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पहाड़ी वाद्ययंत्र ढोल-दमाऊ के कलाकारों को मिलेगा मंच, बनेगी पहचान

उत्तराखंड की लोक संस्कृति के वाद्ययंत्र ढोल-दमाऊ जो कि हर मंगल कार्यों के साथ-साथ कार्यक्रमों के शुभारंभ में महत्वपूर्ण हैं. लेकिन इनके संरक्षण के लिए किसी भी तरह से प्रयास नहीं किए जा रहे हैं. इस कारण यह संस्कृति विलुप्त हो रही है.

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Published : Jan 27, 2020, 5:32 PM IST

पौड़ी: घुसलगीखाल में होने वाले मकरैंण मेले की तैयारियां तेज हो गई हैं. इस दौरान मकरैंण मेला समिति पहाड़ी क्षेत्र में ढोल-दमाऊ, मशकबीन को संरक्षित करने के लिए ढोल सागर प्रशिक्षण केंद्र खोलने की मांग कर रहा है. साथ ही ढोल सागर को पाठ्यक्रम में शामिल करने की भी मांग है.

उत्तराखंड की लोक संस्कृति के वाद्ययंत्र ढोल-दमाऊ जो कि हर मंगल कार्यों के साथ-साथ कार्यक्रमों के शुभारंभ में महत्वपूर्ण हैं. लेकिन इनके संरक्षण के लिए किसी भी तरह से प्रयास नहीं किए जा रहे हैं. इस कारण से यह संस्कृति विलुप्त हो रही है. समिति की ओर से बताया गया कि संस्कृति विभाग के तत्वावधान में मार्च महीने में ढोल-दमाऊ की राज्य स्तरीय प्रतियोगिता आयोजित की जा रही है. जो कि हरिद्वार या देहरादून में आयोजित होगी. इस प्रतियोगिता की मदद से पहाड़ में ढोल-दमाऊ के क्षेत्र में काम कर रहे लोगों को एक मंच मिल पाएगा.

पहाड़ी वाद्ययंत्र ढोल-दमाऊ को राज्य स्तरीय प्रतियोगिता.

ये भी पढ़ें: शिक्षक ने सादे कागज पर छपवाया शादी निमंत्रण, गुलाब संग दिया न्योता, गूगल भी कर चुका है सम्मानित

मकरैंण मेला समिति के संयोजक आचार्य अनुसूया प्रसाद सुंद्रियाल ने बताया कि घुसगलीखाल में जनवरी 2000 में सबसे पहले ढोल सागर का आयोजन किया गया था. तब से ढोल-दमाऊ को संरक्षित करने की दिशा में नियमित आयोजन करवाया जा रहा है. इस कार्यक्रम का उद्देश्य है कि राज्य के विभिन्न जिलों के ढोल-दमाऊ वाद्ययंत्र इसमें शामिल हों. यह संस्कृति आने वाली पीढ़ियों तक जीवित रह सके इसके लिए इनका संरक्षण करना भी बहुत जरूरी है.

पौड़ी: घुसलगीखाल में होने वाले मकरैंण मेले की तैयारियां तेज हो गई हैं. इस दौरान मकरैंण मेला समिति पहाड़ी क्षेत्र में ढोल-दमाऊ, मशकबीन को संरक्षित करने के लिए ढोल सागर प्रशिक्षण केंद्र खोलने की मांग कर रहा है. साथ ही ढोल सागर को पाठ्यक्रम में शामिल करने की भी मांग है.

उत्तराखंड की लोक संस्कृति के वाद्ययंत्र ढोल-दमाऊ जो कि हर मंगल कार्यों के साथ-साथ कार्यक्रमों के शुभारंभ में महत्वपूर्ण हैं. लेकिन इनके संरक्षण के लिए किसी भी तरह से प्रयास नहीं किए जा रहे हैं. इस कारण से यह संस्कृति विलुप्त हो रही है. समिति की ओर से बताया गया कि संस्कृति विभाग के तत्वावधान में मार्च महीने में ढोल-दमाऊ की राज्य स्तरीय प्रतियोगिता आयोजित की जा रही है. जो कि हरिद्वार या देहरादून में आयोजित होगी. इस प्रतियोगिता की मदद से पहाड़ में ढोल-दमाऊ के क्षेत्र में काम कर रहे लोगों को एक मंच मिल पाएगा.

पहाड़ी वाद्ययंत्र ढोल-दमाऊ को राज्य स्तरीय प्रतियोगिता.

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मकरैंण मेला समिति के संयोजक आचार्य अनुसूया प्रसाद सुंद्रियाल ने बताया कि घुसगलीखाल में जनवरी 2000 में सबसे पहले ढोल सागर का आयोजन किया गया था. तब से ढोल-दमाऊ को संरक्षित करने की दिशा में नियमित आयोजन करवाया जा रहा है. इस कार्यक्रम का उद्देश्य है कि राज्य के विभिन्न जिलों के ढोल-दमाऊ वाद्ययंत्र इसमें शामिल हों. यह संस्कृति आने वाली पीढ़ियों तक जीवित रह सके इसके लिए इनका संरक्षण करना भी बहुत जरूरी है.

Intro:उत्तराखंड की लोक संस्कृति के वादय यंत्र ढोल-दमाऊं जो कि हर मंगल कार्यों के साथ साथ कार्यक्रमों के शुभारंभ में इनकी भूमिका आज भी महत्वपूर्ण है लेकिन इनके संरक्षण के लिए किसी भी तरह से प्रयास नही किये जा रहे है और ये जो संस्कृति है वह धीमे धीमे विलुप्त हो जायेगी। पौड़ी के घुसगलीखाल में आयोजित होने वाले मकरैंण मेला समिति ने पहाड़ी क्षेत्र में ढोल-दमाऊं, मशकबीन को संरक्षित करने के लिए ढोल सागर प्रशिक्षण केंद्र खोलने की मांग की है। समिति की ओर से बताया गया कि संस्कृति विभाग के तत्वावधान में मार्च महीने में ढोल-दमाऊं की राज्य स्तरीय प्रतियोगिता आयोजित की जा रही है। जो कि हरिद्वार या देहरादून में आयोजित होगी इस प्रतियोगिता की मदद से पहाड़ में ढोल-दमाऊं के क्षेत्र में काम कर रहे लोगो को एक मंच मिल पायेगा और उत्तराखंड के साथ साथ देश विदेश तक पहाड़ की प्रतिभा और संस्कृति पहुंच पायेगी।

Body:मकरैंण मेला समिति के संयोजक आचार्य अनुसूया प्रसाद सुंद्रियाल ने बताया कि घुसगलीखाल में जनवरी 2000 में सबसे पहले ढोल सागर का आयोजन किया गया था। तब से ढोल-दमाऊं को संरक्षित करने की दिशा में नियमित यह आयोजन करवाते जा रहे है। लोक संस्कृति का द्योतक पारंपरिक वादय यंत्र ढोल दमाऊं की राज्य स्तरीय प्रतियोगिता आयोजित किए जाने के पीछे उद्देश्य है कि इन्हें संरक्षित किया जाय इस आयोजन में राज्य के विभिन्न जिलों के ढोल-दमाऊं वादक शामिल होंगे। आचार्य ने राज्य सरकार से पहाड़ी क्षेत्र में ढोल सागर प्रशिक्षण केंद्र खुलने की मांग की है साथ ही ढोल सागर को पाठ्यक्रम में शामिल किया जाय तो यह सरकार की एक उपलब्धि होगी। आज पहाड़ो में वादय यंत्र ढोल दमाऊं की मदद से शुभ कार्यों को सम्पन्न किया जाता है यह संस्कृति आने वाली पीढ़ियों तक जीवित रह सके इसके लिए इनका संरक्षण करना भी बहुत जरूरी है। मार्च माह में आयोजित होने वाली राज्य स्तरीय ढोल दमाऊं प्रतियोगिता से पहाड़ की संस्कृति से जुड़ा यह वादय यंत्र अपनी पहचान दूर देशों में भी बनाने में सफल हो पायेगा।
बाईट- आचार्य अनुसूया प्रसाद सुंद्रियाल(समिति के संयोजक)Conclusion:
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