरी है. उन्होंने बताया कि इस शैवाल से तीसरी पीढ़ी का उन्नत बायोडीजल बनाया जा सकता है.

क्या होता है बायोडीजल? बायोडीजल पारंपरिक या 'जीवाश्म' डीजल के स्थान पर एक वैकल्पिक ईंधन है. बायोडीजल सीधे वनस्पति तेल, पशुओं की वसा, तेल और खाना पकाने के अपशिष्ट तेल से उत्पादित किया जा सकता है. इन तेलों को बायोडीजल में परिवर्तित करने के लिए प्रयुक्त प्रक्रिया को ट्रान्स-इस्टरीकरण कहा जाता है. बता दें कि यूज्ड कुकिंग ऑयल का खाद्य पदार्थों को तलने में बार-बार उपयोग करने से कैंसर जैसी गंभीर बीमारियां होने का खतरा रहता है. बार-बार उपयोग किए गए तेल के उपभोग का सीधा असर स्वास्थ्य पर पड़ता है.

Last Updated : Jul 10, 2022, 4:26 PM IST
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