कोटद्वार: उत्तराखंड गठन के बाद कोटद्वार यूं तो अपनी कई खूबियों से जाना जाता था, लेकिन वर्तमान में जनप्रतिनिधियों के उपेक्षित रवैये के चलते नगर में विकास कार्यों को गति नहीं मिल पा रही है. जिसकी वजह से कोटद्वार अपनी सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत खोता जा रहा है.
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पौड़ी गढ़वाल जिले का यह छोटा सा शहर वर्तमान में लगभग सवा लाख आबादी वाला शहर है. नाम के अनुरूप कोटद्वार गढ़वाल का द्वार माना जाता है. लेकिन वर्तमान में कोटद्वार राजनीतिक अनदेखी का शिकार होता जा रहा है. उत्तराखंड गठन से पहले कोटद्वार गढ़वाल में अपनी विशेष पहचान बनाए हुए था, लेकिन वर्तमान में राजनेताओं की अनदेखी के चलते इसका विकास नहीं हो पा रहा है.
कोटद्वार की राजनीति में स्व. चंद्रमोहन सिंह नेगी और सुरेंद्र सिंह नेगी ने अपनी छाप छोड़ी है. पर्यटन के दृष्टि से भी कोटद्वार ने वर्ल्ड वाइड अपनी पहचान बनाई है. धार्मिक पर्यटन में भी सिद्धबली मंदिर व भरत की जन्मस्थली जैसे पवित्र स्थलों ने मानचित्र में अपना स्थान सुनिश्चित किया है.
राज्य बनने के बाद कोटद्वार और गढ़वाल के लोगों को कोटद्वार में विशेष पहचान दिलाने वाले प्रतिष्ठानों की जरूरत महसूस हुई. जिसके लिए लोगों ने कई बार सड़कों पर उतरकर आंदोलन किया और यहां कई प्रतिष्ठान भी स्वीकृत हुए, लेकिन बिना सही आकलन और राजनीतिक तालमेल के धरातल पर नहीं उतर सके. जिसका जीता जागता उदाहरण कोटद्वार में बनने वाला मेडिकल कॉलेज, एनआईआरडी सेंट्रल, आइटीबीपी सेंटर, गैस बॉटलिंग प्लांट व केंद्रीय विद्यालय है.
स्थानीय निवासी मुजीब नैथानी का कहना है कि कण्व नगरी कोटद्वार अपनी पहचान खोता जा रहा है. यहां जो पहले विधायक रहे, उन्होंने कोटद्वार के विकास की ओर कोई ध्यान नहीं दिया. पूर्व में खंडूरी ने एनआईआरडी के लिए 35 सौ करोड़ की धनराशि स्वीकृत की लेकिन उनके बाद के विधायकों ने उसे खुलने नहीं दिया. कोटद्वार में और भी कई संस्थान खुलने थे, लेकिन जनप्रतिनिधियों की आपसी रंजिश की भेंट चढ़ गये. कोटद्वार में सरकारी नदी घाटी की जमीन थी, जनप्रतिनिधियों ने उन पर कब्जा करवा लिया और कोटद्वार को श्रम सिटी बनने की ओर अग्रसर कर दिया.
उन्होंने कहा कि कोटद्वार उत्तराखंड आंदोलन का मुख्य केंद्र रहा है. कोटद्वार में जिस हिसाब से डेवलपमेंट होना चाहिए था, वो नहीं हो पाया है. पहाड़ के लोगों को यहां जो सुविधाएं मिलनी चाहिए थी, वो नहीं मिल रही हैं. कोटद्वार स्थित बेस चिकित्सालय रेफर सेंटर बनकर रह गया है. यहां पढ़ाई का कोई संस्थान नही है. बीईएल के अलावा कोई और प्रसिद्ध संस्थान नहीं है. कोटद्वार में कई प्रसिद्ध संस्थान आने थे लेकिन स्थानीय जनप्रतिनिधि और विधायक और सांसदों नहीं आने दिए. जिस कारण कोटद्वार अपनी पहचान दिन-प्रतिदिन खोता जा रहा है.
राज्य आंदोलनकारी महेंद्र सिंह रावत का भी कहना है कि जनप्रतिनिधियों ने आपसी रंजिश के कारण यहां पर विकास नहीं होने दिया. अगर किसी एक जनप्रतिनिधि ने कोई योजना स्वीकृत करवाई है तो दूसरे ने उसे रोकने का काम किया है. उन्होंने कहा कि स्थानीय लोगों की काफी समय से मांग थी कि यहां पर मेडिकल कॉलेज, केंद्रीय विश्वविद्यालय, गैस प्लांट और कण्वाश्रम का सौंदर्यीकरण हो, लेकिन नेताओं ने नहीं बनने दिया.