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गढ़वाली और कुमाऊंनी संस्कृति को बचाने की कवायद, प्रदेश का भ्रमण करेंगी जागर गायिका बसंती बिष्ट

प्रदेश की प्रसिद्ध जागर गायिका और पद्मश्री अवार्ड से सम्मानित बसंती बिष्ट ने लोक संस्कृति और परंपराओं को संरक्षित करने के लिए भ्रमण करना शुरू कर दिया है. गायिका बसंती बिष्ट ने प्रदेश की संस्कृति को विलुप्ति की कगार पर बताया है.

बसंती बिष्ट
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Published : Mar 30, 2019, 3:49 PM IST

पौड़ी: उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में देवी देवताओं के आवाह्न के लिए स्तुतियां जागर के रूप में गाई जाती है. प्रदेश की प्रसिद्ध जागर गायिका और पद्मश्री अवार्ड से सम्मानित बसंती बिष्ट ने लोक संस्कृति और परंपराओं को संरक्षित करने के लिए भ्रमण करना शुरू कर दिया है. गायिका बसंती बिष्ट ने प्रदेश की संस्कृति को विलुप्ति की कगार पर बताया है. पौड़ी पहुंची गायिका बसंती बिष्ट ने ईटीवी भारत से की खास बातचीत....

बसंती विष्ट से ईटीवी भारत की खास बातचीत.

जागर गायिका बसंती बिष्ट ने ईटीवी भारत के साथ बातचीत में बताया कि आज जिस तरह से हमारे उत्तराखंड की संस्कृति धीरे-धीरे विलुप्ति की कगार पर है. आने वाली पीढ़ी इस संस्कृति को न देख पाएगी और न ही इसके महत्व को समझ पाएगी. इसलिए वह उत्तराखंड के भ्रमण पर निकल चुकी हैं. साथ ही उत्तराखंड के गढ़वाल और कुमाऊं की संस्कृति को संरक्षित करने के लिए यह पहल शुरू की है.

ये भी पढ़ेंःवासु हत्याकांड में हुआ चौंका देने वाला खुलासा, सवालों के घेरे में स्कूल प्रबंधन

गायिका बसंती देवी ने बताया कि वह जल्द ही उत्तराखंड की लोक संस्कृति को लिपिबद्ध करने जा रही हैं. जोकि हिंदी में लिखी जाएगी. इस किताब की मदद से आने वाली पीढ़ी और देश विदेशों तक हमारी जो लोक संस्कृति है. उसका प्रचार-प्रसार किया जाएगा.

उन्होंने बताया कि जिस तरह से आज की पीढ़ी मॉर्डन संगीत के साथ ढलती जा रही है. यही कारण है कि वह अपनी संस्कृति को भूलती जा रही है, जिसका मुख्य कारण यह भी है कि उत्तराखंड में संगीत एकेडमी की व्यवस्था नहीं है.

पौड़ी: उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में देवी देवताओं के आवाह्न के लिए स्तुतियां जागर के रूप में गाई जाती है. प्रदेश की प्रसिद्ध जागर गायिका और पद्मश्री अवार्ड से सम्मानित बसंती बिष्ट ने लोक संस्कृति और परंपराओं को संरक्षित करने के लिए भ्रमण करना शुरू कर दिया है. गायिका बसंती बिष्ट ने प्रदेश की संस्कृति को विलुप्ति की कगार पर बताया है. पौड़ी पहुंची गायिका बसंती बिष्ट ने ईटीवी भारत से की खास बातचीत....

बसंती विष्ट से ईटीवी भारत की खास बातचीत.

जागर गायिका बसंती बिष्ट ने ईटीवी भारत के साथ बातचीत में बताया कि आज जिस तरह से हमारे उत्तराखंड की संस्कृति धीरे-धीरे विलुप्ति की कगार पर है. आने वाली पीढ़ी इस संस्कृति को न देख पाएगी और न ही इसके महत्व को समझ पाएगी. इसलिए वह उत्तराखंड के भ्रमण पर निकल चुकी हैं. साथ ही उत्तराखंड के गढ़वाल और कुमाऊं की संस्कृति को संरक्षित करने के लिए यह पहल शुरू की है.

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गायिका बसंती देवी ने बताया कि वह जल्द ही उत्तराखंड की लोक संस्कृति को लिपिबद्ध करने जा रही हैं. जोकि हिंदी में लिखी जाएगी. इस किताब की मदद से आने वाली पीढ़ी और देश विदेशों तक हमारी जो लोक संस्कृति है. उसका प्रचार-प्रसार किया जाएगा.

उन्होंने बताया कि जिस तरह से आज की पीढ़ी मॉर्डन संगीत के साथ ढलती जा रही है. यही कारण है कि वह अपनी संस्कृति को भूलती जा रही है, जिसका मुख्य कारण यह भी है कि उत्तराखंड में संगीत एकेडमी की व्यवस्था नहीं है.

Intro:उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में देवी देवताओं के आवाहन के लिए स्तुतिया जागर के रूप में गाई जाती है यह परंपरा सदियों से चली आ रही है इस परंपरा को आगे बढ़ाने में उत्तराखंड की प्रसिद्ध व पद्मश्री से सम्मानित बसंती बिष्ट की मुख्य भूमिका है। उन्होंने देश और विदेश तक हमारी संस्कृति को पहुंचाने का काम किया है। आज उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्र खाली होते जा रहे हैं और उन क्षेत्रों में महिलाओं की ओर से गाए जाने वाले वैदिक संस्कार भी विलुप्त होते जा रहे है। आने वाली पीढ़ी के लिए उत्तराखंड की संस्कृति को बचाए रखने के लिए बसंती देवी ने उत्तराखंड का भ्रमण शुरू कर दिया है और इन संस्कृतियों को लिपिबद्ध किया जाएगा।


Body:उत्तराखंड की प्रसिद्ध जागर गायिका व पद्मश्री अवार्ड से सम्मानित बसंती बिष्ट अब उत्तराखंड की लोक संस्कृति और अपनी परंपराओं को संरक्षित करने के लिए उत्तराखंड के भ्रमण शुरू कर दिया है। पौड़ी पहुंची बसंती बिष्ट ने ईटीवी भारत के साथ बातचीत करते हुए बताया कि आज जिस तरह से हमारे उत्तराखंड की जो संस्कृति है वह धीमे-धीमे विलुप्ति की कगार पर है और हमारी जो आने वाली पीढ़ी है वह इस संस्कृति को न देख पाएगी ना इसके महत्व को समझ पाएगी। इसलिए वह उत्तराखंड के भ्रमण पर निकल चुकी हैं और उत्तराखंड के गढ़वाल और कुमाऊं की जो संस्कृति है उन को संरक्षित करने के लिए उन्होंने यह पहल शुरू की है हर जनपद में अलग-अलग स्तुतिया गाई जाती हैं और संस्कृति के अनुसार ही अलग अलग जागर गाने का जो तरीका होता है उसे भी वह संरक्षित कर रही हैं।


Conclusion:बसंती देवी ने बताया कि वह जल्द ही उत्तराखंड की लोक संस्कृति को लिपिबद्ध करने जा रही हैं जो कि हिंदी में लिखी जाएगी इस किताब की मदद से आने वाली पीढ़ी और देश विदेशों तक हमारी जो लोक संस्कृति है उसका प्रचार प्रसार किया जाएगा हमारे उत्तराखंड में अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग संस्कृति प्रचलित है और लोग संगीत भी अलग-अलग रूप से गाया जाता है उन्होंने बताया कि यह उत्तराखंड की मजबूत संस्कृति है और आने वाली पीढ़ी के लिए को संरक्षित करना बहुत आवश्यक है उन्होंने बताया कि जिस तरह से आज की पीढ़ी मॉर्डन संगीत के साथ ढलती जा रही है यही कारण है कि वह अपनी संस्कृति को भूलती जा रही है जिसका मुख्य कारण यह भी है कि उत्तराखंड में संगीत एकेडमी की व्यवस्था नहीं है जहां पर हमारी लोक संस्कृति और लोक संगीत सिखाया जा सके।
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