रामनगर: कोरोना लॉकडाउन में घर लौटे प्रवासी अलग-अलग क्षेत्रों में रोजगार ढूंढ रहे हैं. रामनगर में भी अपने घरों को लौटे कई प्रवासी युवा ओएस्टर मशरूम की खेती कर पैसे कमा रहे हैं. क्षेत्र में लगातार ओएस्टर मशरूम की खेती करने वालों की संख्या में बढ़ोत्तरी हो रही है. वहीं, ओएस्टर मशरूम की खेती पलायन को रोकने में कारगर साबित हो रही है.
45 दिन में हो जाती है ओएस्टर मशरूम की खेती
दिल्ली में एक प्राइवेट संस्था में काम करने वाले रामनगर के त्रिवेंद्र सिंह रावत ने बताया कि लॉकडाउन के समय वह दिल्ली से रामनगर आ गए थे. यहां आकर उनके पास रोजगार नहीं था. उन्होंने इस दौरान मन बनाया कि क्यों न घर में रहकर ही रोजगार से जुड़ा जाए. इसके बाद उन्होंने ओएस्टर मशरूम उगाने की ट्रेनिंग ली. वे अब अपने घर के हॉल में ही ओएस्टर मशरूम की खेती कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि इससे स्वरोजगार से जुड़ने के साथ-साथ उत्तराखंड से पलायन भी रुकेगा. उन्होंने कहा कि ओएस्टर मशरूम की खेती 45 दिनों में ही हो जाती है.
सुबोध ने ओएस्टर मशरूम को बनाया स्वरोजगार
बेरोजगार प्रवासी सुबोध कुमार चमोली ने कहा कि लॉकडाउन में उनका कार्य बंद हो गया. इससे उनके सामने रोजी-राटी का संकट मंडराने लगा. इसके बाद उन्हें एक संस्था द्वारा ओएस्टर मशरूम की खेती के बारे में पता चला. वे आज ओएस्टर मशरूम की खेती कर अच्छी आय कमा रहे हैं. वह एक छोटी सी हट में मशरूम की पैदावार लगाकर एक अच्छी आय कमा रहे हैं. उनका परिवार भी रोजगार से जुड़ गया है.
ऐसे उगाएं ओएस्टर मशरूम
सुबोध ने बताया कि गेहूं के भूसे को 12 घंटे तक पानी में मिलाया जाता है. उसके बाद भूसे में कीटनाशक दवा मिला कर रखी जाती है. फिर भूसे को डालियों में डालकर पानी निचोड़ दिया जाता है. इसके बाद भूसे को हल्की धूप में रख देते हैं. ध्यान रखते हैं कि उसमें नमी बरकरार रहे. इसके बाद पॉलिथीन को लेकर उसके नीचे के भाग को बांध देते हैं. फिर एक पॉलिथीन में 1 इंच भूसे को उसमें फैला देते हैं. 1 लेयर में ओएस्टर मशरूम के बीज फैला देते हैं. ऐसे ही एक पॉलिथीन में 5 लेयर बनाई जाती हैं. पॉलिथीन को ऊपर से कस के बांध देते हैं. हवा जाने के लिए उसमें 15 से 20 छेद कर देते हैं. इनको 10 से 12 दिन जमीन से ऊपर कमरे में रखते हैं और फिर पॉलिथीन को हटा देते हैं. जब भूसा पूरी तरह से सफेद हो जाता है तब बांस या लकड़ी के सहारे उनको जमीन से ऊपर छांव में रखते हैं. जब भी नमी की मात्रा कम हो तो पानी का छिड़काव करते हैं. 5 से 7 दिन बाद अंकुर फूटने लगते हैं. फिर 10 से 12 दिन में ओएस्टर मशरूम तैयार होने लगता है. इसके बाद मशरूम को काटकर कारोबार शुरू कर देते हैं.
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सामाजिक कार्यकर्ता कल्पना सती का कहना है कि गांव में आए कई युवा लॉकडाउन के समय से वापस नौकरियों में नहीं गए. वह आज ओएस्टर मशरूम की खेती कर अच्छा लाभ ले रहे हैं. युवा खुद ही स्वरोजगार से नहीं जुड़े बल्कि अपने साथ-साथ अपने परिवार को और अन्य कई युवाओं को भी स्वरोजगार से जुड़ने के लिए प्रेरित कर रहे हैं.