श्रीनगर: चमोली के तपोवन में आई आपदा में जहां टीमें राहत-बचाव कार्य में जुटी हैं, तो वहीं दूसरी तरफ देश के वैज्ञानिक भी इस पूरी घटना पर अपनी नजर बनाए हुए हैं.
लंबे समय से सतोपंथ ग्लेशियर की ब्लैक कार्बन एरोसोल लोडिंग पर शोध कर रहे गढ़वाल विवि के भौतिक वैज्ञानिक असिस्टेन्ट प्रोफेसर आलोक सागर गौतम का कहना है कि आम जनता तक भी शोध कार्य की डिटेलिंग पहुंचनी चाहिए. साथ में सरकारों को भी वैज्ञनिकों द्वारा सुझाये गए शोधों पर पॉलिसी बनाकर इन मानव जनित आपदाओं को रोका जा सकता है. उन्होंने कहा जिस इलाके में यह घटना घटी है वह बहुत सेंसिटिव क्षेत्र था जहां मानव दखल बढ़ा है. समुद्रतल से इतनी ऊंचाई पर सतोपंथ ग्लेशियर की ब्लैक कार्बन एरोसोल जून में सबसे ज्यादा और अक्तूबर माह में कम प्राप्त हुई है. उन्होंने कहा कि शोध के अनुसार वायु मंडल में हवा की गति ज्यादा होने के कारण प्रदूषण ऊंचाई वाले इलाकों में जमा हो जाता है. जिससे ग्लेशियर पिघल रहे हैं. साथ में उत्तराखंड में जगलों में आग ग्लेशियर को पिघला रहे हैं.
असिस्टेन्ट प्रोफेसर डॉ. आलोक सागर गौतम का कहना है कि वह कई सालों से हरिद्वार से लेकर सतोपंथ ग्लेशियर में ब्लैक कार्बन एरोसोल लोडिंग पर कार्य कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि डस्ट के कारण ग्लेशियर पिघल रहे हैं. डस्ट गर्मी पैदा करती है जो प्रदूषण से पैदा होती है, डस्ट ग्लेशियर को पिघला रही है. उन्होंने बताया कि जिन स्थानों से वह सन 2016 में सतोपंथ ग्लेशियर तक जाया करते थे वे रास्ते या तो अब विलुप्त हो चुके या वे रास्ते बदल गए हैं. इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि किस तरह से इनपर ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव पड़ा है.
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उन्होंने कहा कि सरकार को ग्लेशियर से नजदीक के इलाकों में मानव गतिविधियों को रोकना होगा. साथ ही समय-समय पर ग्लेशियर में सोलर रेडिएशन की जांच करनी होगी. इनके पास की नदियों के रिवर फ्लो, डिस्चार्ज पर नजर रखनी होगी. साथ में इन इलाकों में ऑटो मीटिंग वेदर स्टेशन, अर्ली वार्निंग सिस्टम लगाने से इन घटनाओं का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है, जो उत्तराखंड के लिए बेहद जरूरी है.