कोटद्वार: आजादी के नायक क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद का पौड़ी जिले की दुगड्डा नगरी से गहरा नाता रहा है. इस नगरी में आजाद ने अपने साथियों के पास अचूक निशानेबाजी का प्रमाण दिया था. आज भी दुगड्डा में यह स्थान शहीद स्मारक के नाम से जाना जाता है.
क्रांतिकारी दल के लिए धन जुटाने के उद्देश्य से 6 जुलाई 1930 को चंद्र शेखर आजाद भवानी सिंह रावत काशीराम, धनवंतरी, विद्याभूषण और विशंभर दयाल के साथ गडोडिया स्टोर चांदनी चौक दिल्ली में डकैती अभियान में भाग लिया था. उस दौरान पुलिस की सक्रियता बढ़ने के कारण चंद्र शेखर आजाद एक ऐसे स्थान की तलाश में थे, जहां वह अपने युवा साथियों को बंदूक और पिस्तौल से सही निशाना लगाने का अभ्यास करा सके.
तब भवानी सिंह रावत ने बताया कि उनका गांव नाथूपुर पौड़ी गढ़वाल जिले में जंगल के पास स्थित है. वहां पर निरापद ढंग से हथियार चलाने का अभ्यास किया जा सकता है. चंद शेखर आजाद ने भवानी सिंह रावत का निमंत्रण स्वीकार किया और साल 1930 के जुलाई माह के दूसरे सप्ताह में रात्रि को नाथूपुर के लिए रवाना हुए. नाथूपुर के पास जंगलों में आजाद ने अपने साथियों को निशानेबाजी का अभ्यास कराया.
लैंसडौन वन प्रभाग के दुगड्डा रेंज के अंतर्गत सांझासैण के पास वन क्षेत्र में शस्त्र प्रशिक्षण के दौरान आजाद ने साथियों के आग्रह पर एक वृक्ष के एक छोटे से पत्ते पर निशाना साधा. 6 फायर हुऐ लेकिन पत्ता हिला तक नहीं. साथी समझ रहे थे कि निशाना चूक गया, लेकिन जब पेड़ के पास पहुंचे तो देखा कि गोलियां पत्ते को भेदती पेड़ के तने धस गई थी.
आजाद की स्मृति को चिरस्थाई रखने के लिए यहां आजाद पार्क बनाया गया. जिस वृक्ष पर आजाद की अचूक निशानेबाजी के प्रमाण थे, वह जीर्ण शीर्ण होकर धराशाई हो चुका है. ऐसे में अब इस ऐतिहासिक वृक्ष के एक हिस्से का ट्रीटमेंट कर उसे पार्क में स्थापित किया गया है. साथ ही पार्क में चंद्र शेखर आजाद की आदमकद प्रतिमा लगाकार उनकी दुगड्डा यात्रा का वृतांत भी लिखा गया है. वन विभाग ने आजाद के जीवन से जुड़ी घटनाओं को चित्रों के माध्यम से पार्क की दीवारों पर उकेरा है.
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स्थानीय निवासी दीपक बडोला का कहना है कि सन् 1930 में अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद क्रांतिकारी स्वर्गीय भवानी सिंह के यहां नाथूपुर दुगड्डा में आए थे. उनकी याद में आजाद पार्क का निर्माण किया गया था. लेकिन जिस स्तर पर इस बात को पहुंचना चाहिए था, उस स्तर पर यह बात नहीं पहुंच पाई और आज जो स्मारक की सुध लेने वाला कोई नहीं है.
दीपक बडोला ने कहा कि वो चाहते है कि चंद्र शेखर आजाद और अन्य क्रांतिकारियों ने अपनी शहादत दी है. उनका नाम इस पार्क में होना चाहिए और आने वाली पीढ़ी को इस बात की जानकारी जरूर देनी चाहिए. उन्होंने सरकार से क्षेत्र को संरक्षण क्षेत्र घोषित करने की मांग की है. साथ ही सरकार को इस क्षेत्र को अपने अंडर में लेकर यहां का विकास करने की मांग की है.