श्रीनगर: कांग्रेस ने उच्च शिक्षा विभाग में हो रही नियुक्तियों पर सवाल खड़े किए हैं. कांग्रेस नेता मंत्री प्रसाद नैथानी ने राज्य सरकार को कटघरे में खड़ा किया है. उनका कहना है कि सरकार ने जो उच्च शिक्षा में अम्ब्रेला एक्ट बनाया है, उससे केंद्रीय विवि के अध्यापक परेशान हैं. उनसे बिना पूछे ही उन्हें राज्य के महाविद्यालयों में नियुक्तियां दी जा रही है. अध्यापकों से उनकी राय नहीं ली जा रही है. उन्होंने कहा कि जबरन ट्रांसफर करके अध्यापकों का वेतन रोक दिया जा रहा है. जिससे उच्च शिक्षा विभाग के अध्यापकों में सरकार के प्रति बेहद आक्रोश बना है.
कांग्रेस नेता मंत्री प्रसाद नैथानी ने कहा कि राज्य में महाविद्यालयों की स्थापना अगर हो रही है तो वहां आधारभूत सुविधाओं का अभाव बना हुआ है. वहां अध्यापकों का भारी अभाव बना हुआ है. उन्होंने इस बात पर भी आपत्ति जताई कि पंतनगर वानिकी विश्वविद्यालय को केंद्रीय विश्वविद्यालय बनाया जा रहा है. अगर केंद्र को पंतनगर विश्वविद्यालय को हथियाना के बजाय नया विश्वविद्यालय खोलना चहिए. राज्य के संसाधनों से निर्मित विश्वविद्यालय को केन्द्रीय विश्वविद्यालय बनाने का कोई औचित्य नहीं है. इससे राज्य के छात्रों का नुकसान होगा. आज राज्य के युवा हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विवि में तक एडमिशन लेने के लिए भटक रहे हैं.
उन्होंने कहा कि कांग्रेस इसका प्रदेशभर पर विरोध करेगी. उच्च शिक्षा विभाग में बहुत गड़बड़ी हो रही है. राज्य सरकार अपने चहेतों को नौकरियां दे रही है. जबकि पढ़े-लिखे युवा नियुक्तियों की विज्ञप्तियों का इंतजार कर रहे हैं.
पढ़ें: इतने बदले कि हर जगह 'पूर्व' ही बैठे दिखते हैं, गणेश जोशी ने धामी को बताया पूर्व CM
रेलवे विकास निगम में युवाओं को रोजगार न देने के मुद्दे पर उन्होंने कहा कि उन्होंने सरकार को चेतावनी दी है कि अगर 2 अक्टूबर तक युवाओं को ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेलवे लाइन में रोजगार नहीं दिया, तो वे ऋषिकेश से कर्णप्रयाग रेलवे के काम को नहीं होने देंगे. कांग्रेस कार्यकर्ता हर साइड पर जाकर रेलवे के कार्य को बाधित करेंगे. उन्होंने आरोप लगाया कि रेलवे लाइन के कार्यों में बाहरी लोगों को और मंत्री विधायक के लोगों को ही कार्य करने दिया जा रहा है. जबकि जो लोग भूमि प्रभावित हैं वे रोजगार विहीन हैं.
अंब्रेला एक्ट का इसलिए है विरोध: अंब्रेला एक्ट से सहायता प्राप्त अशासकीय महाविद्यालयों के शिक्षकों एवं कर्मचारियों को वेतन भुगतान की व्यवस्था संबंधी प्रावधान हटा दिया गया है. अधिनियम में कुलाधिपति के अधिकारों का भी हनन किया गया है. कुलपति की नियुक्ति के लिए पात्रता की श्रेणी में भी परिवर्तन किया गया है.
अब इसमें 10 वर्ष का अनुभव रखने वाले प्रोफेसर के अतिरिक्त अपर मुख्य सचिव की श्रेणी के अधिकारी को भी पात्र मान लिया गया है. विश्वविद्यालय एवं सहायता प्राप्त महाविद्यालय में शिक्षकों की नियुक्ति में कुलपति के अनुमोदन की अनिवार्यता के स्थान पर शासन के अनुमोदन की नई व्यवस्था की गई है.