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कर्मचारियों की कमी से जूझ रहा वन विभाग, एक फॉरेस्ट गार्ड के जिम्मे तीन बीट

लेंसडाउन वन प्रभाग की कोटद्वार रेंज में वन कर्मियों की भारी कमी चल रही है. लाठी-डंडो और पुराने हथियारों से वन संपदा की सुरक्षा की जा रही है. साथ ही एक फॉरेस्ट गार्ड को तीन-तीन बीटों की जिम्मेदारी दी गई है.

कोटद्वार रेंज में वन कर्मियों की कमी.
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Published : Sep 5, 2019, 7:14 PM IST

कोटद्वार: लेंसडाउन वन प्रभाग के कोटद्वार रेंज में वन संपदा और वन्यजीवों की सुरक्षा करना वन विभाग के लिए चुनौती बनता जा रहा है. वन विभाग के पास सुरक्षा के आधुनिक हथियारों की कमी है. साथ ही स्टाफ की भी भारी कमी है. इस मामले को लेकर कोटद्वार रेंज के रेंजर बृज बिहारी शर्मा का कहना है कि एक फॉरेस्टर के पास तीन बीटें होने के कारण वन संपदा को बचाने में दिक्कत हो रही है.

बता दें कि उत्तराखंड में 71 प्रतिशत वन क्षेत्र है. वन क्षेत्रों में दुर्लभ वन संपदा और वन्यजीवों को बचाना वन विभाग के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है. वन विभाग के पास वन कर्मी और आधुनिक हथियारों की भारी कमी है. कोटद्वार रेंज के अलग-अलग पदों पर तकरीबन 50% वन कर्मियों की कमी है. ऐसे में वनों की सुरक्षा भी पुराने हथियारों और डंडो के सहारे चल रही है. साथ ही कर्मचारियों की कमी के चलते एक फॉरेस्ट गार्ड के पास तीन-तीन बीटों की सुरक्षा की जिम्मेदारी है.

कोटद्वार रेंज में वन कर्मियों की कमी.

पढ़ें: बेटी पैदा होने पर पत्नी को दिया तलाक, पुलिस ने शुरू की जांच

उधर, वन दरोगा भी अपने क्षेत्र के साथ-साथ दूसरे क्षेत्र की जिम्मेदारी उठा रहे हैं. ऐसे में लेंसडाउन वन प्रभाग की अतिसंवेदनशील कोटद्वार रेंज में बहने वाली मालन, सोखरो और खोह नदी को खनन माफिया से कैसे बचाया जाएगा, यह अपने आप में एक बड़ा सवाल है.

वहीं, रेंजर बृज बिहारी शर्मा का कहना है कि कोटद्वार रेंज में 50% से भी कम स्टाफ हैं. यहां एक फॉरेस्ट गार्ड तीन-तीन बीटों में वन संपदा की रक्षा कर रहा है. मालन जैसे संवेदनशील क्षेत्र में एक फॉरेस्ट गार्ड है, वहीं उसके साथ कोई सहायक तक नहीं है. ऐसे में 24 घंटे कार्य करना मुश्किल है.

कोटद्वार: लेंसडाउन वन प्रभाग के कोटद्वार रेंज में वन संपदा और वन्यजीवों की सुरक्षा करना वन विभाग के लिए चुनौती बनता जा रहा है. वन विभाग के पास सुरक्षा के आधुनिक हथियारों की कमी है. साथ ही स्टाफ की भी भारी कमी है. इस मामले को लेकर कोटद्वार रेंज के रेंजर बृज बिहारी शर्मा का कहना है कि एक फॉरेस्टर के पास तीन बीटें होने के कारण वन संपदा को बचाने में दिक्कत हो रही है.

बता दें कि उत्तराखंड में 71 प्रतिशत वन क्षेत्र है. वन क्षेत्रों में दुर्लभ वन संपदा और वन्यजीवों को बचाना वन विभाग के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है. वन विभाग के पास वन कर्मी और आधुनिक हथियारों की भारी कमी है. कोटद्वार रेंज के अलग-अलग पदों पर तकरीबन 50% वन कर्मियों की कमी है. ऐसे में वनों की सुरक्षा भी पुराने हथियारों और डंडो के सहारे चल रही है. साथ ही कर्मचारियों की कमी के चलते एक फॉरेस्ट गार्ड के पास तीन-तीन बीटों की सुरक्षा की जिम्मेदारी है.

कोटद्वार रेंज में वन कर्मियों की कमी.

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उधर, वन दरोगा भी अपने क्षेत्र के साथ-साथ दूसरे क्षेत्र की जिम्मेदारी उठा रहे हैं. ऐसे में लेंसडाउन वन प्रभाग की अतिसंवेदनशील कोटद्वार रेंज में बहने वाली मालन, सोखरो और खोह नदी को खनन माफिया से कैसे बचाया जाएगा, यह अपने आप में एक बड़ा सवाल है.

वहीं, रेंजर बृज बिहारी शर्मा का कहना है कि कोटद्वार रेंज में 50% से भी कम स्टाफ हैं. यहां एक फॉरेस्ट गार्ड तीन-तीन बीटों में वन संपदा की रक्षा कर रहा है. मालन जैसे संवेदनशील क्षेत्र में एक फॉरेस्ट गार्ड है, वहीं उसके साथ कोई सहायक तक नहीं है. ऐसे में 24 घंटे कार्य करना मुश्किल है.

Intro:summary लैंसडौन वन प्रभाग की संवेदनशील रेंज कोटद्वार रेंज में वन कर्मियों की भारी कमी, लाठी-डंडो और पुराने ढर्रे के हथियारों से की जारी वन्य जीव, वन संपदा, नदियों की सुरक्षा।


intro लैंसडौन वन प्रभाग कोटद्वार रेंज में वन संपदा और वन्यजीवों की सुरक्षा करना वन विभाग के लिए चुनौती बनता जा रहा है एक ओर वन विभाग के पास स्टाफ की भारी कमी तो दूसरी ओर सुरक्षा के आधुनिक हथियारों की कमी, वनों की सुरक्षा और वन्यजीवों की सुरक्षा के लिए न तो पर्याप्त कर्मचारी हैं और ना ही आधुनिक हथियार ऐसे में वनों की सुरक्षा राम भरोसे चल रही है, कोटद्वार रेंज के रेंजर का कहना है कि 50% कर्मचारियों से वन संपदा और वन्य जीव और नदियों को अवैध खनन से बचाया जा रहा है, एक फॉरेस्टर के पास तीन- तीन बीटे है ऐसे में वह कैसे काम करेगा।


Body:वीओ1- ज्ञात हो कि उत्तराखंड में 71 प्रतिसत वन क्षेत्र है वन क्षेत्रों में दुर्लभ वन संपदा वन्य जीवो के कारण उत्तराखंड अपनी विशेष पहचान बनाए हुए हैं, ऐसे में वनों का दोहन वन्यजीवों का शिकार के लिए देश के कोने-कोने से तस्कर उत्तराखंड का रुख करते हैं, इन्हें रोकना वन विभाग के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है, वन महकमे के पास वन कर्मी और आधुनिक हथियारों की भारी कमी है, कोटद्वार रेंज के अलग-अलग पदों पर तकरीबन 50% वन कर्मियों की कमी है, ऐसे में वनों की सुरक्षा भी पुराने ढर्रे के हथियारों और डंडो के सहारे चल रहा है, कर्मचारियों की कमी के चलते एक फॉरेस्ट गार्ड के पास तीन-तीन बिटो की सुरक्षा की जिम्मेदारी दी गई है, यही हाल वन दरोगाओं का भी है जो अपने क्षेत्र के साथ-साथ दूसरे क्षेत्र की जिम्मेदारी भी उठा रहा है, ऐसे में लैंसडौन वन प्रभाग की अतिसंवेदनशील कोटद्वार रेंज में एक फॉरेस्टर तीन-तीन बीटों की जिम्मेदारी के साथ कैसे वन्य जीवो की सुरक्षा करेगा, कैसे वन संपदा की रक्षा करेगा और कैसे कोटद्वार रेंज में बहने वाली मालन, सोखरो और खोह नदी को खनन माफियो की चुगल से बचायेगा, यह अपने आप में एक बहुत बड़ा सवाल है, अगर जल्दी सरकार ने इस ओर ध्यान नहीं दिया तो आने वाले समय में कोटद्वार रेंज पर भारी संकट गहरा सकता है।


वही रेंजर बृज बिहारी शर्मा का कहना है कि कोटद्वार रेंज में हमारे पास 50% से भी कम स्टाफ है हमारे यहां एक फॉरेस्ट गार्ड तीन-तीन बिटो में काम कर रहा है मालन जैसे संवेदनशील क्षेत्र में एक फॉरेस्ट गार्ड है उसके साथ कोई सहायक तक भी नहीं है,बड़ा मुश्किल है ऐसे में 24 घंटे कार्य करना, उसके पास नदी के सिवाय प्लांटेशन है वन्यजीवों की सुरक्षा का जिम्मा है साथ ही रेंज के विभागीय कार्य भी होते हैं हर कर्मचारी के अपनी निजी जिंदगी भी होती है उसे खाना बनाना है खाना है नहाना है कपड़े धोने ऐसे में वह 24 घंटे कैसे कार्य करेगा।


बाइट बृज बिहारी शर्मा रेंजर


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