श्रीनगर: अभी वसंत आने में समय है. लेकिन वसंत आने से पहले ही जनवरी माह के पहले सप्ताह में ही जगह जगह फ्योंली के फूल (Srinagar Fyonli flowers) खिल गए हैं. ये सामान्य घटना नहीं है. वैज्ञानिक इस घटना को गंभीर मानकर चिंता जाहिर कर रहे हैं. वैज्ञानिक की मानें तो अगर यूं ही चलता रहा तो फूलों के बीज बनने की प्रक्रिया प्रभावित होगी और इनकी पौध विलुप्ति की कगार पर पहुंच जाएगी.
ग्लोबल वार्मिंग का असर (effect of global warming) दिखने लगा है. उत्तराखंड में फ्योंली के फूल समय से पहले खिलने लगे हैं, जो चिंता का विषय बना हुआ है. यही नहीं इससे पहले भी बुरांश के फूल भी समय से पहले खिलते दिखाई दिए हैं. आम तौर पर जनवरी माह के अंतिम दिनों और फरवरी माह की शुरुआत में खिलने वाला फ्योंली का फूल इस साल जनवरी के प्रथम सप्ताह में ही खिल गया है. श्रीनगर से लेकर कीर्तिनगर ओर उसके आसपास खिली फ्योंली हर तरफ दिखाई दे रहे हैं.
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उच्च स्थलीय पौध शोध संस्थान (High terrestrial plant research) के वैज्ञानिक विजयकांत पुरोहित का कहना है कि इस वर्ष उच्च हिमालय में गर्मी बढ़ने के कारण ऐसा हुआ है. इस बार उच्च हिमालय में जनवरी माह शुरू होने पर भी बारिश और बर्फबारी नहीं हुई है और कार्बनडाई ऑक्साइड की अधिकता के कारण वातावरण में गर्मी बढ़ने के चलते इस बार फ्योंली का फूल वक्त से पहले ही खिल गया है. उन्होंने कहा कि इसी तरह आने वाले वर्षों में कार्बनडाई ऑक्साइड का उत्सर्जन होता रहा और बारिश यूं ही नहीं होती रही तो फ्योंली, बुरांश जैसे पौधों के बीज बनने बंद हो जाएंगे. जिससे इनके अस्तित्व पर ही संकट मंडराने लगेगा, जो हिमालय के लिए अच्छी खबर नहीं होगी.
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इससे पहले बुरांश की सुर्ख लालिमा नजर आने लगी थी. इतना ही नहीं कई जगहों पर तो पेड़ लाल फूलों से लकदक दिखाई दिए. वहीं समय से पहले ही बुरांश के फूल खिलने से लोग अचंभित थे. बीते कुछ वर्षों से मध्य हिमालयी क्षेत्र में बुरांश पर जलवायु परिवर्तन का असर साफ दिखाई दे रहा है. वहीं बीते साल दिसंबर के दूसरे पखवाड़े में प्रदेश के जंगलों में बुरांश खिल गए थे. जबकि राज्य वृक्ष बुरांश के फूल 15 मार्च से 30 अप्रैल के बीच खिलते हैं. समय से पहले बुरांश के फूल खिलने से स्थानीय लोग भी हैरत में हैं. वनस्पति विज्ञानी इस बदलाव को ग्लोबल वॉर्मिंग का परिणाम मान रहे हैं. जिसके कारण उच्च हिमालयी क्षेत्र भी इसके प्रभाव से अछूता नहीं है. समय से पहले बुरांश का खिलना भी जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को दिखा रहा है. वहीं फ्योंली भी समय से पहले ही खिलने लग गई है, जो चिंता का विषय बन रही है.
फ्योंली की महत्ता: दरअसल, उत्तराखंड में चैत्र में फूलदेई त्योहार मनाया जाता है. इसमें द्वारपूजा के लिए एक जंगली फूल का इस्तेमाल होता है, जिसे फ्योंली कहते हैं. इस फूल और फूलदेई के त्योहार को लेकर उत्तराखंड में कई लोक कथाएं प्रचलित हैं. लोक कथाओं के अनुसार एक वनकन्या थी, जिसका नाम था फ्योंली. फ्योंली जंगल में रहती थी. जंगल के पेड़ पौधे और जानवर ही उसका परिवार और दोस्त थे. फ्योंली की वजह से जंगल और पहाड़ों में हरियाली और खुशहाली थी. एक दिन दूर देश का एक राजकुमार जंगल में आया. फ्योंली को राजकुमार से प्रेम हो गया. राजकुमार के कहने पर फ्योंली ने उससे शादी कर ली और पहाड़ों को छोड़कर उसके साथ महल चली गई.
फ्योंली के जाते ही पेड़-पौधे मुरझाने लगे, नदियां सूखने लगीं और पहाड़ बरबाद होने लगे. उधर महल में फ्योंली खुद बहुत बीमार रहने लगी. उसने राजकुमार से उसे वापस पहाड़ छोड़ देने की विनती की, लेकिन राजकुमार उसे छोड़ने को तैयार नहीं था और एक दिन फ्योंली मर गई. मरते-मरते उसने राजकुमार से गुजारिश की, उसका शव पहाड़ में ही कहीं दफना दें. फ्योंली का शरीर राजकुमार ने पहाड़ की उसी चोटी पर जाकर दफनाया जहां से वो उसे लेकर आया था. जिस जगह पर फ्योंली को दफनाया गया, कुछ महीनों बाद वहां एक फूल खिला, जिसे फ्योंली नाम दिया गया. इस फूल के खिलते ही पहाड़ फिर हरे होने लगे, नदियों में पानी फिर लबालब भर गया, पहाड़ की खुशहाली फ्योंली के फूल के रूप में लौट आई. इसी फ्योंली के फूल से द्वारपूजा करके लड़कियां फूलदेई में अपने घर और पूरे गांव की खुशहाली की दुआ करती हैं.