पौड़ी: जनपद पौड़ी के कई क्षेत्रों में कृषि की मदद से खाली हो रहे गांव को आबाद करने का प्रयास किया जा रहा है. यह प्रयास सफल होता दिखाई दे रहा है. पौड़ी के कमेडा गांव में कुछ युवाओं ने ग्रामीणों की मदद से 20 से 25 सालों से बंजर पड़ी भूमि पर खेती करने की शुरुआत की है. शुरुआती दौर में यहां मटर, गाजर, मूली, राई आदि बोयी गयी है.
करीब 50 नाली बंजर पड़ी भूमि पर कृषि करने का काम किया जा रहा है, जिससे कि 15 से 20 क्षेत्रीय महिलाओं को यहां पर काम दिया जा रहा है. साथ ही पांच लोगों को मासिक वेतन पर रखा गया है. शुरुआती दौर में परिणाम काफी सकारात्मक दिख रहे हैं और इसी तरह के प्रयासों से संभव है कि गांव से हो रहे पलायन को रोकने में कामयाबी हासिल हो सकती है.
कमेडा गांव के रहने वाले युवा प्रमोद बताते हैं कि उनके गांव के पास पानी की कोई कमी नहीं है और पानी के पास के सभी खेत करीब 20 से 25 सालों से बंजर पड़े हुए थे. लोग गांव छोड़कर अन्य शहरों में पलायन कर चुके हैं. सभी लोगों की मदद से बंजर पड़े खेतों पर ग्रामीण और तकनीकी मदद से इनकी खुदाई की गई.
शुरुआती दौर में यहां पर हल्दी बोयी गई उसके बाद अब यहां पर करीब 20 नाली में मटर बोने का काम किया गया है जो कि 1 माह के बाद फल देना शुरू कर देगा. शुरुआती दौर में काफी अच्छा परिणाम उन्हें देखने को मिल रहा है. उन्होंने बताया कि पास के गांव की महिलाओं और पुरुषों को रोजगार देने के लिए और बंजर पड़ी भूमि को आबाद करने के लिए उन्होंने शुरुआत की है और यह शुरुआत काफी सकारात्मक है.
युवा अनूप गुसाई ने बताया कि वह तकनीकी मदद से यहां पर खेती कर रहे हैं और कृषि विभाग की ओर से भी उन्हें काफी मदद मिल रही है. कुछ ग्रामीणों को उन्होंने मासिक वेतन पर रखा है जोकि सुबह शाम खेतों में उनके साथ काम करने के साथ ही खेतों की देखरेख भी कर रहे हैं.
खेतों में काम करने के लिए महिलाओं की मदद भी ली जा रही है. वहीं कृषि विभाग के तकनीकी प्रबंधक अनूप अशेष ने बताया कि करीब 20 नाली में शुरुआती दौर में मटर लगाया जा रहा है जो कि एक माह के बाद करीबन 15 से 20 कुंटल उत्पादन होगा.
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विभाग की ओर से समय-समय पर खेतों में सिंचाई, खेतों में लगने वाली बीमारी और तकनीकी रूप से मदद की जा रही है. युवाओं और ग्रामीणों की मदद से लंबे समय से बंजर पड़े खेतों पर मेहनत कर कृषि करने का जो काम किया जा रहा है वो काफी सकारात्मक परिणाम भी दे रहा है.
यदि सभी लोग इसी तरह से प्रयास करेंगे तो संभव है कि जो हमारे उत्तराखंड के गांव जो खाली हो चुके हैं वहां दोबारा से रौनक लौट सकती है और जो पलायन की बीमारी हमारे पहाड़ों पर लगी है उससे भी हमें निजात मिल सकती है.