श्रीनगर: उत्तराखंड में होली का सुरूर छाने लगा है. श्रीनगर में होली का रंग अभी से लोगों के सिर चढ़कर बोलने लगा है. श्रीनगर में बैठकी होली का दौर शुरू हो गया है. श्रीनगरवासियों ने एक-दूसरे को रंग-गुलाल लगाकर होली की शुरूआत कर दी है. इस दौरान हारमोनियम, ढोलक की थाप पर होल्यारों ने जमकर ठुमके लगाए. बैठकी होली का स्थानीय लोगों ने ही नहीं विदेशी सैलानियों ने जमकर लुत्फ उठाया.
कुमाऊं और गढ़वाल में होली का अपना ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्त्व है. यहां होली लोगों के लिए सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है. क्योंकि यह केवल बुराई पर अच्छाई की जीत का ही नहीं, बल्कि पहाड़ी सर्दियों के अंत का और नए बुआई के मौसम की शुरूआत का भी प्रतीक है. जो उत्तर भारतीय कृषि समुदाय के लिए बहुत महत्व रखता है. होली का त्योहार गढ़वाल में बसंत पंचमी के दिन शुरू हो जाता है. होली के तीन प्रारूप हैं. बैठकी होली, खड़ी होली और महिला होली. इस होली में सिर्फ अबीर-गुलाल का टीका ही नहीं लगता, बल्कि इसमें बैठकी होली और खड़ी होली गायन की शास्त्रीय परंपरा भी शामिल होती है. श्रीनगर में शास्त्रीय रागों पर आधारित बैठकी होली का देर रात तक गायन किया जा रहा है, जिससे लोग उमड़ रहे हैं. बैठकी होली का स्थानीय लोगों ने ही नहीं विदेशी सैलानियों ने जमकर लुत्फ उठाया.
पढ़ें: यूक्रेन में फंसे उत्तराखंड के छात्र बोले- 'चारों ओर बस धुआं ही धुंआ, रुक-रुककर हो रहे हैं बम धमाके'
बसंत पंचमी के दिन से ही होल्यार प्रत्येक शाम घर-घर जाकर होली गाते हैं और यह उत्सव लगभग 2 महीनों तक चलता है. श्रीनगर में लंबे समय से होली खेलते आ रहे महेश गिरी बताते हैं कि वह और उनके साथी होली की इस परंपरा को आगे बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं. इस परंपरा को पहले श्रीनगर के बुजुर्ग लोग किया करते थे, लेकिन अब वह और उनके साथी बैठकी होली का आयोजन हर साल करते हैं. आगे भी विभिन्न जगहों में बैठकी होली का आयोजन किया जाएगा.