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एनआईटी उत्तराखंड के इनोवेशन से पहाड़ों में दौड़ेंगे ई-रिक्शा, मिलेगी दोगुनी रफ्तार - integrated converter to run E Rickshaw

एनआईटी उत्तराखंड (NIT Uttarakhand) के प्रोफेसर और शोध छात्रों ने एक कनवर्टर का आविष्कार (Invention of converter at NIT Uttarakhand) किया है. इस कनवर्टर से पहाड़ों में आसानी से ई-रिक्शा चलाया जा सकेगा. इस कनर्वटर को ई-रिक्शा पर लगाने के बाद रिक्शा दोगुनी ताकत से दौड़ सकेगा. रिक्शा 6 डिग्री तापमान पर भी 4 लोगों को बैठाकर 20 से 25 किलोमीटर प्रतिघण्टा की रफ्तार से चलेगा.

converter Invention of NIT Uttarakhand
एनआईटी उत्तराखंड के इनोवेशन से पहाड़ों में दौड़ेगा E-Rickshaw
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Published : Jan 5, 2023, 8:32 PM IST

एनआईटी उत्तराखंड के इनोवेशन से पहाड़ों में दौड़ेगा E-Rickshaw

श्रीनगर: पहाड़ी राज्यों के लिए खुशखबरी है. अब पहाड़ी इलाकों में भी आपको ई-रिक्शा दौड़ता हुआ दिखेगा. एनआईटी उत्तराखंड (NIT Uttarakhand) के वैज्ञानिकों ने इसका तरीका खोज निकाला है. वैज्ञानिकों ने ऐसे कनवर्टर का आविष्कार किया है, जिससे ई रिक्शा को दोगुनी ताकत मिलेगी. साथ ही इससे ई रिक्शा चलाने के लिए सौर ऊर्जा की मदद मिल सकेगी. इस कनवर्टर को भारतीय पेटेंट अधिनियमों के तहत भारत सरकार द्वारा पेटेंट भी कर दिया गया है.

राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान उत्तराखंड के विद्युत अभियांत्रिकी विभाग में सहायक प्राध्यापक पद पर कार्यरत डॉ प्रकाश द्विवेदी और डॉ सौरव बोस सहित उनके शोध छात्रों राकेश थपलियाल, सत्यवीर सिंह नेगी ने पर्वतीय क्षेत्र के लिए ई-रिक्शा के लिए इंटीग्रेटेड कनर्वटर का आविष्कार किया है. इस कनर्वटर को ई-रिक्शा पर लगाने के बाद इससे रिक्शा को दोगुनी ताकत मिल जाएगी. रिक्शा 6 डिग्री तापमान पर भी 4 लोगों को बैठाकर 20 से 25 किलोमीटर प्रतिघण्टा की स्पीड से चल सकेगा. इस कनर्वटर के लग जाने के बाद ई-रिक्शा की बैटरी 4 घण्टे में ही चार्ज हो सकेगी. 100 किलोमीटर तक भी एक बार में चार्ज करने पर रिक्शा को चलाया जा सकेगा.

पढे़ं- ऋषिकेश-बदरीनाथ हाईवे पर लैंडस्लाइड जोन, ट्रीटमेंट रिपोर्ट तैयार करेंगे NIT के इंजीनियर

एनआईटी उत्तराखंड (NIT Uttarakhand) अभियांत्रिकी विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर प्रकाश द्विवेदी ने बताया इस इंटीग्रेटेड कनर्वटर को बनाने में उन्हें ढाई साल का समय लगा. इस प्रॉजेक्ट को बनाने के लिए उन्हें इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा 30 लाख रुपये का अनुदान दिया गया है, जिसके बाद इस कनर्वटर को बनाया जा सका है. इसे 6000 हज़ार रुपये में उपभोक्ता अपने ई-रिक्शा में लगा सकेंगे.

इसके प्रोडक्शन के बढ़ने के बाद ये बाजार में 3000 हजार रुपये में लोगों को मिल सकेगा. वैज्ञानिकों की इस उपलब्धि पर एनआइटी के निदेशक प्रो ललित कुमार अवस्थी ने भी सभी इस तकनीक का इजाद करने वाले वैज्ञानिकों को बधाई दी. उन्होंने कहा इससे हिमालय रीजन में प्रदूषण पर भी नियंत्रण किया जा सकेगा. साथ ही यातायात में भी लोगों को मदद मिलेगी.

एनआईटी उत्तराखंड के इनोवेशन से पहाड़ों में दौड़ेगा E-Rickshaw

श्रीनगर: पहाड़ी राज्यों के लिए खुशखबरी है. अब पहाड़ी इलाकों में भी आपको ई-रिक्शा दौड़ता हुआ दिखेगा. एनआईटी उत्तराखंड (NIT Uttarakhand) के वैज्ञानिकों ने इसका तरीका खोज निकाला है. वैज्ञानिकों ने ऐसे कनवर्टर का आविष्कार किया है, जिससे ई रिक्शा को दोगुनी ताकत मिलेगी. साथ ही इससे ई रिक्शा चलाने के लिए सौर ऊर्जा की मदद मिल सकेगी. इस कनवर्टर को भारतीय पेटेंट अधिनियमों के तहत भारत सरकार द्वारा पेटेंट भी कर दिया गया है.

राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान उत्तराखंड के विद्युत अभियांत्रिकी विभाग में सहायक प्राध्यापक पद पर कार्यरत डॉ प्रकाश द्विवेदी और डॉ सौरव बोस सहित उनके शोध छात्रों राकेश थपलियाल, सत्यवीर सिंह नेगी ने पर्वतीय क्षेत्र के लिए ई-रिक्शा के लिए इंटीग्रेटेड कनर्वटर का आविष्कार किया है. इस कनर्वटर को ई-रिक्शा पर लगाने के बाद इससे रिक्शा को दोगुनी ताकत मिल जाएगी. रिक्शा 6 डिग्री तापमान पर भी 4 लोगों को बैठाकर 20 से 25 किलोमीटर प्रतिघण्टा की स्पीड से चल सकेगा. इस कनर्वटर के लग जाने के बाद ई-रिक्शा की बैटरी 4 घण्टे में ही चार्ज हो सकेगी. 100 किलोमीटर तक भी एक बार में चार्ज करने पर रिक्शा को चलाया जा सकेगा.

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एनआईटी उत्तराखंड (NIT Uttarakhand) अभियांत्रिकी विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर प्रकाश द्विवेदी ने बताया इस इंटीग्रेटेड कनर्वटर को बनाने में उन्हें ढाई साल का समय लगा. इस प्रॉजेक्ट को बनाने के लिए उन्हें इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा 30 लाख रुपये का अनुदान दिया गया है, जिसके बाद इस कनर्वटर को बनाया जा सका है. इसे 6000 हज़ार रुपये में उपभोक्ता अपने ई-रिक्शा में लगा सकेंगे.

इसके प्रोडक्शन के बढ़ने के बाद ये बाजार में 3000 हजार रुपये में लोगों को मिल सकेगा. वैज्ञानिकों की इस उपलब्धि पर एनआइटी के निदेशक प्रो ललित कुमार अवस्थी ने भी सभी इस तकनीक का इजाद करने वाले वैज्ञानिकों को बधाई दी. उन्होंने कहा इससे हिमालय रीजन में प्रदूषण पर भी नियंत्रण किया जा सकेगा. साथ ही यातायात में भी लोगों को मदद मिलेगी.

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