पौड़ी: घुसलगीखाल में होने वाले मकरैंण मेले की तैयारियां तेज हो गई हैं. इस दौरान मकरैंण मेला समिति पहाड़ी क्षेत्र में ढोल-दमाऊ, मशकबीन को संरक्षित करने के लिए ढोल सागर प्रशिक्षण केंद्र खोलने की मांग कर रहा है. साथ ही ढोल सागर को पाठ्यक्रम में शामिल करने की भी मांग है.
उत्तराखंड की लोक संस्कृति के वाद्ययंत्र ढोल-दमाऊ जो कि हर मंगल कार्यों के साथ-साथ कार्यक्रमों के शुभारंभ में महत्वपूर्ण हैं. लेकिन इनके संरक्षण के लिए किसी भी तरह से प्रयास नहीं किए जा रहे हैं. इस कारण से यह संस्कृति विलुप्त हो रही है. समिति की ओर से बताया गया कि संस्कृति विभाग के तत्वावधान में मार्च महीने में ढोल-दमाऊ की राज्य स्तरीय प्रतियोगिता आयोजित की जा रही है. जो कि हरिद्वार या देहरादून में आयोजित होगी. इस प्रतियोगिता की मदद से पहाड़ में ढोल-दमाऊ के क्षेत्र में काम कर रहे लोगों को एक मंच मिल पाएगा.
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मकरैंण मेला समिति के संयोजक आचार्य अनुसूया प्रसाद सुंद्रियाल ने बताया कि घुसगलीखाल में जनवरी 2000 में सबसे पहले ढोल सागर का आयोजन किया गया था. तब से ढोल-दमाऊ को संरक्षित करने की दिशा में नियमित आयोजन करवाया जा रहा है. इस कार्यक्रम का उद्देश्य है कि राज्य के विभिन्न जिलों के ढोल-दमाऊ वाद्ययंत्र इसमें शामिल हों. यह संस्कृति आने वाली पीढ़ियों तक जीवित रह सके इसके लिए इनका संरक्षण करना भी बहुत जरूरी है.