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ऐपण को संजोए रखने के लिए आशीष नेगी ने उठाया बीड़ा, युवाओं को दे रहे प्रशिक्षण

अगर बात करें कला और संस्कृति को सहेजने कि तो उत्तराखंड सबसे आगे रहता है. यहां की ऐसी ही एक कला है ऐपण है. जिसको संजोए रखने के लिए युवा आगे आकर कार्य कर रहे हैं.

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Published : Nov 5, 2020, 5:15 PM IST

Updated : Nov 5, 2020, 8:10 PM IST

kaladhungi
युवा आशीष दे रहें ऐपण का प्रशिक्षण.

कालाढ़ूंगी: ऐपण या अल्पना एक लोक चित्रकला है, जिसका कुमाऊं के घरों में एक विशेष स्थान है. ये उत्तराखण्ड की एक परंपरागत लोक चित्रकला है. यह चित्रकला उत्तराखण्ड के कुमाऊं क्षेत्र से सम्बन्धित है. ऐपण शब्द संस्कृत के शब्द अर्पण से बना है. ऐपण का वास्तविक अर्थ है लिखायी या लिखना. ऐपण मुख्यतः तीन अंगुलियों से लिखा जाता है. कुमाऊं का कोई भी त्योहार और धार्मिक अनुष्ठान ऐपण के बिना अधूरा माना जाता है. वहीं लुप्त होती इस कला को एक युवा ने संजोने का बीड़ा उठाया है.

आंगन में ऐपण माना जाता है शुभ

कुमाउंनी महिलाएं सभी धार्मिक अनुष्ठान व त्योहारों की शुरूआत अपने आंगन में ऐपण बना कर करती हैं. ऐपण त्योहार, पूजा और बहुत से अवसर जैसे जन्म, विवाह, जनेऊ पर बनाये जाते हैं. ऐपण में बहुत से ज्यामिती रेखा आरेख व देवी-देवताओं के चित्र प्रयोग कर एक सुन्दर रूप दिया जाता है. ऐपण दीवारों व कपड़े आदि में बनाये जाते हैं.

ऐपण को संजोए रखने के लिए आशीष नेगी ने उठाया बीड़ा.

पढ़ें- उत्तराखंड की प्राचीन ऐपण कला ने खोले रोजगार के नए दरवाजे

ऐपण, संस्कृति और सभ्यता का प्रमाण

कुमाऊं की संस्कृति का अटूट हिस्सा ऐपण कुमाऊं की लोक चित्रकला है जो आज कहीं ना कहीं विलुप्त होने की कगार पर है. ऐसे में इसको संजोकर रखने की जिम्मेदारी ली है, कालाढूंगी कोटाबाग के युवाओं ने. ऐपण उत्तराखंड कुमाऊं की संस्कृति, सभ्यता का प्रमाण है. कुमाऊं में होने वाले सभी धार्मिक अनुष्ठान, और सभी शुभ कार्य ऐपण के बिना अधूरे माने जाते हैं. पूर्व काल से ही चावल को पीसकर कर उसकी चित्रकला को ही ऐपण कहा जाता है, लेकिन आधुनिकता के इस दौर में उसकी जगह पेंट्स और ब्रश ने ले ली है.

ऐपण की कला को संजो रहे आशीष नेगी

जनपद नैनीताल के विकास खंड कोटाबाग के निवासी युवा आशीष नेगी की पहल की लोग खूब प्रशंसा कर रहे हैं. जिसको देखकर काफी लोग उनसे जुड़कर उनका साथ भी दे रहे है. आशीष नेगी और साथियों द्वारा युवक और युवतियों को प्रशिक्षण देते हुए तीन माह हो चुके हैं, और अबतक उनसे 120 युवा ऐपण का प्रशिक्षण ले चुके है और अभी 20 लोग प्रशिक्षण ले रहे हैं. आशीष नेगी ने बताया कि ऐपण हमारे कुमाऊं की धरोहर का प्रतीक रहा है और उसको संजोकर रखना हम सब का प्रयास होना चाहिए.

कालाढ़ूंगी: ऐपण या अल्पना एक लोक चित्रकला है, जिसका कुमाऊं के घरों में एक विशेष स्थान है. ये उत्तराखण्ड की एक परंपरागत लोक चित्रकला है. यह चित्रकला उत्तराखण्ड के कुमाऊं क्षेत्र से सम्बन्धित है. ऐपण शब्द संस्कृत के शब्द अर्पण से बना है. ऐपण का वास्तविक अर्थ है लिखायी या लिखना. ऐपण मुख्यतः तीन अंगुलियों से लिखा जाता है. कुमाऊं का कोई भी त्योहार और धार्मिक अनुष्ठान ऐपण के बिना अधूरा माना जाता है. वहीं लुप्त होती इस कला को एक युवा ने संजोने का बीड़ा उठाया है.

आंगन में ऐपण माना जाता है शुभ

कुमाउंनी महिलाएं सभी धार्मिक अनुष्ठान व त्योहारों की शुरूआत अपने आंगन में ऐपण बना कर करती हैं. ऐपण त्योहार, पूजा और बहुत से अवसर जैसे जन्म, विवाह, जनेऊ पर बनाये जाते हैं. ऐपण में बहुत से ज्यामिती रेखा आरेख व देवी-देवताओं के चित्र प्रयोग कर एक सुन्दर रूप दिया जाता है. ऐपण दीवारों व कपड़े आदि में बनाये जाते हैं.

ऐपण को संजोए रखने के लिए आशीष नेगी ने उठाया बीड़ा.

पढ़ें- उत्तराखंड की प्राचीन ऐपण कला ने खोले रोजगार के नए दरवाजे

ऐपण, संस्कृति और सभ्यता का प्रमाण

कुमाऊं की संस्कृति का अटूट हिस्सा ऐपण कुमाऊं की लोक चित्रकला है जो आज कहीं ना कहीं विलुप्त होने की कगार पर है. ऐसे में इसको संजोकर रखने की जिम्मेदारी ली है, कालाढूंगी कोटाबाग के युवाओं ने. ऐपण उत्तराखंड कुमाऊं की संस्कृति, सभ्यता का प्रमाण है. कुमाऊं में होने वाले सभी धार्मिक अनुष्ठान, और सभी शुभ कार्य ऐपण के बिना अधूरे माने जाते हैं. पूर्व काल से ही चावल को पीसकर कर उसकी चित्रकला को ही ऐपण कहा जाता है, लेकिन आधुनिकता के इस दौर में उसकी जगह पेंट्स और ब्रश ने ले ली है.

ऐपण की कला को संजो रहे आशीष नेगी

जनपद नैनीताल के विकास खंड कोटाबाग के निवासी युवा आशीष नेगी की पहल की लोग खूब प्रशंसा कर रहे हैं. जिसको देखकर काफी लोग उनसे जुड़कर उनका साथ भी दे रहे है. आशीष नेगी और साथियों द्वारा युवक और युवतियों को प्रशिक्षण देते हुए तीन माह हो चुके हैं, और अबतक उनसे 120 युवा ऐपण का प्रशिक्षण ले चुके है और अभी 20 लोग प्रशिक्षण ले रहे हैं. आशीष नेगी ने बताया कि ऐपण हमारे कुमाऊं की धरोहर का प्रतीक रहा है और उसको संजोकर रखना हम सब का प्रयास होना चाहिए.

Last Updated : Nov 5, 2020, 8:10 PM IST
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