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जहां चंद्रशेखर आजाद ने किया था निशानेबाजी का अभ्यास, गुमनामी का दंश झेल रहा पार्क

दुगड्डा के नाथुपुर स्थित चंद्रशेखर आजाद पार्क गुमनामी का दंश झेल रहा है. चंद्रशेखर आजाद ने सन् 1930 में इसी जगह पर अपने साथियों के साथ निशानेबाजी का अभ्यास किया था. पुलिस की सक्रियता से बचने के लिए चंद्रशेखर आजाद ने इस जगह की तलाश की थी.

चंद्रशेखर आजाद पार्क दुगड्डा.
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Published : Aug 18, 2019, 2:20 PM IST

कोटद्वार: आजादी के नायक क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद का पौड़ी जिले की दुगड्डा नगरी से गहरा नाता रहा है. इस नगरी में आजाद ने अपने साथियों के पास अचूक निशानेबाजी का प्रमाण दिया था. आज भी दुगड्डा में यह स्थान शहीद स्मारक के नाम से जाना जाता है.

चंद्रशेखर आजाद पार्क दुगड्डा.

क्रांतिकारी दल के लिए धन जुटाने के उद्देश्य से 6 जुलाई 1930 को चंद्र शेखर आजाद भवानी सिंह रावत काशीराम, धनवंतरी, विद्याभूषण और विशंभर दयाल के साथ गडोडिया स्टोर चांदनी चौक दिल्ली में डकैती अभियान में भाग लिया था. उस दौरान पुलिस की सक्रियता बढ़ने के कारण चंद्र शेखर आजाद एक ऐसे स्थान की तलाश में थे, जहां वह अपने युवा साथियों को बंदूक और पिस्तौल से सही निशाना लगाने का अभ्यास करा सके.

तब भवानी सिंह रावत ने बताया कि उनका गांव नाथूपुर पौड़ी गढ़वाल जिले में जंगल के पास स्थित है. वहां पर निरापद ढंग से हथियार चलाने का अभ्यास किया जा सकता है. चंद शेखर आजाद ने भवानी सिंह रावत का निमंत्रण स्वीकार किया और साल 1930 के जुलाई माह के दूसरे सप्ताह में रात्रि को नाथूपुर के लिए रवाना हुए. नाथूपुर के पास जंगलों में आजाद ने अपने साथियों को निशानेबाजी का अभ्यास कराया.

लैंसडौन वन प्रभाग के दुगड्डा रेंज के अंतर्गत सांझासैण के पास वन क्षेत्र में शस्त्र प्रशिक्षण के दौरान आजाद ने साथियों के आग्रह पर एक वृक्ष के एक छोटे से पत्ते पर निशाना साधा. 6 फायर हुऐ लेकिन पत्ता हिला तक नहीं. साथी समझ रहे थे कि निशाना चूक गया, लेकिन जब पेड़ के पास पहुंचे तो देखा कि गोलियां पत्ते को भेदती पेड़ के तने धस गई थी.

आजाद की स्मृति को चिरस्थाई रखने के लिए यहां आजाद पार्क बनाया गया. जिस वृक्ष पर आजाद की अचूक निशानेबाजी के प्रमाण थे, वह जीर्ण शीर्ण होकर धराशाई हो चुका है. ऐसे में अब इस ऐतिहासिक वृक्ष के एक हिस्से का ट्रीटमेंट कर उसे पार्क में स्थापित किया गया है. साथ ही पार्क में चंद्र शेखर आजाद की आदमकद प्रतिमा लगाकार उनकी दुगड्डा यात्रा का वृतांत भी लिखा गया है. वन विभाग ने आजाद के जीवन से जुड़ी घटनाओं को चित्रों के माध्यम से पार्क की दीवारों पर उकेरा है.

पढ़ें- 'गांधी ने सांप्रदायिकता से कभी समझौता नहीं किया'

स्थानीय निवासी दीपक बडोला का कहना है कि सन् 1930 में अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद क्रांतिकारी स्वर्गीय भवानी सिंह के यहां नाथूपुर दुगड्डा में आए थे. उनकी याद में आजाद पार्क का निर्माण किया गया था. लेकिन जिस स्तर पर इस बात को पहुंचना चाहिए था, उस स्तर पर यह बात नहीं पहुंच पाई और आज जो स्मारक की सुध लेने वाला कोई नहीं है.

दीपक बडोला ने कहा कि वो चाहते है कि चंद्र शेखर आजाद और अन्य क्रांतिकारियों ने अपनी शहादत दी है. उनका नाम इस पार्क में होना चाहिए और आने वाली पीढ़ी को इस बात की जानकारी जरूर देनी चाहिए. उन्होंने सरकार से क्षेत्र को संरक्षण क्षेत्र घोषित करने की मांग की है. साथ ही सरकार को इस क्षेत्र को अपने अंडर में लेकर यहां का विकास करने की मांग की है.

कोटद्वार: आजादी के नायक क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद का पौड़ी जिले की दुगड्डा नगरी से गहरा नाता रहा है. इस नगरी में आजाद ने अपने साथियों के पास अचूक निशानेबाजी का प्रमाण दिया था. आज भी दुगड्डा में यह स्थान शहीद स्मारक के नाम से जाना जाता है.

चंद्रशेखर आजाद पार्क दुगड्डा.

क्रांतिकारी दल के लिए धन जुटाने के उद्देश्य से 6 जुलाई 1930 को चंद्र शेखर आजाद भवानी सिंह रावत काशीराम, धनवंतरी, विद्याभूषण और विशंभर दयाल के साथ गडोडिया स्टोर चांदनी चौक दिल्ली में डकैती अभियान में भाग लिया था. उस दौरान पुलिस की सक्रियता बढ़ने के कारण चंद्र शेखर आजाद एक ऐसे स्थान की तलाश में थे, जहां वह अपने युवा साथियों को बंदूक और पिस्तौल से सही निशाना लगाने का अभ्यास करा सके.

तब भवानी सिंह रावत ने बताया कि उनका गांव नाथूपुर पौड़ी गढ़वाल जिले में जंगल के पास स्थित है. वहां पर निरापद ढंग से हथियार चलाने का अभ्यास किया जा सकता है. चंद शेखर आजाद ने भवानी सिंह रावत का निमंत्रण स्वीकार किया और साल 1930 के जुलाई माह के दूसरे सप्ताह में रात्रि को नाथूपुर के लिए रवाना हुए. नाथूपुर के पास जंगलों में आजाद ने अपने साथियों को निशानेबाजी का अभ्यास कराया.

लैंसडौन वन प्रभाग के दुगड्डा रेंज के अंतर्गत सांझासैण के पास वन क्षेत्र में शस्त्र प्रशिक्षण के दौरान आजाद ने साथियों के आग्रह पर एक वृक्ष के एक छोटे से पत्ते पर निशाना साधा. 6 फायर हुऐ लेकिन पत्ता हिला तक नहीं. साथी समझ रहे थे कि निशाना चूक गया, लेकिन जब पेड़ के पास पहुंचे तो देखा कि गोलियां पत्ते को भेदती पेड़ के तने धस गई थी.

आजाद की स्मृति को चिरस्थाई रखने के लिए यहां आजाद पार्क बनाया गया. जिस वृक्ष पर आजाद की अचूक निशानेबाजी के प्रमाण थे, वह जीर्ण शीर्ण होकर धराशाई हो चुका है. ऐसे में अब इस ऐतिहासिक वृक्ष के एक हिस्से का ट्रीटमेंट कर उसे पार्क में स्थापित किया गया है. साथ ही पार्क में चंद्र शेखर आजाद की आदमकद प्रतिमा लगाकार उनकी दुगड्डा यात्रा का वृतांत भी लिखा गया है. वन विभाग ने आजाद के जीवन से जुड़ी घटनाओं को चित्रों के माध्यम से पार्क की दीवारों पर उकेरा है.

पढ़ें- 'गांधी ने सांप्रदायिकता से कभी समझौता नहीं किया'

स्थानीय निवासी दीपक बडोला का कहना है कि सन् 1930 में अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद क्रांतिकारी स्वर्गीय भवानी सिंह के यहां नाथूपुर दुगड्डा में आए थे. उनकी याद में आजाद पार्क का निर्माण किया गया था. लेकिन जिस स्तर पर इस बात को पहुंचना चाहिए था, उस स्तर पर यह बात नहीं पहुंच पाई और आज जो स्मारक की सुध लेने वाला कोई नहीं है.

दीपक बडोला ने कहा कि वो चाहते है कि चंद्र शेखर आजाद और अन्य क्रांतिकारियों ने अपनी शहादत दी है. उनका नाम इस पार्क में होना चाहिए और आने वाली पीढ़ी को इस बात की जानकारी जरूर देनी चाहिए. उन्होंने सरकार से क्षेत्र को संरक्षण क्षेत्र घोषित करने की मांग की है. साथ ही सरकार को इस क्षेत्र को अपने अंडर में लेकर यहां का विकास करने की मांग की है.

Intro:summary दुगड्डा के नाथुपुर स्थित चंद्रशेखर आजाद पार्क गुमनामी का दर्द झेलता, सन 1930 में इसी जगह पर चंद्र शेखर आजाद ने अपने साथियों के साथ निशाना लगाने का अभ्यास किया था। पुलिस की सक्रियता से बचने के लिए चंद्रशेखर आजाद ने यह जगह तलाश की थी।

intro आजादी के नायक क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद का पौड़ी जिले की दुगड्डा नगरी से गहरा नाता रहा है, इस नगरी में आजाद ने अपने साथियों के समक्ष अचूक निशाने बाजी का प्रमाण दिया आज भी दुगड्डा में यह स्थान शहीद स्मारक के नाम से जाना जाता है,
क्रांतिकारी दल के लिए धन जुटाने के उद्देश्य से 6 जुलाई 1930 को चंद्र शेखर आजाद भवानी सिंह रावत काशीराम, धनवंतरी, विद्याभूषण, और विशंभर दयाल के साथ गडोडिया स्टोर चांदनी चौक दिल्ली में डकैती अभियान में भाग लिया था, उस दौरान पुलिस की सक्रियता बढ़ने के कारण चंद्र शेखर आजाद एक ऐसे स्थान की तलाश में थे, जहां वह अपने युवा साथियों को बंदूक और पिस्तौल से सही निशाना लगाने का अभ्यास करा सके, तब भवानी सिंह रावत ने बताया कि उनका गांव नाथूपुर पौडी गढ़वाल जिले में जंगल के पास स्थित है, वहां पर निरापद ढंग से हथियार चलाने का अभ्यास किया जा सकता है, चंद शेखर आजाद ने भवानी सिंह रावत का निमंत्रण स्वीकार किया और सन 1930 के जुलाई माह के दूसरे सप्ताह में रात्रि को नाथूपुर के लिए रवाना हुए, नाथूपुर के पास जंगलों में आजाद ने अपने साथियों को निशानेबाजी का अभ्यास कराया रास्ते में विशंभर दयाल अन्य साथियों के आगरा पर आजाद ने खड़े पेड़ के पत्ते पर निशाना लगा नाथूपुर से दिल्ली वापस जाते समय महान क्रांतिकारी विशंभर दयाल के आगरा पिस्तौल से अचूक निशाना लगाया था उसका अवशेष आज भी पार्क में मौजूद है।





Body:वीओ1- देश की आजादी के आंदोलन के दौरान पौडी जिले के नाथूपुर दुगड्डा निवासी क्रांतिकारी भवानि सिंह रावत के आग्रह पर वर्ष 1930 पर चन्द्रशेखर आजाद अपने साथियों काशीराम, धनवंतरी, विद्याभूषण, और विशंभर दयाल के साथ दुगड्डा आये, उन्होंने शस्त्र परीक्षण लिया, लैंसडौन वन प्रभाग के दुगड्डा रेंज के अंतर्गत साँझासैण के समीप वन क्षेत्र में शस्त्र प्रशिक्षण के दौरान आजाद ने साथियों के आग्रह पर एक वृक्ष के एक छोटे से पत्ते पर निशाना साधा, 6 फायर हुऐ लेकिन पत्ता हिला तक नहीं, साथी समझ रहे थे कि निशाना चूक गया लेकिन जब पेड़ के पास पहुंचे तो देखा कि गोलियां पत्ते को भेदती पेड़ के तने धस गई थी, आजाद की स्मृति को चिरस्थाई रखने के लिए यहां आजाद पार्क बनाया गया, जिस वृक्ष पर आजाद की अचूक निशानेबाजी के प्रमाण थे वह जीण शीर्ण होकर धराशाई हो चुका है, विभाग की ओर से वृक्ष को सुरक्षित करने का प्रयास करते हुए उसके एक हिस्से का ट्रीटमेंट कर उसे पार्क में स्थापित किया गया, पार्क में आजाद की आदमकद प्रतिमा लगाकर उसके समीप ही आजाद की दुगड्डा यात्रा का वृतांत भी लिखा गया है वन विभाग ने आजाद के जीवन से जुड़ी घटनाओं को चित्रों के माध्यम से पार्क की दीवारों पर उकेरा है।

वीओ2- वहीं स्थानीय निवासी दीपक बडोला का कहना है कि सन 1930 में अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद क्रांतिकारी स्वर्गीय भवानी सिंह के यहां नाथूपुर दुगड्डा में आए थे, उनकी याद में आजाद पार्क का निर्माण किया गया था, लेकिन जिस स्तर पर इस बात को पहुंचना चाहिए था,उस स्तर पर यह बात नहीं पहुंच पाई और आज जो स्मारक है जहां का तहा पड़ा है, उसकी सुध लेने वाला कोई नहीं है, हम चाहते कि चंद शेखर आजाद ने जो भारत वर्ष के लिए अपनी शहादत दी है क्रांतिकारियों ने अपनी जवानी इस देश के लिए कुर्बान की उनका नाम इस पार्क में होना चाहिए और आने वाली पीढ़ी को इस बात की जानकारी जरूर होनी चाहिए, सरकार से मांग है कि क्षेत्र को संरक्षण क्षेत्र घोषित किया जाए और सरकार को इस क्षेत्र को अपने अंडर में लेकर इसका विकास करना चाहिए।

बाइट दीपक बडोला ।


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